तो इसलिए तिब्बत से भागे थे दलाई लामा, चीन ने बताई वजह
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तो इसलिए तिब्बत से भागे थे दलाई लामा, चीन ने बताई वजह

चीन ने कहा कि दलाई लामा 1959 में सशस्त्र विद्रोह के विफल होने के बाद तिब्बत से भारत भाग गए थे. चीन ने दलाई लामा के उस बयान को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि बढ़ती चीनी सैन्य कार्रवाई के कारण भागने के अलावा उनके पास और कोई विकल्प नहीं था.

चीन ने कहा कि दलाई लामा 1959 में सशस्त्र विद्रोह के विफल होने के बाद तिब्बत से भारत भाग गए थे.  (फाइल फोटो)

बीजिंग: चीन ने कहा कि दलाई लामा 1959 में सशस्त्र विद्रोह के विफल होने के बाद तिब्बत से भारत भाग गए थे. चीन ने दलाई लामा के उस बयान को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि बढ़ती चीनी सैन्य कार्रवाई के कारण भागने के अलावा उनके पास और कोई विकल्प नहीं था.

'दलाई लामा एक चीन विरोधी अलगाववादी' 

चीनी विदेश मंत्रालय ने उनकी टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जैसा सर्वविदित है 14 वें दलाई लामा एक चीन विरोधी अलगाववादी हैं, जो तिब्बत में मार्च 1959 में एक प्रतिक्रियावादी समूह के विफल सशस्त्र विद्रोह के बाद से लंबे समय से निर्वासन में हैं.

दलाई लामा के बयान के बारे में पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में मंत्रालय ने कहा, ‘उनके बयान चीन विरोधी अलगाववादी उद्देश्य की पूर्ति करते हैं और वे तथ्यों से परे हैं.’ उनके भारत में प्रवास पर मंत्रालय ने कहा, ‘चीनी सरकार किसी भी देश के 14 वें दलाई समूह के चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों के समर्थन का दृढ़ता से विरोध करती है.’

पढ़ना अच्छा नहीं लगता था

तिब्बती आध्यात्मिक गुर दलाई लामा ने आज कहा कि बाल्य अवस्था में उन्हें बिल्कुल ज्ञात नहीं था कि ‘‘उनकी वास्तविक स्थिति क्या है और इससे संबद्ध कठिन अध्ययन उन्हें बोझ के समान लगते थे.’ गुवाहाटी में असम सरकार की ओर से आयोजित ‘नमामि ब्रह्मपुत्र’ नदी महोत्सव के संवाद सत्र के दौरान 14वें दलाई लामा ने कहा, ‘जब दलाई लामा को ढूंढते हुए तलाश दल मेरे गांव पहुंचा, तब मैं महज तीन या चार साल का बालक था और उनके आने से मैं बेहद उत्साहित था.’ उन्होंने दावा किया कि वहां आये सदस्यों में से कुछ को उन्होंने पहचान लिया और उनकी ओर दौड़ पड़े.

नोबल पुरस्कार जीतना नये आयाम खोलने के समान था

सात वर्ष की उम्र में जो कठिन अध्ययन और पारंपरिक पाठ याद करना पड़ता ‘वह मेरे लिये वाकई में बोझ की तरह था और मैं उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता था.’ उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत आलसी किस्म का छात्र था और मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन बाद में मुझे अध्ययन की महत्ता का भान हुआ कि किस तरह से यह समाज को बदल सकता है.’ नोबल पुरस्कार जीतना उनके लिये नये आयाम खोलने के समान था क्योंकि इसने उन्हें लोगों से मिलने, विचारों के आदान-प्रदान और ज्ञान साझा करने का अवसर दिया.

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