गृहयुद्ध में भाई की मौत के बाद छोड़ा देश, फिर भी नहीं हारीं रमाला, विश्व चैंपियनशिप में ले रही हैं हिस्सा
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गृहयुद्ध में भाई की मौत के बाद छोड़ा देश, फिर भी नहीं हारीं रमाला, विश्व चैंपियनशिप में ले रही हैं हिस्सा

रमाला अली ने कहा कि बॉक्सिंग में उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन एमसी मैरीकॉम हैं. 

रमाला अली नई दिल्ली में होने वाली विश्च बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने आई हैं. (फोटो: IANS)

नई दिल्ली: रमाला अली, उन चुनिंदा नामों में से एक है, जो इन दिनों नई दिल्ली में होने वाली वुमंस वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में चर्चा में बना हुआ है. सोमालिया की रमाला पहली मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने ब्रिटेन की नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती है. उन्हें अब विश्व खिताब का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. खेल के उनके इस कामयाब सफर के पीछे दर्दनाक और संघर्ष की कहानी छिपी है, जो कम लोगों को ही मालूम है. रामला ने अपनी यह कहानी खुद बताई... 

शरण लेने के लिए 9 दिन का नाव में सफर किया 
रमाला ने बताया कि 1990 के दशक में जब वे दो साल की थीं, तब सोमालिया गृहयुद्ध की आग में जल रहा था. राजधानी मोगादिशू इससे सबसे अधिक प्रभावित था. इसी गृहयुद्ध में उनके 12 साल के भाई की बम विस्फोट में मौत हो गई. इस कारण उनकी मां को परिवार सहित घर छोड़कर ब्रिटेन में शरण लेना पड़ा. लगभग नौ दिनों तक नाव में सफर करने के बाद रमाला का परिवार और अन्य लोग शरणार्थी बनकर केन्या पहुंचे. इसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की मदद से इंग्लैंड में शरण ली. रमाला यहीं बड़ी हुईं और बॉक्सिंग सीखी. 

वजन घटाने के लिए शुरू की बॉक्सिंग
घर छोड़कर दूसरे देश आने की परेशानी के बारे में रमाला ने कहा, ‘मैं उस समय बहुत छोटी थी. मुझे ज्यादा याद नहीं है. लेकिन मेरी बड़ी बहन के लिए यह मुश्किल था. वह 16 साल की थी और उन्हें अपने सभी दोस्तों को पीछे छोड़कर नई दुनिया में आना पड़ा. नए देश में नई शुरुआत करनी पड़ी. हमें भाषा को समझने में संघर्ष करना पड़ा.’ बॉक्सिंग की शुरुआत के बारे में उन्होंने कहा, ‘सोमालिया का खाना बहुत अच्छा था. इस कारण मेरा वजन बढ़ गया था. पलायन के बाद जब हम ब्रिटेन आए, तो कई बच्चों ने वजन को लेकर ताने कसे और मुझे परेशान किया. इसी कारण मैंने स्कूल में वजन घटाने के लिए बॉक्सिंग शुरू की.’

रमाला को बॉक्सर नहीं बनाना चाहते थे माता-पिता  
रमाला ने कहा, ‘बॉक्सिंग से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा. मैं अब किसी के सामने भी निडर होकर खड़ी हो सकती हूं. इसके जरिए ही मैने नए देश में दोस्त भी बनाए.’ रमाला 2016 में ब्रिटिश राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतने वाली पहली मुस्लिम महिला बॉक्सर बनीं. हालांकि, रमाला की मां अनीसा माये मालिम और पिता इमाम को यह पसंद नहीं था कि बेटी बॉक्सिंग करे. दरअसल, बॉक्सिंग में छोटे कपड़े पहनने पड़ते थे और यह बात रमाला के माता-पिता को बहुत दुखी करती थी. इसके बावजूद रमाला ने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा. रमाला ने आज दुनियाभर में नाम कमाया है. उनका परिवार भी आज उनके साथ है. 

मेरा और मैरीकॉम का संघर्ष एक जैसा 
जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा के रूप में पूछे जाने पर रमाला ने पांच बार की विश्व चैंपियन एमसी मैरीकॉम का नाम लिया. उन्होंने कहा, ‘मैरीकॉम और मेरे जीवन का संघर्ष एक जैसा ही रहा. उनके परिवार ने भी शुरुआत में उनका समर्थन नहीं किया था. उन्होंने इतनी बड़ी उपलब्धियां हासिल की और वे इस समय में महिला बॉक्सिंग का चेहरा हैं. ऐसे में वे सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. मुझे इससे उम्मीद मिली कि एक दिन मैं उनकी तरह बनूंगी और अन्य लोग मुझे देखते हुए प्रेरणा लेंगे.’

सोमालिया के लिए खेलने पर मिला मां का समर्थन 
रमाला की मां ने उनका समर्थन तो किया, लेकिन एक शर्त भी रखी कि वे सोमालिया के लिए बॉक्सिंग करेंगी. इसी के बाद रमाला ने ब्रिटेन की टीम को छोड़ दिया. वे पिछले साल से सोमालिया के लिए खेल रही हैं. उन्होंने पति और कोच रिचर्ड मूरे की मदद से सोमालिया में बॉक्सिंग फेडरेशन की स्थापना भी की. मूरे अब सोमालिया की नेशनल बॉक्सिंग टीम के कोच हैं. रमाला को अस्थमा की समस्या है, लेकिन इसके बावजूद वे अपने लक्ष्य को हासिल करने दिल्ली की आबो हवा में आई हैं. वे 15 नवम्बर से शुरू हो रही आईबा विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने आई हैं. इस चैंपियनशिप में 70 देशों की 300 से अधिक महिला बॉक्सर हिस्सा ले रही हैं. 

(आईएएनएस)

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