इंटरव्यू: एशियाई खेल में दमदार पदार्पण के लिए तैयार हैं मुक्केबाज सरजू बाला
Advertisement

इंटरव्यू: एशियाई खेल में दमदार पदार्पण के लिए तैयार हैं मुक्केबाज सरजू बाला

इंडियोनेशिया के जकार्ता और पालेमबांग में 18 अगस्त से शुरू होने वाले एशियाई खेलों में सरजू पहली बार उतर रही हैं.

इसी साल जनवरी में खेली गई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में सरजू ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था साथ ही सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज भी चुनी गई थीं. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली. एशियाई खेलों में पदक जीतने के सपने को साकार करने के लिए भारवर्ग में बदलाव करने वाली मणिपुर की महिला मुक्केबाज सरजू बाला देवी एशिया की दिग्गज मुक्केबाजों को कड़ी टक्कर देने के लिए तैयार हैं. सरजू पहले 48 किलोग्राम भारवर्ग में खेलती थीं, लेकिन ओलंपिक और एशियाई खेलों में यह भारवर्ग नहीं है और इसी कारण उन्होंने ओलंपिक तथा एशियाई खेलों में हिस्सा लेने के लिए कड़ी मेहनत कर वजन बढ़ाया और 51 किलोग्राम में आ गईं. अब वे पदक के लिए जी जान से मेहनत कर रही हैं.

इंडियोनेशिया के जकार्ता और पालेमबांग में 18 अगस्त से शुरू होने वाले एशियाई खेलों में सरजू पहली बार उतर रही हैं. अपने करियर के अभी तक के सबसे बड़े टूर्नामेंट की तैयारियों को लेकर सरजू ने आईएएनएस से विशेष बातचीत की.

25 साल की इस मुक्केबाज ने कहा, "चयन के पहले से ही एशियाई खेलों की तैयारी कर रही हूं. चयन के बाद ग्रेट ब्रिटेन में तैयारी करके आए हैं. वहां अच्छी तैयारी की. कई देशों के मुक्केबाज वहां थे. मैं पहले 48 किलोग्राम भारवर्ग में खेलती थी. इस बार ही 51 किलोग्राम भारवर्ग में शिफ्ट किया है. इस साल मैंने जितने भी टूर्नामेंट खेले हैं सभी में 51 किलोग्राम में खेली थी. मेरे लिए यह टूर्नामेंट टर्निग प्वांइट हो सकता है इसलिए मैं पूरी जी जान लगाकर तैयारी कर रही हूं.

भारवर्ग में कारण पूछने पर सरजू ने ओलंपिक और एशियाई खेलों में पदक की ख्वाहिश के साथ ही अपनी आदर्श मैरी कॉम को कारण बताया. बकौल सरजू, "कारण यह है कि मैं 48 किलोग्राम श्रेणी ओलंपिक में नहीं है और राष्ट्रमंडल खेलों में भी नहीं होती थी. राष्ट्रमंडल खेलों में इस बार 48 थी. एशियाई खेलों में भी 48 नहीं, 51 है. इसलिए मैंने सोचा कि जब मैं इतनी मेहनत कर ही रही हूं तो थोड़ी और कर लूंगी क्योंकि हर खिलाड़ी का सपना ओलंपिक पदक होता है. इसलिए मैंने सोचा की 51 में खेलती हूं."

2014 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाली सरजू ने कहा, "इसके अलावा 48 में मैरी कॉम भी हैं. उनको हराना मुश्किल क्या नामुमकिन है. इसलिए 48 में मौका कम है वहीं 51 में मुश्किल होगा, लेकिन मैं कर सकती हूं तो मैं इस भारवर्ग में आ गई. मैंने मन बना लिया था और ट्रेनिंग शुरू कर जनवरी में राष्ट्रीय खेलों में पहली बार खेली थी."

इसी साल जनवरी में खेली गई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में सरजू ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था साथ ही सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज भी चुनी गई थीं.

अपने पहले एशियाई खेलों में जाने को लेकर सरजू दबाव में हैं? इस पर सरजू ने कहा, "दबाव को हर खिलाड़ी पर होता है, लेकिन मैंने जो अपने प्रशिक्षकों के साथ जो ट्रेनिंग की है, उस पर भरोसा है. वो मुझे काफी कुछ मेरे खेल के बारे में बताते हैं. मैं एशियाई खेलों में अपने आप को साबित करना चाहती हूं. मैं हालांकि पदक के बारे में ज्यादा नहीं सोच रही हूं बस अपना सर्वश्रेष्ठ देने पर अधिक तवज्जो दे रही हूं. ऐसा कर पाई तो पदक भी आ जाएगा."

सरजू इन खेलों में अपने किसी भी विपक्षी देश के मुक्केबाज को हल्के में नहीं ले रही हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस समय मुक्केबाजी का स्तर हर देश में बढ़ा है और इसी कारण प्रतिस्पर्धा कड़ी हो गई है.

उन्होंने कहा, "एशियाई खेलों में सभी मुक्केबाज मुश्किल हैं. इस समय मुक्केबाजी में कोई भी देश का खिलाड़ी आसान नहीं हैं चाहे वो कजाकिस्तान हो, उज्बेकिस्तान हो या चीन, कोरिया हो. सभी के खेल का स्तर काफी बढ़ा है. सभी वहां जीतने ही आ रहे हैं. मैं इतना ध्यान नहीं देती. मैं बस अपनी तैयारी पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हूं."

अपनी आदर्श मैरी कॉम से सरजू क्या सीखती हैं इसके जवाह में सरजू ने कहा कि वह मैरी कॉम से अपनी कमियों के बारे में बात करती हैं. उन्होंने कहा, "कैम्प में मैरी कॉम दीदी साथ ही हैं. वह काफी अनुभवी हैं. मैं उनसे अपनी कमियों के बारे में पूछती हूं तो वह सब कुछ अच्छे से बताती हैं. उनके होने से काफी फायदा होता है."

(इनपुट- आईएएनएस)

Trending news