‘मंगल के भूकंप’ से पैदा हो सकती है जीवन के लिए पर्याप्त हाइड्रोजन
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‘मंगल के भूकंप’ से पैदा हो सकती है जीवन के लिए पर्याप्त हाइड्रोजन

एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि भूकंप के दौरान चट्टानों के आपस में घषर्ण के कारण बनी नई चट्टानों में हाइड्रोजन पर्याप्त मात्रा में होती है। मंगल पर इस तरह की भूकंपीय गतिविधि जीवन के लिए जरूरी पर्याप्त हाइड्रोजन का निर्माण कर सकती है। शोधकर्ताओं ने स्कॉटलैंड के तट पर आउटर हेब्राइड्स की सक्रिय ‘फॉल्ट लाइनों’ के आसपास बनी चट्टानी संरचनाओं का अध्ययन किया था। इन शोधकर्ताओं में अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी शामिल थे।

‘मंगल के भूकंप’ से पैदा हो सकती है जीवन के लिए पर्याप्त हाइड्रोजन

वॉशिंगटन: एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि भूकंप के दौरान चट्टानों के आपस में घषर्ण के कारण बनी नई चट्टानों में हाइड्रोजन पर्याप्त मात्रा में होती है। मंगल पर इस तरह की भूकंपीय गतिविधि जीवन के लिए जरूरी पर्याप्त हाइड्रोजन का निर्माण कर सकती है। शोधकर्ताओं ने स्कॉटलैंड के तट पर आउटर हेब्राइड्स की सक्रिय ‘फॉल्ट लाइनों’ के आसपास बनी चट्टानी संरचनाओं का अध्ययन किया था। इन शोधकर्ताओं में अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी शामिल थे।

इस अध्ययन के पहले लेखक और येल के भूविज्ञानी सीन मैकमोहन ने कहा, ‘पिछले अध्ययन से यह पता चला था कि जब भूकंप के दौरान चट्टानें आपस में टकराकर टूटती हैं, तो हाइड्रोजन पैदा होती है। हमारा आकलन कहता है कि सक्रिय फॉल्ट लाइनों के आसपास सूक्ष्म जीवों के विकास के लिए पर्याप्त हाइड्रोजन होती है।’ इंसान और अन्य जानवर अपनी उर्जा मुख्यत: ऑक्सीजन और शर्करा के बीच की क्रिया से लेते हैं, वहीं बैक्टीरिया उर्जा लेने के लिए विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए हाइड्रोजन के ऑक्सीकरण से धरती के भीतर रहने वाले बैक्टीरिया के लिए पर्याप्त मात्रा में उर्जा पैदा होती है।

मैक मोहन ने कहा, ‘मंगल भूकंपीय गतिविधियों के लिहाज से बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है लेकिन हमारा अध्ययन दिखाता है कि ‘मंगल पर आने वाले भूकंपों’ से सूक्ष्मजीवों की छोटी जनसंख्या के लिए एक छोटी अवधि के लिए पर्याप्त मात्रा में हाइड्रोजन पैदा हो सकती है।’ उन्होंने कहा, ‘यह मंगल की उपसतह पर जीवन संबंधी तस्वीर का एक पहलू है। वहां जीवन के लिए उर्जा के अन्य स्रोत भी उपलब्ध हो सकते हैं।’ यह शोधपत्र एस्ट्रोबायोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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