लोगों ने समझा मर गई, लेकिन एवरेस्ट जीतने वाली सबसे कम उम्र की लड़की बन गई शिवांगी
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लोगों ने समझा मर गई, लेकिन एवरेस्ट जीतने वाली सबसे कम उम्र की लड़की बन गई शिवांगी

शिवांगी पाठक की एवरेस्ट फतह करने की तैयारी की कहानी अनूठी है. उसका संघर्ष खुद को तराशने की एक बेहतरीन दास्तान हैं. 

शिवांगीपाठक ने दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देते हुए एवरेस्ट फतह करने में सफलता हासिल की. (फोटो IANS)

हिसार : हरियाणा की एक किशोरी ने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी सागरमाथा (एवरेस्ट) को फतह कर देश की लड़कियों के लिए प्रेरणा की एक मिसाल कायम की है. शिवांगी पाठक एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराने वाली भारत की सबसे कम उम्र की लड़की है. शिवांगी का यह विजय अभियान काफी कठिन रहा. एक बार उससे संपर्क टूट जाने पर सभी खामोश थे और यह कयास लगाया जाने लगा कि दुर्गम पर्वतीय प्रदेश में शिवांगी की जीवन लीला समाप्त हो गई होगी. 

  1. सात घंटे प्रशिक्षण की वजह से स्कूल भी नहीं जा पाती थी
  2. कड़ी मेहनत को लेकर कभी शिकायत नहीं की शिवांगी ने
  3. दृढ़ इच्छाशक्ति की मिसाल पेश की है शिवांगी ने

मगर 10 घंटे बाद पर्वत शिखर से खबर मिली कि शिवांगी एवरेस्ट फतह करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय किशोरी बन गई है. शिवांगी की मां आरती ने कहा, "हम उसकी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित थे. हमारे पूरे परिवार में किसी ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया. सभी ईश्वर से उसकी सलामती की दुआ कर रहे थे. लेकिन वह शिखर पर पहुंच चुकी थी. इस बात को जानकर हमें जो खुशी मिली उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती. हमें उसपर गर्व है. उसने जो ठाना उसे पूरा किया."

पूरे भारत में अब एक मशहूर शख्सियत बन चुकी महत्वाकांक्षी लड़की शिवांगी की यह यात्रा उसकी मां के द्वारा किए गए एक परिहास से आरंभ हुई. आरती ने बताया, "हमने एवरेस्ट फतह करने वाली ममता सोधा को पुलिस उपाधीक्षक नियुक्त किए जाने की खबर सुनी. हमने परिहास में शिवांगी से कहा कि वह ऐसा ही कोई बड़ा काम कर दिखाए."

बाद में शिवांगी ने भारत की पहली विकलांग महिला के एवरेस्ट फतह के कुछ वीडियो देखे, जिससे प्रेरणा पाकर उसने नवंबर 2016 में एवरेस्ट की चढ़ाई करने का फैसला लिया. इस चुनौती को स्वीकार करने की तैयारी में उसने खुद को प्रशिक्षित किया.

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एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान शिवांगी का दुनिया से संपर्क कट गया था. (फोटो साभार : IANS)

शिवांगी ने अपने इस सफर की शुरुआत को याद करते हुए बताया, "मेरी प्रशिक्षिका ने तो पहले मेरे बालों के स्टाइल पर तंज कसा और कहा कि क्या तुम खेल के मैदान में आई हो या फैशन वॉक करने. मैं मोटी थी और मेरे बाल लंबे थे. मुझे चोट पहुंची लेकिन मैंने इसकी परवाह नहीं की क्योंकि मैं बड़ा सपना देख रही थी."

17 किलो घटाया वजन
कठिन परिश्रम और लगन से आखिरकार उसका सपना साकार हुआ. उसने अपने बाल छोटे करवाए और अपने लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में कड़ी मेहनत करने लगी. पहले उसका वजन 65 किलोग्राम था जो दो साल बाद चोटी की चढ़ाई करते समय घटकर महज 48 किलोग्राम रह गया. 

शिवांगी ने बताया, "पर्वतारोहण की जरूरतों के अनुसार मैंने अपने आपको ढाला. मैंने बाल छोटे करवाए और उसी प्रशिक्षिका रिंकू पन्नू के निर्देशन में प्रशिक्षण लेना शुरू किया. वह मेरी गुरु है. उन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाया. मैं उनकी बहुत आभारी हूं." मुस्कराती हुई शिवांगी ने बताया, "मेरे बाल बहुत छोटे थे, मैदान में लड़कियां मुझे लड़का समझ लेती थी और मेरे ऊपर ताने मारती थी." रोज वह छह से सात घंटे प्रशिक्षण लेती थी इसलिए वह स्कूल नहीं जा पाती थी और अपना पूरा वक्त एवरेस्ट की चढ़ाई की तैयारी में ही गुजारती थी. 

प्रशिक्षण सत्र के दौरान वह 10 किलोमीटर की दौड़ लगाती थी और भारोत्तोलन, रस्सीकूद करती थी. वह 20 किलोग्राम का भार पीठ पर लाद कर दौड़ती थी. शिवांगी ने बताया, "मैंने अपनी प्रशिक्षिका से वादा था कि मैं 5,000 बार रस्सी कूद करुंगी मगर मैं उसे पूरा नहीं कर पाई. एक दिन मैं रात 11.30 बजे ही जग गई क्योंकि 200 बार कूदना बाकी रह गया था और उसे आधी रात से पहले पूरा करना था." 

पन्नू ने चकित होकर कहा, "देखो इसका समर्पण." शिवांगी एक अप्रैल को नेपाल गई और पांच अप्रैल को वहां बेस कैंप पहुंची. दो सप्ताह वहां के वातावरण में रहने के बाद आखिरकार 10 मई को उसका एवरेस्ट मिशन आरंभ हुआ. 

शिवांगी ने बताया, "पूरा मार्ग कंकड़-पत्थर से भरा पड़ा था और फिसलन भी काफी ज्यादा थी. आगे कई बाधाएं थीं. शिखर पर पहुंचने के एक दिन पहले पहाड़ी क्षेत्र में तूफान का सामना करना पड़ा. मगर मैं लगातार पूरे उत्साह के साथ बाधाओं को पार करती रही." उन्होंने बताया, "मार्ग में बर्फ की कड़ी चादर बिछी थी जिसे तोड़ना कठिन था और उसपर पैर फिसल रहे थे. प्रतिकूल मौसमी दशाओं के चलते एक दिन मैं बीमार पड़ गई, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी."

शिवांगी के साथ उसका गाइड अंग तेंब शेरपा चल रहा था. उसने बताया, "इस अभियान के दौरान गाइड ही मेरे भगवान थे. वह मुझसे अपनी छोटी बहन की तरह व्यवहार करते थे, जिससे मुझे अपने परिवार से बिछुड़ने का गम नहीं सताया. वह हर मुसीबत में मेरे साथ थे."

सबसे पहले मां की आई याद
शिवांगी ने बताया, "15 मई को सुबह आठ बजे जब मैं दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर पहुंची तो सबसे पहले मुझे मेरी मां याद आई. मैं उस समय उनसे लिपट जाना चाहती थी. मैं काफी खुश थी कि मैंने उनका गौरव बढ़ाया था." उसने बताया, "हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर राष्ट्रीय झंडा फहराते हुए गर्व का अहसास हो रहा था. मेरी यह उपलब्धि हरियाणा से लेकर पूरे देश की लड़कियों के लिए प्रेरणादायी थी." 

एवरेस्ट विजेता शिवांगी ने कहा, "मेरा मानना है कि लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं और कहीं भी जा सकती हैं. बस उनको मन में ठान लेना है कि उन्हें यह काम करना है. साथ ही उस काम को पूरा करने के प्रति उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति व समर्पण होना चाहिए." उसने हर माता-पिता से अपनी बेटी को प्रोत्साहित करने की अपील की ताकि कोई लड़की अपने आपको किसी काम में लड़के से कम नहीं महसूस करे.

माता पिता का मिला सबसे ज्यादा सहयोग
शिवांगी ने कहा, "मुझे अपने माता-पिता से सबसे ज्यादा समर्थन मिला. इसलिए मुझे मालूम है कि किसी लड़की के लिए उसके फैसले में माता-पिता के सहयोग की कितनी अहमियत होती है."

वह 18 साल की उम्र से पहले दूसरे महादेशों की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों की चढ़ाई करने की तमन्ना रखती है. शिवांगी की कोच पन्नू ने कहा कि यह काम उसके लिए काफी आसान है. उन्होंने कहा, "उसने दुनिया की सबसे ऊंची शिखर को फतह किया है. इसलिए दुनिया की अन्य पर्वत शिखरों की चढ़ाई उसके लिए मुश्किल नहीं है."

पन्नू ने कहा, "वह महत्वाकांक्षी लड़की है. उसने काफी त्याग किए हैं. कड़ी मेहनत करवाने के कारण थककर चूर होने पर भी उसने कभी शिकायत नहीं. उसने अपनी पसंद की सारी भोज्य सामग्री छोड़ दी और वजन कम करके खुद को चुस्त-दुरुस्त किया. मुझे उसपर विश्वास था कि वह ऐसा जरूर करेगी."

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