मंगल ग्रह की सतह पर हो सकता है खारा जल
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मंगल ग्रह की सतह पर हो सकता है खारा जल

मंगल की सतह पर खारा जल कुछ खास परिस्थितियों में मौजूद हो सकता है लेकिन यह जीवन के लिए सहयोग नहीं करेगा। नासा के क्यूरोसिटी रोवर द्वारा लाल ग्रह से जुटाए गए डेटा से यह संकेत मिले हैं। यह नतीजा करीब दो साल के मौसम डेटा पर आधारित है जिसे ग्रह के विषुवतीय क्षेत्र के पास एक गड्ढे से एकत्र किया गया था।

मंगल ग्रह की सतह पर हो सकता है खारा जल

वाशिंगटन : मंगल की सतह पर खारा जल कुछ खास परिस्थितियों में मौजूद हो सकता है लेकिन यह जीवन के लिए सहयोग नहीं करेगा। नासा के क्यूरोसिटी रोवर द्वारा लाल ग्रह से जुटाए गए डेटा से यह संकेत मिले हैं। यह नतीजा करीब दो साल के मौसम डेटा पर आधारित है जिसे ग्रह के विषुवतीय क्षेत्र के पास एक गड्ढे से एकत्र किया गया था।

यूनिवर्सिटी ऑफ अरकानसस सेंटर फॉर स्पेस एंड प्लेनेटरी साइंसेज के सहायक प्राध्यापक विंसेट शेवरियर ने बताया कि कुछ खास परिस्थितियों में प्रति दिन कुछ घंटे आपके पास मंगल की सतह पर तरल खारा जल बनाने के सही हालात हो सकते हैं।

खारे जल की मौजूदगी मार्स आर्बिटर द्वारा किए गए स्थिति के अवलोकन का ब्योरा दे सकती है जिसे ढलान पर गहरी रेखाएं कहा जाता है और यह ग्रह के गर्म मौसम के दौरान बढ़ता है। हालांकि, शेवरियर का मानना है कि मंगल पर परिस्थितियां जीवन में सहयोग देने के लिए काफी कठिन है।

उन्होंने कहा, यदि हम खारा जल बनने के थर्मोडायनामिक्स के अवलोकन को और भूक्षेत्रीय जीवों को जोड़ कर देखें तो क्या मंगल के खारे जल में जीवों के लिए एक संभावना तलाशना मुमकिन है। मंगल ठंडा है, अत्यधिक सूखा है और पृथ्वी की तुलना में 200 गुना कम वायुमंडीय दबाव है। सतह पर कोई शुद्ध जल जम सकता है या मिनटों में उबल सकता है।

हालांकि, 2008 में नासा के फिनीक्स लैंडर ने धुव्रीय मिट्टी के नमूनों में परक्लोरेट नमक की पहचान की थी। परक्लोरेट पृथ्वी पर दुर्लभ है लेकिन ये वायुमंडल से नमी सोखने के लिए और जल के जमाव के तापमान को कम करने के लिए जाना जाता है। परक्लोरेट की व्यापक रूप से मौजूदगी तरल जल को मंगल पर संभव बनाती है।

क्यूरोसिटी रोवर ने विषुवतीय मिट्टी में परक्लोरेट की मौजूदगी की पुष्टि की है। भविष्य में मंगल अभियान में खारे जल से नमूने सीधे तौर पर लिए जा सकेंगे। शोधार्थियों ने कहा है कि इस बात की संभावना है कि प्राचीन मंगल पर कभी जीवन की संभावना रही होगी। यह अध्ययन जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है।

 

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