22 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने 60 साल पुराने सिद्धांतों में दोहराई निष्ठा, किया मार्च
Advertisement

22 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने 60 साल पुराने सिद्धांतों में दोहराई निष्ठा, किया मार्च

सौ मीटर की दूरी भले ही लंबी न हो लेकिन 22 राष्ट्राध्यक्षों समेत 90 वैश्विक नेता मानवाधिकार, संप्रभुता और समानता पर केंद्रित 60 साल पुराने एक ऐतिहासिक सम्मेलन की याद में एकसाथ मार्च करते हैं तो वह अवश्य ही महत्वपूर्ण हो जाता है।

बांडुंग (इंडोनेशिया) : सौ मीटर की दूरी भले ही लंबी न हो लेकिन 22 राष्ट्राध्यक्षों समेत 90 वैश्विक नेता मानवाधिकार, संप्रभुता और समानता पर केंद्रित 60 साल पुराने एक ऐतिहासिक सम्मेलन की याद में एकसाथ मार्च करते हैं तो वह अवश्य ही महत्वपूर्ण हो जाता है।

करीब 90 देशों के प्रतिनिधियों ने आज यहां 131 साल पुराने होटल सेवाय से गेडुंग मर्डेका नामक एक अन्य ऐतिहासिक स्थल तक मार्च किया। गेडुंग मर्डेका ने ही सन् 1955 के बांडुंग सम्मेलन की मेजबानी की थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के अंतर्गत भारत समेत 25 देशों ने हिस्सा लिया था।

आज के कार्यक्रम का उद्देश्य बांडुंग सम्मेलन की इस 60 वीं वषर्गांठ को मनाना और उसके मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराना है। गेडुंग मर्डेका (स्वतंत्रता भवन), जिसे अब संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है, में आज गणमान्यों की कुर्सियां सजायी गयी थी जो 60 साल पहले लगायी गयी थीं।

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति राबर्ट मुगाबे उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने हालैंड की ऐतिहासिक इमारतों के मध्य के मार्ग पर मार्च किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपने पैर में जख्म की वजह से इस मार्च में हिस्सा नहीं ले पायीं लेकिन जहां उसका समापन हुआ वह वहां मौजूद थीं।

पूरे मार्ग पर नेहरू, इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो, तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री झाउ इललाई, मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर और अन्य शीर्ष नेताओं के पोस्टर लगे थे। सुकर्णो ने 1955 का सम्मेलन बुलाया था जिसमें 10 घोषणाएं पारित हुई। उन घोषणाओं में एक में पंचशील सिद्धांत था जो भारत की विदेश नीति का मेरूदंड बना।

इस सम्मेलन में कुछ अविकसित देशों ने आपस में साथ आते हुए निश्चय किया कि वे शीतयुद्ध काल में किसी भी बड़ी शक्ति के साथ नहीं होंगे तथा मानवाधिकार, समानता एवं राष्ट्रों की संप्रुभता का सम्मान करेंगे। यहीं से गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रादुर्भाव हुआ।

Trending news