श्रीयंत्र दो प्रकार के होते हैं. एक को उर्ध्वमुखी और दूसरे को अधोमुखी कहा जाता है. कहते हैं कि श्रीयंत्र की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी.

दुनिया में सबसे ज्यादा प्रसिद्द और ताकतवर यंत्र इसको ही माना जाता है. श्रीयंत्र धन का प्रतीक होता है और शक्ति और अपूर्व सिद्धि का प्रतीक भी माना जाता है.

श्रीयंत्र को सही तरह से इस्तेमाल किया जाए तो दरिद्रता इंसान को कभी छू भी नहीं पाती है, साथ ही घर में समृद्धि और सम्पन्नता भी आती है.

गुरु शंकराचार्य ने उर्ध्वमुखी श्रीयंत्र को सर्वाधिक मान्यता दी है.

हालांकि, श्रीयंत्र को घर पर स्थापित करने जा रहे हैं तो कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है, वरना मुश्किलें खड़ी हो सकती है.

श्रीयंत्र को काम करने के स्थान, पढ़ाई के स्थान और पूजा पाठ के स्थान पर लगा सकते हैं.

जहां भी श्रीयंत्र स्थापित करें, वहां सात्विकता का विशेष ख्याल रखें और नियमित मंत्र जाप करें.

स्फटिक का पिरामिड वाला श्रीयंत्र पूजा के स्थान पर स्थापित करें. इसे गुलाबी कपड़े या छोटी सी चौकी पर स्थापित करें.

श्रीयंत्र को रोजाना सुबह जल से स्नान कराएं, फिर पुष्प अर्पित करने के बाद घी का दीपक जलाकर श्रीयंत्र के मंत्र का जाप करें.

श्रीयंत्र को पूजा घर में शुक्रवार या किसी शुभ मुहूर्त पर स्थापित करना चाहिए.

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