सावरकर क्यों हैं राष्ट्रवाद के सबसे बड़े नायक? यहां पढ़ें: 11 सबूत

1966 में वीर सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था`. कहते हैं सावरकर का विचारधारा शुद्ध राष्ट्रवाद की रही है. तमाम विवादों की परवाह ना करते हुए, वीर सावरकर अगर कुछ जानते थे तो बस इतना, कि राष्ट्र के लिए बलिदान कैसे करना है.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Dec 15, 2019, 04:08 PM IST
    1. 27 साल तक जेल और नजरबंदी भुगतने वाले क्रांतिकारी
    2. आज़ाद भारत में क्यों चला सावरकर पर झूठा मुकदमा?
    3. क्रांतिकारी के साथ ही महान लेखक, दार्शनिक और वक्ता थे सावरकर
    4. 26 फरवरी 1966 को हुआ था सावरकर का निधन
सावरकर क्यों हैं राष्ट्रवाद के सबसे बड़े नायक? यहां पढ़ें: 11 सबूत

नई दिल्ली: कांग्रेस से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ऐसा बयान दिया, जिसपर शुरू हुआ बवाल थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. राहुल ने वीर सावरकर को डरपोक बोलकर मानो राजनीतिक अखाड़े में अपनी शामत बुला ली हो. लेकिन लगता है, राहुल गांधी को इस बात की जानकारी नहीं थी कि विनायक दामोदर सावरकर राष्ट्रवाद के सबसे बड़े नायक थे.

विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की पहली पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता, जिन्हें स्वातंत्र्यवीर, वीर सावरकर के नाम से पुकारा जाता है. आपको सबसे पहले उन 11 उपलब्धियों से रूबरू करवाते हैं, जिसके चलते सावरकर को राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा नायक कहा जाता है.

सावरकर क्यों हैं राष्ट्रवाद के सबसे बड़े नायक?

1- 1906 से 1910 के बीच लंडन में कानून के छात्र थे
2- इस दौरान 'फ्री इंडिया सोसाइटी' नामक संस्था की स्थापना की
3- इटली, यूरोप, नॉर्थ अमेरिका, आयरलैंड के संगठनों से संपर्क किया
4- अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए विदेशी ताकतों को इकट्ठा किया
5- भारत की आजादी के लिए लंडन को बेस बनाकर काम किया
6- 1909 में अपनी किताब में आजादी की लड़ाई की वकालत की
7- किताब के खौफ से अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया 
8- 1910 में सावरकर को लंडन से गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था
9- इस दौरान वो जहाज से बचकर फ्रांस की सीमा में पंहुच गए
10- बाद में उन्हें गिरफ्तार करके अंडमान और बॉम्बे में रखा गया
11- कैद में रहने के दौरान हिंदुत्व को परिभाषित करने वाली किताब लिखी

सावरकर आजादी के नायक क्यों?

हिन्दुस्तान की आजादी के लिए बिगुल फूंकने के लिए वीर सावरकर को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. 1857 की क्रांति को इतिहास के तौर पर संजोने के लिए सावरकर ने एक किताब लिखी थी, जिस पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा दिया था. 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस -1857' 1908 में सावरकर की लिखी ऐसी किताब है, जिसमें उन्होंने सनसनीखेज और खोजपूर्ण इतिहास लिख कर, ब्रिटिश शासन को हिला डाला था. इस किताब में उन्होंने 1857 के विद्रोह को अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा था. इसके अलावा सावरकर ने रूस के क्रांतिकारियों से हिंसक क्रांति के तरीके सीखे थे.

इसी कड़ी में आपको यहां ये भी समझाते हैं, कि विनायक दामोदर सावरकर को हिंदुत्व का हीरो क्यों माना जाता है. सावरकर को आदर्श मानने वाली पार्टी भाजपा इस वक्त देश की सबसे बड़ी पार्टी है.

सावरकर हिंदुत्व के हीरो क्यों? 

सन् 1923: जेल में किताब लिखी- Hindutva: Who Is a Hindu?
सन् 1924: रिहा होने के बाद हिंदू नवजागरण का काम किया, हिंदू धर्म में छुआ-छूत खत्म करने के लिए अभियान चलाया.
सन् 1937: वीर सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने आदर्श पुरुषों में शामिल किया है. इसके अलावा जनसंघ ने वीर सावरकर को अपना आदर्श माना, तो भाजपा सावरकर को अपना आदर्श बताती आई है.

सावरकर को राहुल गांधी डरपोक बताते हैं, जिनके विचारों को पूरा देश पूजता है, जिनके सिद्धांतों की दुहाई खुद कांग्रेस पार्टी देती रहती है. लेकिन महात्मा गांधी ने भी सावरकर को डरपोक नहीं बल्कि वीर कहकर पुकारा था. लेकिन राहुल गांधी को शायद इस बात की जानकारी नहीं है. वरना वो अपने ऐसे बयान पर बेशर्मी नहीं दिखाई.

सावरकर पर 'राष्ट्र विचार'

महात्मा गांधी-

'सावरकर वीर हैं, देशभक्त हैं, क्रांतिकारी हैं'

 

सुभाष चंद्र बोस-

'सावरकर युवाओं को आज़ाद हिंद फौज में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं'

अटल बिहारी वाजपेयी-

'वीर सावरकर तप, त्याग, तेज, तर्क, तीर और तलवार के समतुल्य थे'

नरेंद्र मोदी-

'सावरकर राष्ट्ररक्षक थे, उनके संस्कार ही राष्ट्रवाद की प्रेरणा हैं'

अमित शाह-

'वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति इतिहास न बनती'

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सावरकर पर राहुल गांधी का विवादित बयान सावरकर के लिए नफरत की भावना की कहानी नहीं है. आजादी के 19 साल बाद 26 फरवरी 1966 को उनका निधन हुआ था, जब उन्होंने आमरण उपवास का फैसला किया था. आजादी के बाद के शासन में उन्हें लगभग उपेक्षित कर दिया गया था. वो पहले क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांग ली. तब की सत्ताधारी कांग्रेस को भी उनका हिंदुत्व विचार रास नहीं आता था.

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