MP: सियासी रस्‍साकशी में अदालत नहीं बनी ‘पॉलीटिकल कोर्ट’
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MP: सियासी रस्‍साकशी में अदालत नहीं बनी ‘पॉलीटिकल कोर्ट’

कांग्रेस और भाजपा नेताओं की याचिकाओं पर कोर्ट ने जांच प्रक्रिया आरंभ कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया और न्‍यायपालिका के महत्‍व को रेखांकित करते हुए स्‍वयं को दूर कर लिया

MP: सियासी रस्‍साकशी में अदालत नहीं बनी ‘पॉलीटिकल कोर्ट’

मप्र में विधानसभा चुनाव नवंबर अंत तक होना है. भाजपा मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्‍व में न केवल चौथी बार सरकार बनाने के लिए बल्कि 230 सीटों वाली विधानसभा में अपने 200 से अधिक विधायक पहुंचाना चाहती है. पार्टी ने नारा दिया है ‘अबकी बार 200 पार’. दूसरी तरफ, कांग्रेस ने किसी एक चेहरे पर भरोसा न कर भाजपा और शिवराज के सामने समूह को आगे किया है. इस समूह में सांसद कमलनाथ, सांसद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया, सांसद दिग्विजय सिंह, विवेक तन्‍खा, पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी शामिल हैं.

मध्‍य प्रदेश में दोनों ही दलों की अपनी तैयारियां हैं, वादे और आरोप-प्रत्‍यारोप हैं. कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह के भोपाल दौरे के बाद यह रस्‍साकशी तेज हो गई है. इस जोर आजमाइश में नेताओं ने कोर्ट को ‘पॉलीटिकल कोर्ट’ (राजनीतिक का मैदान) बनाने के प्रयास किए लेकिन ऐसा हो न सका. कांग्रेस और भाजपा नेताओं की याचिकाओं पर कोर्ट ने जांच प्रक्रिया आरंभ कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया और न्‍यायपालिका के महत्‍व को रेखांकित करते हुए स्‍वयं को दूर कर लिया. इसी तरह डंपर और व्‍यापमं मामले में कोर्ट के रुख के बाद राजनीति गरमाई जरूर लेकिन इन मामलों में ‘कोर्ट’ अखाड़ा नहीं बन पाया.

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बीते एक हफ्ते में अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों ने निष्‍पक्षता की धारणा को मजबूत करने का ही संदेश दिया है. जहां एक ओर उसने पदोन्‍नति में आरक्षण के मामले में गेंद सरकारों के पाले में डाल कर साफ कर दिया कि राजनेता कोर्ट के नाम पर अपनी रोटियां नहीं सेंक सकते. ऐसा ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी पत्नी साधना सिंह के खिलाफ बहुचर्चित डंपर घोटाले में भी हुआ.

कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता केके मिश्रा द्वारा दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि याचिका में उठाए गए सवाल सुनवाई के योग्य नहीं है. खबरों के अनुसार कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव अदालत के बाहर लड़ना चाहिए, अदालत के कमरे में नहीं. यानी संदेश यही कि कोर्ट को राजनीति का अखाड़ा न बनाया जाए. इसके बाद व्‍यापमं मामले में भी कोर्ट ने स्‍वयं को तात्‍कालिक राजनीतिक खेल से दूर करते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ करने का ही संकेत दिया.

चुनाव से पहले भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने व्यापमं घोटाले में विशेष अदालत में याचिका दाखिल कर 27 हजार पन्‍नों की चार्जशीट पेश की थी. उन्होंने आरोप लगाया कि इंदौर थाने में एक्सेल शीट से छेड़छाड़ की गई है. वहीं कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि व्यापमं मामले में सभी जांच एजेंसियों ने निष्पक्ष जांच नहीं की है. इस कारण सुप्रीम कोर्ट तक से मामले में कांग्रेस के पक्ष में फैसला न हुआ तो कोर्ट द्वारा दी गई छूट के आधार पर पुन: जांच के लिए आवेदन लगाया गया है.

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इस पर जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्‍तम मिश्र ने भाजपा कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि सभी जगह दोष साबित करने में विफल हुई कांग्रेस ने फिर झूठे आरोप लगाए हैं. अदालत में पेश दस्‍तावेजों में नया कुछ नहीं है. इसके बाद भाजपा के विधि प्रकोष्ठ के अध्यक्ष एडवोकेट संतोष शर्मा ने झूठे दस्तावेज पेश करने का आरोप लगाते हुए अदालत में परिवाद पेश कर दिया.

इस पर अदालत ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, कांग्रेस चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत पांडे के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश दिए. इन दोनों मामलों से राजनीति गरमा गई है. जहां भाजपा लीगल सेल ने इसे झूठ का पर्दाफाश बताया वहीं कांग्रेस का कहना है कि झूठे केस से हम डरेंगे नहीं झुकेंगे नहीं, अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ेंगे.

कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह निर्णयकर्ता है, जांच एजेंसी नहीं. इस तरह एफआईआर के बाद पुलिस दिग्विजय सिंह द्वारा दिए गए दस्‍तावेजों पर भाजपा की शिकायत की जांच करेगी. जांच होने तक इन मामलों पर तात्‍कालिक चुनावी राजनीति साधने की कोशिशें सफल नहीं होगी. दोनों दलों के नेताओं में आरोप-प्रत्‍यारोप के दौर जरूर चलेंगे लेकिन कोई भी अदालत के आदेश को अपनी ढाल या हमले का औजार नहीं बना पाएगा.

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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