भारत में लोकतंत्र का तानाशाही में तब्दील होना मुमकिन नहीं: अरुण जेटली
Advertisement

भारत में लोकतंत्र का तानाशाही में तब्दील होना मुमकिन नहीं: अरुण जेटली

ललित मोदी विवाद पर विपक्ष द्वारा जारी हमले के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि सरकार कानून के मुताबिक काम करेगी और सुनिश्चित करेगी की सच्चाई की उच्चतम कसौटियों का पालन हो।

भारत में लोकतंत्र का तानाशाही में तब्दील होना मुमकिन नहीं: अरुण जेटली

सैन फ्रांसिस्को : वित्त मंत्री अरण जेटली ने जून 1975 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा घोषित आपातकाल को स्वतंत्र भारत का सबसे अंधकारपूर्ण दौर करार देते हुए आज कहा कि विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को अब तानाशाही में बदलना संभव नहीं हैं। जेटली ने कहा कि आपातकाल ऐसा समय था जिसने यह दर्शाया कि संविधान के कुछ प्रावधानों का इस्तेमाल कर लोकतंत्र को तानाशाही में तब्दील किया जा सकता है और नौकरशाही, पुलिस, मीडिया एवं न्यायपालिका जैसी प्रमुख संस्थाएं धराशायी हो सकती हैं।

उन्होंने कहा ‘मुझे लगता है कि आज वैश्विक चेतना लोकतंत्र के पक्ष में है और तानाशाही पर जिस तरह के प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, वहीं इसका निवारण हो सकते हैं।’ जेटली ने कहा कि मुझे लगता है कि मीडिया भी मजबूत है, राजव्यवस्था मजबूत है और वैश्विक संस्थान भी मजबूत हैं। विश्व आज यह स्वीकार नहीं करेगा कि आज वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा लोकतंत्र तानाशाही में तब्दील हो जाए।’

भाजपा के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी के हाल के उस बयान पर बड़ा विवाद छिड़ गया था जिसमें उन्होंने कहा था, ‘लोकतंत्र को कुचलने वाली ताकतें अभी अपेक्षाकृत अधिक मजबूत हैं और आपातकाल जैसी परिस्थिति फिर पैदा हो सकती है। कांग्रेस ने जेटली की इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाने के तौर पर देखा जबकि आम आदमी पार्टी ने इसे ‘मोदी की राजनीति पर पहला अभियोग है।’ अन्य विपक्षी दलों ने भी कहा कि आडवाणी की टिप्पणी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

आडवाणी की टिप्पणी का हवाला दिए बगैर जेटली ने कहा कि प्रौद्योगिकी के कारण आज मीडिया सेंसरशिप संभव नहीं है। जेटली ने कहा ‘समाचारों का प्रसार इंटरनेट के जरिए हो रहा है और इंटरनेट को सेंसर नहीं किया जा सकता है।’ जेटली ने कहा कि राज-व्यवस्था आपाकाल में भी मजबूत थी लेकिन ‘मीडिया ने मोटे तौर पर घुटना टेक दिया था।’ आपातकाल से जुड़े अपने अनुभवों को याद करते हुए जेटली ने कहा ‘उन्हें उम्मीद है कि आज न्यायपालिका कहीं अधिक स्वतंत्र हैं और यह तानाशाही प्रवृत्तियों के आगे नहीं झुकती जैसे आपातकाल में झुक गई थी।’ उन्होंने कहा ‘‘दरअसल अब बिना किसी आधार के लिए किसी की गिरफ्तारी संभव नहीं है, मीडिया सेंसरशिप अब संभव नहीं है और उम्मीद है कि न्यायपालिका कहीं अधिक स्वतंत्र है इसलिए अब किसी के लिए भी इन तीनों स्तंभों के बगैर लोकतंत्र को तानाशाही में तब्दील करना संभव नहीं है।’

जेटली ने कहा कि देश में वंशवाद और वंशवादी राजनीतिक दलों की परिपाटी आपातकाल के साथ ही शुरू हुई। उन्होंने कहा कि आपातकाल लगे 40 वर्ष हो चुके और वह ‘‘स्वतंत्र भारत का सबसे अंधकारपूर्ण समय था।’ वित्त मंत्री ने कहा कि आपातकाल दो वजहों से लगाया गया था। पहली वजह यह थी कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री की प्रधानमंत्री कुर्सी के लिए खतरा पैदा हो गया था कि क्योंकि उन्हें चुनाव में भ्रष्ट तरीके अपनाने का दोषी करार दिया गया था। दूसरे वह आपातकाल में भारत को वंशवादी शासन में तब्दील करने के लिए तानाशाही की शक्ति का उपयोग करना चाहती थीं।’ जेटली ने कहा कि आपात काल ऐसा दौर था जबकि नागरिकों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गयी थी, व्यक्तिगत स्वतंत्र का कोई मोल नहीं था, लाखों लोग गिरफ्तार कर लिए गए थे, मीडिया पर सेंसरशिप लागू कर दी गयी थी और न्यायिक स्वतंत्रता का पूरी तरह गला घोंट दिया गया था।

उन्होंने कहा ‘मैं उस वक्त छात्र नेता था। मैं आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में पहली पांत में था। मैं उन पहले लोगों में शामिल था जिन्हें आपातकाल में गिरफ्तार किया गया था। और फिर 19 महीने बाद जब आपतकाल खत्म हुआ तो मुझे चुनाव प्रचार में भाग लेने का मौका मिला।’’ उस दौर में संस्थाओं की कमजोरी के बारे में जेटली ने कहा कि उस समय लोगों के खिलाफ बड़ी संख्या में फर्जी मामले दर्ज किए गए - उनकी संख्या हजारों-लाखों में - थी।

उन्होंने कहा ‘एक भी पुलिस वाला खड़ा नहीं हुआ और यह नहीं कहा कि मैं फर्जी मामले दर्ज नहीं करूंगा। हजारों-लाखों लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी के आदेश जारी हुए। एक भी कलेक्टकर तन कर नहीं कह पाया कि फर्जी गिरफ्तारी आदेश पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा। जेटली ने कहा ‘इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन को छोड़कर सभी समाचारपत्र लेट गए थे और तानाशाही का प्रशस्तिपाठ करने लगे थे। मीडिया की स्थिति दयनीय हो गयी थी। हालांकि उच्चतम न्यायालयों ने यह कहते हुए कुछ साहस दिखाया था कि बंदियों को गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का अधिकार है पर उच्चतम न्यायालय ने एक के मुकाबले चार जजों के बहुमत से उस फैसले को पलट दिया था।’’उन्होंने कहा ‘‘मुझे लगता है कि आपातकाल उच्चतम न्यायालय का भी सबसे अंधकारपूर्ण समय था।’ जेटली ने कहा कि उस समय वकीलों और मीडियाकर्मियों के एक छोटा सा समूह और राजनीतिक बंदी थे जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया था।

जेटली ने सवाल किया‘‘क्या उस स्थिति को आज दोहराना संभव है? मुझे संदेह है।’ उन्होंने कहा ‘इस देश ने आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में दिखा दिया कि भारत दमघोंटू माहौल में रहने को तैयार नहीं है। इसलिए कड़ी प्रतिक्रिया का भय आपातकाल के खिलाफ रहेगा।’ वित्त मंत्री ने कहा ‘लेकिन उसके बाद तीन अन्य महत्वपूर्ण बातें हुईं। पहला, मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार ने बड़ा संस्थागत सुधार लाया और संविधान संशोधन कर के यह प्रावधान किया कि आपात काल के दौरान धारा भी अनुच्छेद 25 को निलंबित नहीं किया जा सकता। यह अनुच्छेद जीने के अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।’’ उन्होंने कहा ‘इसलिए यदि जीवन जीने और नागरिक स्वतंत्रता का अधिकार बना रहता है तो अनुचित गिरफ्तारी अब संभव नहीं हो सकती है।’

जेटली ने कहा ‘जहां तक मीडिया का सवाल है प्रौद्योगिकी के कारण सेंसरशिप असंभव हो गई है। आपातकाल के दौरान हर अखबार में एक निरीक्षक नियुक्त करना और मीडिया को सेंसर करना संभव था। लेकिन आज उपग्रह और इंटरनेट ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जबकि प्रौद्योगिकी के कारण सेंसरशिप संभव नहीं है। इसलिए मीडिया में सेंसरशिप लागू करना बेहद कठिन है । ’ वित्त मंत्री ने कहा कि वह उस वक्त दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष और युवाओं की संस्थाओं के राष्ट्रीय संगठनों के संचालक थे ,जिसे जयप्रकाश नारायण ने बनाया था।

उन्होंने कहा ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा गांधी का चुनाव दरकिनार करने और उच्चतम न्यायालय में इस पर सशर्त स्थगन आदेश मिलने के बाद उनके इस्तीफे की मांग करने वाले जनांदोलन ने रफ्तार पकड़ी।’’ उन्होंने कहा ‘इसलिए 25 जून 1975 की शाम रामलीला मैदान में एक सभा हुई। इस सभा के बाद मैं घर वापस आया और आधी रात को पुलिस मुझे गिरफ्तार करने पहुंची।’ जेटली ने कहा ‘मेरे पिता ने उन्हें बातों में उलझाए रखा क्योंकि उनके पास गिरफ्तारी का आदेश नहीं था और इस बीच मैं भागने में कामयाब रहा।’ उन्होंने कहा ‘मैं एक दोस्त के घर गया। सुबह भारी संख्या में छात्रों को इकट्ठा किया और एक विरोध प्रदर्शन किया जो 26 जून को आपातकाल के खिलाफ किया गया देश में इकलौता प्रदर्शन था।’ उन्होंने कहा ‘हमने इंदिरा गांधी का पुतला जलाया और फिर मैं विरोध के तौर पर गिरफ्तार हुआ। मुझे पहले तिहाड़ जेल में रख गया, फिर अंबाला में और फिर वापस दिल्ली लाया गया। पुलिस ने मुझे मीसा (आंतरिक सुरक्षा कानून) के तहत गिरफ्तार किया।’

जेटली ने कहा कि आपातकाल ने विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थानों पर अपने विचार पुख्ता करने में उनकी मदद की। उन्होंने कहा ‘‘मेरे राजनीतिक जीवन में यही कुछ ऐसा है जिसने मुझे आज तक मदद की , चाहे स्वतंत्र मीडिया की जरूरत हो या स्वतंत्र न्यायापालिका की आवश्यकता का सवाल हो या फिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल्य का सवाल हो।’ उन्होंने कहा ‘ये ऐसे मूल्य हैं जिसे मैंने पूरे जीवन अपनाया। और निश्चित तौर पर जेल में गुजरा वक्त मेरे लिए एक अनुभव की तरह था। जेल एक मानसिक अवस्था है । यदि आप किसी संघर्ष का हिस्सा होते हैं तो वक्त गुजरता जाता है।’ जेटली ने कहा ‘मैं बहुत पढ़ता था। खूब बैडमिंटन और वालीबॉल खेलता था। मुझे रसोई की निगरानी में बहुत मजा आता था। हमें खाने के लिए सिर्फ तीन रुपए प्रति दिन का भत्ता मिलता था जिसमें सिर्फ कुछ रोटी और दाल मिल पाती थी। मेरे खिलाफ सात मामले थे।’

Trending news