साउथ अफ्रीका से जीतने के लिए ये सबक आएगा काम
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साउथ अफ्रीका से जीतने के लिए ये सबक आएगा काम

साउथ अफ्रीका से जीतने के लिए ये सबक आएगा काम

सुविज्ञा जैन

चैम्पियंस ट्रॉफी के लिए साउथ अफ्रीका से होने वाले मुकाबले के पहले रणनीति बन रही है. पता नहीं कि जीवन मरण के इस मुकाबले के पहले श्रीलंका से हारे मैच के सबक याद किए जा रहे हैं या नहीं. लेकिन श्रीलंका से सनसनीखेज तौर पर हारे उस मैच का ईमानदारी से विश्लेषण होना जरूर चाहिए. उस हार का ठीकरा गेंदबाजों में फोड़कर हम आगे बढ़ चले हैं. जबकि तथ्य यह साबित कर रहे हैं श्रीलंका से हार का मुख्य कारण बल्लेबाजी की रणनीति में अपनाई गई हीला हवाली थी.

क्यों हुई हीला हवाली
इस मैच में टॉस हारने के बाद हमें पहले बल्लेबाजी करनी पड़ रही थी. हमें श्रीलंका को इतने रनों का दुसाध्य लक्ष्य बनाकर देना था जिसे वे हासिल न कर पाएं. वैसे  यह तय करने का काम ज़रा मुश्किल होता है क्योंकि क्रिकेट में बल्लेबाजों और गेंदबाजों के अलावा पिच भी खूब खेलती है. इसलिए पिच को पढ़ना भी इस खेल का हिस्सा है. बहरहाल श्रीलंका से हारे उस मैच के ओवर दर ओवर बने रनों के ग्राफ में नजर डालें तो यह निष्कर्ष निकलता है कि हम सपाट पिच पर सपाट खेलकर तीन सौ रन का आंकड़ा पार करने के पारंपरिक लक्ष्य बनाकर देने में लगे रहे और 321 रन बनाने के बावजूद श्रीलंका ने हमें मजे से हरा दिया.

मुसलसल एक सी रफ़्तार
गौर करें तो भारत ने एक सपाट पिच पर न सिर्फ शुरू के दस ओवर में सिर्फ पांच की औसत से बल्लेबाजी की बल्कि विकेट न गिरने के बावजूद लगभग वही रफ्तार कायम रखी. आगे पंद्रह और फिर बीस और फिर यहां तक कि 25 ओवर तक साढे पांच रन प्रति ओवर से ज्यादा की रफतार पकड़ ही नहीं पाई. हद यह थी कि आधी पारी निकलने के बाद भी और कोई विकेट न गिरने के बावजूद तेजी से रन बनाने का सिलसिला शुरू नहीं हुआ. दिग्गज कमेंटेटरों ने भी यही खुशफहमी पाले रखी कि 300 का आंकड़ा तो आसानी से पार कर लेंगे. क्या यह ध्यान रखने की जरूरत नहीं थी कि हम पहले बल्लेबाजी कर रहे थे. हमें लक्ष्य हासिल नहीं करना था बल्कि श्रीलंका के लिए एक कठिन लक्ष्य बना कर देना था. और जब तय हो गया था कि पिच सपाट है और कोई स्विंग या अनियमित उछाल की गुंजाइश नहीं निकल रही है तो क्या उसी समय यह हिसाब नहीं लगाया जाना चाहिए था कि इस पिच में तीन सवा तीन सौ रन नहीं बल्कि कम से कम साढे तीन से पौने चार सौ रन भरे पड़े हैं. यह बात खेल के पूरे निन्यानवे ओवर में ज्यादा विकेट न गिरने से साबित होती है.

क्या रहा विशेषज्ञों का रवैया
वैसे तो देश में हर क्षेत्र में विश्वसनीय विशेषज्ञों और विश्वसनीय जानकारों का टोटा पड़ा हुआ है लेकिन क्रिकेट में तो लगने लगा है कि हमारे अनुभवी विशेषज्ञ खुशफहमी में रहने और अपने श्रोताओं को खुशफहमी में डालने के आदी होते जा रहे हैं. श्रीलंका से हुए मैच में टॉस जीतने के बाद विशेषज्ञ कमेंटर और विशेषज्ञ अतिथियों ने उस पिच में 280 से 300 रन भरे होने की बात कही थी. जाहिर इस अनुमान में यह नई प्रवृत्ति शामिल रही होगी कि आजकल शुरू के दस ओवर में धीमें खेलकर अपने विकेट बचाने की सलाह दी जाने लगी है. भले ही इसके लिए यह तर्क दिया जाता हो कि अगर विकेट हाथ में होंगे तो बाद के ओवर सब भरपाई हो जाएगी. लेकिन सांख्यिकीय नियमों के लिहाज से क्या शुरू के दस ओवर में सुरक्षित खेलने के चक्कर में अधिकतम रन बनाने की गुंजाइश हम तभी ही कम नहीं करते हैं. और फिर यह कौन बताकर गया है कि तेजी से खेलने में विकेट जरूर ही चला जाएगा. जबकि अगर विकेट चला भी जाए तो क्या आगे के दस खिलाड़ी संतुलन नहीं बैठा सकते.fallback

हाल ही में शुरू हुई है धीरे खेलने की प्रवृत्ति
अभी पांच सात साल पहले तक एक दिवसीय मैच के पहले पावर प्ले के दस ओवरों में आमतौर पर साठ सत्तर रन बनाने का लक्ष्य हुआ करता था. आज चालीस पचास रन की तारीफ की जाने लगी. खैर इस पर आगे सोच विचार करके एक कायदा बनाया जा सकता है लेकिन फिलहाल साउथ अफ्रीका से होने वाले मुकाबले के पहले हमें रन रेट प्रबंधन पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की दरकार है.

सौ फीसदी प्रदर्शन के लिए भी रफ्तार ही है विकल्प
कुल मिलाकर क्रिकेट भी दूसरे खेलकूद की तरह सौ फीसदी क्षमता के प्रदर्शन का खेल बन चुका है. पचास ओवर और बीस ओवर के प्रारूप के कारण क्रिकेट पर कलात्मकता का प्रदर्शन बेशक पीछे चला गया हो. लेकिन एकाग्रता के साथ पूरे दम खम प्रदर्शन उससे भी ज्यादा रोचक बन गया है. क्रिकेट में दम खम दिखाने के लिए विकेट को हथेली पर रखकर खेलना पड़ता है. साउथ अफीका से जीवन मरण का मैच खेलते समय अपना सौ फीसदी देने के लिए बड़े बल्लेबाजों को अपना विकेट हथेली पर रखकर खेलने का जोखिम उठाना ही पड़ेगा. सौ फीसदी प्रदर्शन पक्का करने के लिए तेज खेलने के अलावा और क्या तरीका हो सकता है.  
 
गेंदबाजों के गिराए गए मनोबल पर गौर
विशेषज्ञों और मैच का आखों देखा हाल सुना रहे कमेंटेटरों ने अपने गेंदबाजों का मनोबल ज्यादा ही गिरा दिया है. अगर कभी बारीकी से पड़ताल की जाएगी तो निकलकर आ सकता है कि बल्लेबाजों की छवि को बचाने का काम ज्यादा होने लगा है. इस चक्कर में गेंदबाजों की छवि को दांव पर लगा देना ठीक नहीं. तीन सौ इक्कीस रन का लक्ष्य भी गेंदबाज नहीं बचा पाए यह आरोप इसलिए ठीक नहीं है कि उस मैच के पूरे विश्लेषण से यही साबित हो रहा है कि उस पिच पर भारत के पास थोड़े बहुत नहीं बल्कि पचास रन और बनाने की गुंजाइश थी. इसलिए साउथ अफ्रीका से मैच के पहले अगर किसी लक्ष्य को बनाना हो तो अब सवा तीन या साढ़े तीन सौ नहीं बल्कि पौने चार सौ के लक्ष्य की बात होनी चाहिए. भले ही पिच के मिजाज और अच्छी गेंदबाजी हमें उतने रन न बनाने दे लेकिन पुराने आंकड़ों के आधार पर अपना लक्ष्य छोटा नहीं रख सकते. वैसे भी सांख्यिकी के लिहाल से देखें तो पचास ओवर में 438 रन की नजीर मौजूद है. इस बीच इधर आठ दस साल में टी20 प्रारूप में बीस ओवर में दो सवा दो सौ रन बनाने में खिलाड़ी आदी हो गए हैं.
 
साउथ अफ्रीका से खलने के पहले यह जरूरी सबक
सेमी फाइनल में पहुंचने के लिए दुनिया की एक दिग्गज टीम साउथ अफ्रीका से खेलना है. लिहाजा अक्लमंदी इसी में है कि श्रीलंका से हारकर जो ताज़ा सबक मिला है उससे रन बनाने की रफ्तार पर भी गौर करें. हार का ठीकरा गेंदबाजों के सिर फोड़ने की गलत बात को सही मानने के रवैए के कारण कहीं ऐसा न हो कि एक बार फिर चोट खा बैठें.

(लेखिका, खेल विशेषज्ञ और सोशल इंटरप्रेन्योर हैं.)

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