लूचिस्तान के कई प्रांतों में अखबार के वितरण पर असर पड़ा है. इसके साथ ही सिंध प्रांत के कई शहरों सहित सभी सैन्य छावनी में डॉन अखबार नहीं मिल रहे.
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वॉशिंगटन: पाकिस्तान ने सबसे लोकप्रिय अंग्रेजी दैनिक अखबार डॉन के वितरण पर देश के कई हिस्सों में रोक लगा दी है. एक मीडिया निगरानी समूह (वॉचडॉग) ने कथित तौर पर यह कहा कि अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले से जुड़े बयान को प्रकाशित करने के बाद यह कार्रवाई की गई है. नवाज शरीफ का इंटरव्यू जिससे पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली सैन्य संस्था नाराज हो गई थी, को डॉन अखबार के 12 मई के अंक में प्रकाशित किया गया था और 15 मई को अखबार के वितरण पर रोक लगा दी गई.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने इसकी निंदा करते हुआ कहा, 'पाकिस्तान में मीडिया की आजादी पर ताजा हमला.' आरएसएफ के मुताबिक बलूचिस्तान के कई प्रांतों में अखबार के वितरण पर असर पड़ा है. इसके साथ ही सिंध प्रांत के कई शहरों सहित सभी सैन्य छावनी में डॉन अखबार नहीं मिल रहे.
लश्कर ए तैयबा के 10 आतंकवादियों ने नवंबर 2008 में मुंबई में 166 लोगों की हत्या कर दी थी, जबकि दर्जनों लोगों को घायल कर दिया था. सुरक्षा बलों ने नौ आतंकियों को मार गिराया था जबकि अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था. दोषी पाए जाने पर कसाब को फांसी दे दी गई थी.
पाक के सर्वोच्च नागरिक-सैन्य नेतृत्व ने 26/11 पर शरीफ की टिप्पणी को नकारा
पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक और सैन्य नेतृत्व ने बीते 14 मई को अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा मुंबई आतंकी हमले पर दिये गए ‘‘भ्रामक’’ बयान की निंदा करते हुये इसे ‘‘गलत और गुमराह’’ करने वाला बताया था. शरीफ ने एक साक्षात्कार में पहली बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. उन्होंने राज्येत्तर तत्वों को सीमा पार जाने और मुंबई में लोगों को "मारने" की अनुमति देने की नीति पर भी सवाल उठाया.
शरीफ की इस स्वीकारोक्ति से पाकिस्तान में विवाद शुरू हो गया और बयान को खारिज करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा समिति या एनएससी (पाक का सर्वोच्च नागरिक - सैन्य निकाय) ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलायी थी. प्रधानमंत्री आवास पर हुई एनएससी की एक बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘मुंबई हमलों के संदर्भ में हालिया बयान की बैठक में समीक्षा की गई ... और एक सुर में इसे गलत और गुमराह करने वाला बताया गया.’’
इसमें कहा गया, ‘‘प्रतिभागियों ने पाया कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह राय या तो गलत धारणा या शिकायत के फलस्वरूप सामने आई जो ठोस साक्ष्यों और वास्तविकताओं की पूरी तरह अनदेखी करती है. प्रतिभागियों ने एक स्वर से आरोपों को खारिज किया और इसमें किये गए भ्रामक दावों की निंदा की.’’