बजट 2018: क्या महिलाओं की जरूरतें वाकई यही थीं
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बजट 2018: क्या महिलाओं की जरूरतें वाकई यही थीं

इस समय एक बड़ी और भयावह समस्या महिला सुरक्षा की थी. पिछले बजट में कम से कम कई महिला सुरक्षा सम्बंधी स्कीमों के तहत पैसा दिए जाने का जिक्र वित्त मंत्री ने किया था. इस बार वह नहीं दिखा.

बजट 2018: क्या महिलाओं की जरूरतें वाकई यही थीं

महिलाओं को देश की आधी आबादी के रूप में देखा जाता है. वंचित तबकों में सांख्यिकी आधार पर यह सबसे बड़ा तबका है. और परिवार के गठन में अपरिहार्य अंग होने के कारण यह भी माना जाता है कि महिलाओं तक पहुंच यानी देश की सौ फीसद आबादी तक पहुंच. इसीलिए अगले आम चुनाव के पहले मौजूदा सरकार के आखिरी बजट में महिलाओं पर गौर की अटकलें थीं. और इस बात में भी कोई शक नहीं कि इस समय महिलाएं ही कई स्तरों पर समस्याओं से जूझ रही हैं. वे अपनी सुरक्षा और रोजगार के बराबर अवसरों के लिए संघर्षरत हैं. परंपरागत रूप से एक गृहणी की भूमिका के कारण रोजमर्रा के सामान के दामों से उसी का सरोकार सबसे ज्यादा है. इसीलिए इस बजट से उम्मीद थी कि रसोई के सामान के दामों में कुछ राहत दी जाएगी. वैसा नहीं हुआ. और शायद इसीलिए नहीं हुआ कि रोजमर्रा के सामान पर टैक्स का निर्धारण जीएसटी लागू करते समय ही हो चुका था. मंहगाई को अप्रत्यक्ष तरीके से काबू करने के लिए पेट्रोल डीजल पर टैक्स घटाने का उपाय हर सरकार के पास रहता है. वह घटाव भी इस बार नहीं हुआ. बल्कि इस बार सैस लगने के कारण कई चीजें और महंगी होने के अंदेशे बढ़ गए. पूरे बजट भाषण में विशेष रूप से महिलाओं को सम्बोधित करते हुए बहुत ही कम वाक्य थे. इस बजट में महिलाओं को क्या-क्या दिया गया है इस पर कम से कम एक सरसरी नजर डाली जानी चाहिए.

बजट में महिला रोजगार के लिए क्या
आमतौर पर सभी विशेषज्ञ, मानते हैं कि महिलाओं को सामाजिक समानता देने के लिए उन्हें आर्थिक समानता देने की जरूरत है. आर्थिक समानता सिर्फ महिलाओं को रोजगार के नए अवसर दे कर ही लाई जा सकती है. इस बजट में प्रत्यक्ष रूप से कोई भी ऐसी योजना नहीं बताई गई जो फौरी तौर पर महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने वाली हो. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कई बार महिलाओं को लाभ पहुंचने का जिक्र किया. लेकिन कोई भी बात ऐसी नहीं थी जिसकी नापतोल संभव हो. रोजगार बढ़ाने के नाम पर कर्जरूपी मुद्रा योजना में 3 लाख करोड़ की अतिरिक्त राशि दी गई है. मुद्रा योजना में नया काम करने के इच्छुक लोग कम ब्याज पर लोन लेते हैं. इसी योजना में कुछ रकम बढ़ाने का एलान करते हुए वित्त मंत्री ने महिलाओं का जिक्र किया कि वे भी इस योजना से लाभ ले सकती हैं और कर्ज लेकर नए काम शुरू कर सकती हैं. कुछ महिला संचालित स्वयं सहायता समूहों को भी कर्ज दिए जाने का संकेत है. हालांकि, बजट में इन कार्यकमों की कोई ठोस योजना देखने को नहीं मिली.

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भविष्य निधि में छूट क्या कामकाजी महिलाओं को फायदा देगी
बजट में एक और एलान महिलाओं का हाथ में आया कुल वेतन बढ़ाने के लिए किया गया. इसके अंतर्गत उनके ईपीएफ में योगदान की दर को 09 फीसद से घटाकर 8 फीसद कर दिया गया है. यानी उनके भविष्य के लिए जो नौ फीसदी पैसा जमा करना जरूरी था उसे घटाया गया है. लेकिन देखने की बात ये है कि इस योगदान की राशि को कम करने से नौकरी देने वाली कंपनियों के लिए क्या आकर्षण हो सकता है, जिससे उन्हें महिलाओं को अधिक नौकरी देने में फायदा दिखे. हालांकि, ये समय के साथ ही सामने आ सकेगा.

गरीब महिलाओं का जिक्र नहीं
गरीब महिलाओं के लिए किसी नए या पुराने कार्यक्रम का अलग से कोई जिक्र बजट भाषण में सुनने को नहीं मिला. यहां तक कि पिछले साल आंगनवाड़ी सेवाओं के लिए जो कुछ रकम दी गई थी उसमें भी कोई सार्थक बढ़ोत्तरी नहीं की गई. आशा हैल्थ वर्कर जिन्हें नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत वेतन मिलता है वहां पिछले साल के मुकाबले राशि घटा दी गई. इसी तरह मनरेगा है जो पिछले कई साल से ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार का बहुत बड़ा जरिया बन गया है. उस मद में भी पिछले साल के मुकाबले बिलकुल भी रकम नहीं बढ़ी. नए रोजगार के अवसरों के लिए कोई भी खास कार्यक्रम का न होना आने वाले समय में बेरोजगारी की समस्या को कहीं और गंभीर ना बना दे.

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महिला सुरक्षा की चिंता नहीं दिखी
इस समय एक बड़ी और भयावह समस्या महिला सुरक्षा की थी. पिछले बजट में कम से कम कई महिला सुरक्षा सम्बंधी स्कीमों के तहत पैसा दिए जाने का जिक्र वित्त मंत्री ने किया था. इस बार वह नहीं दिखा. पिछले दिनों महिला संबंधी अपराधों की खबरों में बढ़ोतरी के बावजूद भी निर्भया फंड में भी कोई बढ़ोतरी नहीं की गई. इसमें पिछले साल 500 करोड़ दिए गए थे जिसे इस साल बिल्कुल भी नहीं बढ़ाया गया है. महिला सुरक्षा की समस्या इतनी गंभीर है कि इसका यूं नजरअंदाज होना महिलाओं को बहुत अखरेगा.

उज्ज्वला और मातृत्व लाभ जैसी योजनाएं
बजट के बाद बहुप्रचारित है कि यह महिलाओं के अनुकूल बजट है. सरकार ने पिछले साल 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन गरीब महिलाओं को दिए जाने को अपनी उपलब्धि बताया और इस साल उस संख्या को 8 करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया. लेकिन इस स्कीम की विस्तृत समीक्षा की जरूरत है. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की अध्यक्ष बताती हैं कि उज्ज्वला योजना में गैस कनेक्शन की संख्या तो बढ़ी है लेकिन इसका घरेलू उपभोग घटा है. जिसका मुख्य कारण है गैस सिलिंडर की कीमत इतनी ज्यादा है कि गरीब परिवार उसका खर्चा नहीं उठा पा रहा है. 

इसके अलावा बजट में कामकाजी गर्भवती महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की अवधि को बढ़ाकर 12 हफ्तों से 26 हफ्ते कर दिया गया. इसे एक बड़े तोहफे के रूप में दिखाया गया था. लेकिन वहीं दूसरी तरफ मातृत्व और बाल विकास के लिए खर्च की जाने वाली रकम को घटा दिया गया है. यही नहीं मातृत्व लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत पिछले बजट के मुकाबले इस साल राशि और कम कर दी गई है. पिछले साल इस मद में 2700 करोड़ रुपए दिए गए थे जिसे इस वर्ष घटा कर 2400 करोड़ कर दिया गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल कम से कम 1 करोड़ 20 लाख मांएं बच्चे को जन्म देती हैं इस लिहाज से इस मद में कम से कम 8000 करोड़ रुपये की जरूरत आंकी गई थी. इन 120 लाख माताओं में 50 फीसदी स्वयं समर्थ महिलाओं को न भी गीना जाए तो कम से कम 60 लाख महिलाओं के लिए भी इस साल दी गई रकम नाकाफी ही कही जाएगी.

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कुलमिलाकर फिलहाल तो ऐसा नहीं दिखता कि यह बजट महिलाओं को केंद्र में रखकर बनाया गया है. अब ये बात अलग है कि कोई और तबका भी केंद्र में नजर नहीं आता. यह बताता है कि समस्या धन के प्रबंध की है. इसलिए सरकार से कहने के लिए यह सुझाव बनता है कि वह किसी की उम्मीदें ज्यादा न बढ़ा दिया करे.

(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)

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