सोचिए और ऐसी मिसालों से सबक लीजिए
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सोचिए और ऐसी मिसालों से सबक लीजिए

दूरदर्शन ने एक बहुत रोचक सीरियल आनंदी गोपाल का प्रसारण किया था, शायद इसलिए क्योंकि डेढ़ सौ साल पहले वह देश के लिए डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला डॉक्टर थीं.

सोचिए और ऐसी मिसालों से सबक लीजिए

आज सुबह यदि आपने अपने कम्प्यूटर को ऑन करने के बाद गूगल किया हो और उसके सामने दिख रहे डूडल पर गौर किया हो तो निश्चित ही आपकी नजरें ठहर गई होंगी. आखिर कौन है यह महिला जिसके हाथों में डिग्री, आंखों में आत्मविश्वास झलक रहा हो. इसकी लहराती साड़ी पूरी दुनिया को महिला सशक्तीकरण की एक मिसाल के रूप में सामने आ रही हो.

यदि आप दूरदर्शन देखते-सुनते बढ़े हुए हों तब इसे पहचानना जरा आसान होगा, लेकिन हमारी आज की पीढ़ी तो इसे इसके माध्यम से ही जानेगी. आजकल मनोरंजक टीवी चैनल तो सैकड़ों की संख्या में हैं, लेकिन ऐसे धारावाहिक मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है, जो आपके दिमाग पर अटल रहते हों. ये महिला आनंदी गोपाल जोशी हैं. इन पर दूरदर्शन ने एक बहुत रोचक सीरियल आनंदी गोपाल का प्रसारण किया था, पर क्यों. शायद इसलिए क्योंकि अब से तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले वह देश के लिए डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला डॉक्टर थीं.

आनंदी का जन्म आज ही के दिन 1865 में हुआ था. ऐसे आइकॉन को सामने लाने के लिए गूगल का सचमुच शुक्रगुजार होना चाहिए, नहीं तो आज दसियों अखबार पढ़ते हुए भी इन पर एक लाइन मिलना मुश्किल है.

सोचिए कि 1865 के बाद महिलाओं के लिए घर की चाहरदीवारी से निकलना और कुछ बन जाना कितना अहमियत रखता होगा, वह भी एक सामान्य परिवार की पृष्ठभूमि में. आप झांसी की रानी, दुर्गावती जैसी तमाम मिसालें दे सकते हैं, लेकिन एक सामान्य परिवार से संघर्ष करते हुए कुछ हासिल करना सचमुच श्रेष्ठ कार्य है. और इसमें भी उनके बीस साल बड़े पति का साथ मिलना, एक आदर्श स्थिति तक ले जाता है. यहां तक कि वह पढ़ाई छोड़कर अन्य कामों के लिए आनंदी की पिटाई तक भी कर देता है. हालांकि पिटाई को जायज फिर भी नहीं माना जा सकता भले ही आपका मकसद नेक हो.

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अब उस घटना के डेढ़ सौ साल बाद भी क्या फर्क आया है, उसकी बानगी देख लीजिए. पिटाई और शारीरिक हिंसा एक ऐसा पक्ष है जो एक महिला के जीवन में आता ही है. यहां तक कि वह अपने घर की चारदीवारी में भी पिटती है और इसे जायज भी मान लेती है. इस बारे में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के आंकड़े इस भयावह तस्वीर को सामने लाते हैं.

सर्वेक्षण में बताया गया है कि प्रदेश में महिलाओं की आधी आबादी यह स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दी गई है कि पति के द्वारा की गयी हिंसा “उचित” है. वे मानती हैं कि किन्हीं परिस्थतियों में पति यदि पत्नी को शारीरिक या मानसिक दंड दे तो वह जायज होगा. 38 फीसदी महिलाएं मानती हैं कि यदि महिला ससुराल में अपने रिश्तेदारों का अनादर करती है तो उसे पीटा जा सकता है. 28 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि यदि महिला अपने पति से बहस करे तो उसे पीटा जा सकता है. 27 प्रतिशत महिलाएं यह भी मानती हैं कि यदि पति को पत्नी का व्यवहार शंकास्पद लगता है तो वह उसे पीट सकता है.

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पुरुषों की भी ऐसी ही मान्यता है. 43 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि किन्हीं खास हालातों में महिलाओं का पीटा जाना जायज है. जैसे यदि पत्नी अपने ससुराल में रिश्तेदारों का अनादर करे तो 29 प्रतिशत मर्द उसे पीटे जाने को जायज मानंगे. पत्नी का व्यवहार शंकास्पद मानने पर 24 प्रतिशत मर्द पिटाई को जायज मानेंगे.

यह धारणा केवल निरक्षर लोगों में ही नहीं बल्कि ऐसे लोगों में भी व्याप्त है जिन्होंने कम से कम 12 साल स्कूलिंग की है. इस सवाल के जवाब में हां कहने वालों में 30 प्रतिशत महिलाएं और 34 प्रतिशत पुरुष पढ़े-लिखे थे. अब सवाल यह है कि इन डेढ़ सौ सालों में महिलाओं के हिस्से में क्या बदला. यदि आनंदी जोशी ने एक मिसाल कायम की तो हमारा समाज उसे कहां तक आगे लेकर आया और क्या वास्तव में महिलाओं के प्रति अपराध कम हुए, उन्हें अपने सशक्तीकरण के लिए कोई अच्छा माहौल मिला. सोचिए और ऐसी मिसालों से सबक भी लीजिए.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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