पहली बार प्रयागराज महाकुंभ में दलित महामंडलेश्वर की 'हुंकार' !

प्रयागराज के महाकुंभ में साधुओं के सबसे बड़े अखाड़े ने एक झटके में उस बड़ी खाई को पाट दिया है, जिसके हाशिये पर दलित समाज सदियों से दबा-कुचला चला आ रहा था. दुख-हताशा के पलों में ईश्वर की मौजूदगी का अहसास जहां मन का संबल बनता है. उन मंदिरों के द्वार भी जिनके लिये सदियों पहले बंद कर दिये गए थे, उस मोड़ पर प्रयाग महाकुंभ ने उम्मीद का एक नया दिया जला दिया है. शंखनाद कर दिया है उस बदलाव का, जो धर्म से लेकर सियासत तक का समीकरण बदलने की ताकत रखता है. प्रयागराज महाकुंभ ने धर्म के अखाड़े में दलित समाज को वो जगह सौंप दी है, जिसकी चाहत सदियों से इस समाज के दिल में थी. साधुओँ के सबसे बड़े और सबसे पुराने अखाड़े ने सदियों के इतिहास में दलित महामंडलेश्वर को पहली बार चुना है.

प्रयागराज के महाकुंभ में साधुओं के सबसे बड़े अखाड़े ने एक झटके में उस बड़ी खाई को पाट दिया है, जिसके हाशिये पर दलित समाज सदियों से दबा-कुचला चला आ रहा था. दुख-हताशा के पलों में ईश्वर की मौजूदगी का अहसास जहां मन का संबल बनता है. उन मंदिरों के द्वार भी जिनके लिये सदियों पहले बंद कर दिये गए थे, उस मोड़ पर प्रयाग महाकुंभ ने उम्मीद का एक नया दिया जला दिया है. शंखनाद कर दिया है उस बदलाव का, जो धर्म से लेकर सियासत तक का समीकरण बदलने की ताकत रखता है. प्रयागराज महाकुंभ ने धर्म के अखाड़े में दलित समाज को वो जगह सौंप दी है, जिसकी चाहत सदियों से इस समाज के दिल में थी. साधुओँ के सबसे बड़े और सबसे पुराने अखाड़े ने सदियों के इतिहास में दलित महामंडलेश्वर को पहली बार चुना है.

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