क्यों मनाते हैं पोंगल, जानिए महादेव शिव और नंदी से जुड़ी ये लोककथा

 पोंगल सूर्य उपासना का पर्व है. यह उत्साह के साथ नवीनता को अपनाने और पुराने को पीछे छोड़ देने का समय है. तमिलवासी इसे अपने नए साल के तौर पर भी देखते हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 13, 2021, 05:53 AM IST
  • प्रकृति का पर्व है पोंगल त्याहोर
  • भगवान कृष्ण, शिव और इंद्र से जुड़ी है कथा
क्यों मनाते हैं पोंगल, जानिए महादेव शिव और नंदी से जुड़ी ये लोककथा

नई दिल्लीः दक्षिण भारत में  खासकर तमिलनाडु में इस वक्त पोंगल की धूम है.  रंगाई-पुताई के बाद घरों को सजाया गया है और अब पोंगल की अगली रस्मों की तैयारी है.  इस त्योहार की परंपरा को देखें और समझें तो यह पर्व उत्तर भारत में मनाई जाने वाले गोवर्धन पूजा और बिहार में मनाए जाने वाले छठ पर्व की तरह लगता है. 

हालांकि पोंगल (Pongal) की अपनी परंपराएं हैं और इसके मनाने में तमिलनाडु (Tamil Nadu) की हरी-भरी संस्कृति की खूबसूरत झलकियां दिखाई देती हैं.  दक्षिणी राज्यों के लोग हमेशा अपनी परंपराओं व त्योहारों को बिना किसी नवीनीकरण के मनाते हैं. इसलिए उनकी पर्व आज भी प्राचीनता की रंगत लिए हुए और  सबसे शुद्ध रूप में मौजूद हैं.

प्रकृति के अभिवादन का पर्व

पोंगल बिहार की छठ पूजा की तरह चार दिन का पारिवारिक उत्सव है. इसमें सिर्फ परिवार के बच्चे-बूढ़े ही नहीं बल्कि घर में पाले गए पशु-पक्षी भी शामिल होते हैं. पहला दिन पोंगल के आगमन की सूचना देता है, दूसरा दिन पोंगल मनाए जाने की घोषणा करता है, तीसरा दिन सूर्य उपासना का दिन है और चौथा दिन गाय और विशेषकर बैलों व खेती से संबंधित कर्मों के पूजन अभिवादन का दिन है. इसमें पहला दिन भोगी पोंगल, दूसरा दिन थाई पोंगल, तीसरा दिन कन्नम पोंगल और चौखा दिन मट्टू पोंगल कहलाता है.

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नवीनता अपनाने का समय

इसमें भोगी पोंगल पुराने विचारों, दुखों आदि को हटा देने और नवीनता को अपनाने का दिन है. माना जाता है कि पारंपरिक तौर पर यह साल का आखिरी दिन है. इस दिन लोग पुरानी चटाई, कपड़े आदि को जलाकर नवीनता की ओर बढ़ते हैं. यह परंपरा होलिका दहन के करीब है. घरों में रंगाई-पुताई की जाती है. ठीक वैसे ही जैसे दिवाली से पहले की जाती है.

उत्साह बना रहे ऐसी कामना

थाई पोंगल, यह एक महत्वपूर्ण दिन होता है. इसे साल का पहला दिन कहते हैं. लोग नए कपड़े पहनते हैं. परिवार समूहों के तौर पर इकट्ठा होते हैं.  इस दिन एक साथ इकट्ठे होकर पकवान बनाते हैं. खास पकवान होता है चकरई. 'चकरई पोंगल' बनाते समय दूध उबलकर बर्तन के ऊपर आ गया तो शुभ मुहूर्त पर घरों में, बच्चों ने जोर-जोर से 'पोंगलो पोंगल, पोंगोलो पोंगल' बोलते हुए छोटे से ढोल को बजाना शुरू कर देते हैं.

चकरई बनाने से पहले माताएं या बुजुर्ग एक मटकी का चुनाव करती हैं. नए धान को मटकों में दूध और शक्कर मिलाकर तब तक उबाला जाता है, जब तक वह किनारों से बाहर नहीं गिरता है. इस दौरान माएं एक गीत गाती हैं. इसका मतलब है कि जैसे सागर का पानी उफन कर तट पर आया है, जैसे मेरी मटकी में उफान आया है, बस मेरे घर के बच्चों में खुशी भी ऐसी उफान पर आए.

अन्नदाता को प्रणाम

फिर आता है मट्टू पोंगल. यह पर्व का खास दिन है. इस दिन महिलाएं पक्षियों को रंगीन चावल खिलाती हैं तो वहीं किसानी परंपरा के जुड़े लोग कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं.  इस दिन गाय और बैल को सजाया जाता है, बैल को विशेष शृंगार किया जाता है. इसके साथ उनका आभार जताया जाता है. तमिल वासी मट्टू पोंगल के दिन बैल और गायों को नहलाया जाता है और उनके सींगों को रंगा जाता है और उनकी पूजा की जाती है क्योंकि वे खेती में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

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सूर्य की उपासना

पोंगल सूर्य उपासना का दिन है, जिसे कन्नम कहते हैं. चकरई पकवान का सूर्य देव को धन्यवाद के रूप में भोग लगाया जाता है और 'प्रसाद' के रूप में खाया जाता है. लोग अपने पड़ोसियों को भी शुभकामनाएं देते हुए चकरई पोंगल भेंट करते हैं. यह परंपरा छठ की तरह प्रसाद देने की परंपरा जैसी है. 

तमिलनाडु में मकर राशि के प्रवेश के साथ ही पोंगल की शुरुआत होती हैं. इस दिन सूर्य को अन्नदाता मानकर उसकी पूजा लगातार चार दिन की जाती हैं. पोंगल पर अच्छी फसल, प्रकाश और सुखदायी जीवन के लिए सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है.

यह है पोंगल से जुड़ी कथा

पौराणिक कथाओं व लोक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने  वाहन बैल को बसवा नाम से पृथ्वी पर जाने और मनुष्यों से मिलने के लिए कहा. उन्हें यह संदेश व्यक्त करने के लिए कहा गया की मनुष्यों को नित्य दिन तेल मालिश और स्नान करना चाहिए. लेकिन गलती से नंदी ने  गलत तरीके से लोगों को बताया जाता है कि, उन्हें एक महीने में केवल एक बार भोजन करना चाहिए.

बसवा (तमिल भाषा में बैल का शब्द) के इस गलत व्यव्हार से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए व  नतीजतन, भगवान शिव ने क्रोध के आवेश में आकर उन्हें खेतों में हमेशा के लिए जीने और अधिक भोजन बढ़ाने के लिए दंडित किया. जिस कारन से बैल खजेटों में हल जोतते हैं और  जोतने के नयी उपज होने में पोंगल पर्व मनाया जाता है. पोंगल की एक और कथा गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है. यह वही कथा है जिसमे श्रीकृष्ण इंद्र का घमंड चूर करते हैं.

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