वीरभद्र सिंह पार लगा पाएंगे कांग्रेस की नैया
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वीरभद्र सिंह पार लगा पाएंगे कांग्रेस की नैया

वीरभद्र सिंह कांग्रेस के यूं तो दिग्गज नेता है लेकिन इन दिनों उनके सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हिमाचल की सियासत में कांग्रेस की बात करें तो वीरभद्र सिंह खुद को शीर्ष पर ला खड़ा करते हैं।

ज़ी न्यूज ब्यूरो

वीरभद्र सिंह कांग्रेस के यूं तो दिग्गज नेता है लेकिन इन दिनों उनके सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हिमाचल की सियासत में कांग्रेस की बात करें तो वीरभद्र सिंह खुद को शीर्ष पर ला खड़ा करते हैं। लेकिन ताबड़तोड़ भ्रष्टाचार के मामलों ने उनकी सियासी नैया डगमगा दी है।
26 जून को भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपा था। वे यूपीए सरकार में लघु उद्योग मंत्री थे। हिमाचल प्रदेश की एक अदालत में उनके खिलाफ 23 साल पुराने मामले में सोमवार को भ्रष्टाचार से जुड़े आरोप तय किए गए थे। वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 28 मई, 2009 को इस्पात मंत्री बनाए गए थे।
अभी हाल ही में वीरभद्र सिंह पर एक और आरोप लगा जिससे उनकी साख धूमिल हुई है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के लिए एक नई समस्या खड़ी हो गई है।
हाल ही में एक टीवी चैनल की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि इस्पात इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने स्टील ऐंड कोल इंडस्ट्रीज़ के अधिकारियों को साल 2009-10 के दौरान को कुछ पेमेंट्स की थीं। चैनल ने यह आरोप इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के डॉक्युमेंट्स के हवाले से लगाए गए हैं। इन डॉक्युमेंट्स में अक्टूबर 2009 से अक्टूबर 2010 तक किसी वीबीएस को 2.28 करोड़ रुपये देने का जिक्र किया गया है। माना जा रहा है कि यह वीबीएस पूर्व इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह को दिया शॉर्ट नेम है।

लघु उद्योग मंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ एक 23 साल पुराने मामले में आपराधिक षडयंत्र रचने और रिश्वतखोरी से संबंधित आरोप तय किए गए थे।
वीरभद्र सिंह 1983 से 1990 तक, 1993 से 1998तक और 2003 से 2007 तक हिमाचल प्रदेश राज्य के भी तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मंडी लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा सांसद वीरभद्र सिंह 15वीं लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सांसद हैं. वे सात बार विधायक, पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पांचवीं बार लोकसभा में बतौर सांसद हैं और पिछले आधे दशक में वे कोई चुनाव नहीं हारे। वरिष्ठता के हिसाब से उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली। 15वीं लोकसभा में वरिष्ठता के क्रम में हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम सबसे ऊपर है क्योंकि वे 1962 से लेकर 2009 तक यानी पिछले 47 वर्षों में वे एक भी चुनाव नहीं हारे। इस दौरान उन्होंने लोकसभा के पांच चुनाव लड़े और सात विधानसभा चुनाव लड़े।
वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1972, 1980 और वर्तमान लोकसभा 2009 में लोकसभा सांसद हैं. इसके अलावा वे 1983, 1985, 1990, 1993, 1998 और 2003 तथा 2007 में विधायक रहे। इतना ही नहीं 1983,1985, 1993, 1998 और 2003 में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। अपने 47 वर्षों के राजनैतिक सफ़र के दौरान उन्होंने 13 चुनाव लड़े और सभी जीते। वरिष्ठता के क्रम और हिमाचल प्रदेश के अकेले सांसद होने के कारण 22 मई को मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनने वाली केंद्र सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।

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