Pitru Paksha 2023: जानें कब किया जाता है पितरों का श्राद्ध? कौन कर सकता है ये कर्म
Pitru Paksha 2023 Dates: श्राद्ध पक्ष केवल पूर्वजों तक ही नहीं सीमित है. वाराह पुराण, सुमन्तु, यम स्तुति, ब्रह्म पुराण आदि में ग्रंथों में श्राद्ध का महत्व बताया गया है.
Shradh 2023 Start Date and End Date: पितृ पक्ष में श्राद्ध की परम्परा है. वैसे तो यह पूरा पखवारा ही पितरों के लिए माना गया है प्रतिदिन जल तर्पण कर उन्हें जलांजलि दी जाती है किंतु जो लोग किसी नदी आदि के किनारे जा कर ऐसा नहीं कर पाते हैं वह घर पर ही अपने पूर्वजों को जलांजलि देते हैं. बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो किन्हीं कारणों से यह सारे कर्मकांड नहीं कर पाते हैं लेकिन वह भी अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के आधार पर उनका श्राद्ध तो कर ही सकते हैं. वास्तव में श्राद्ध का अर्थ है, पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और यह कर्म सिर्फ पितृपक्ष के लिए ही नहीं है बल्कि हमेशा ही अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना चाहिए. उनके बताए मार्ग पर चलना ही सच्ची श्रद्धा या श्राद्ध है.
पूर्वजों तक नहीं सीमित
श्राद्ध पक्ष केवल पूर्वजों तक ही नहीं सीमित है. वाराह पुराण, सुमन्तु, यम स्तुति, ब्रह्म पुराण आदि में ग्रंथों में श्राद्ध का महत्व बताया गया है. सामान्य तौर पर माना जाता है कि श्राद्ध करने का अधिकार उसी व्यक्ति को होता है जो उनके परिवार का नामलेवा हो. किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है. भीष्म पितामह ने तो अपने पिता के संकल्प को पूरा करने के लिए आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की थी. उनका श्राद्ध पांडवों ने किया था. किसी भी व्यक्ति के दिवंगत होने के बाद स्थूल शरीर तो यहीं रह जाता है. परम्परा के अनुसार उस शरीर की अंत्येष्टि कर दी जाती है. माना जाता है कि श्राद्ध कर्म से मृतात्मा तृप्त होती है. कई बार मृतात्मा को परलोक तक जाने में प्रतीक्षा करनी होती है. पितरों के देवता बनने से पहले तक मृतात्मा यहीं रहती है.
कब करें श्राद्ध
प्रश्न उठता है कि आखिर पितरों का श्राद्ध कब किया जाता है. पहली बार तो बरसी की जाती है जो साल भर बाद होती है. इसके बाद यदि मृतात्मा की मृत्यु तिथि याद हो पितृपक्ष में उसी तिथि को और न याद रहने की स्थिति में अमावस्या के दिन ज्ञात अज्ञात पितरों का तर्पण किया जाता है. माता पिता का श्राद्ध निश्चित तिथि में करना अधिक अच्छा होता है. श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक का ही किया जाता है. मान्यता है कि प्रतीक्षाकाल कितना ही लंबा क्यों न हो लेकिन तीन पीढ़ियों से अधिक का श्राद्ध नहीं किया जाता है. श्राद्ध तो ज्ञात लोगों के साथ ही उन अज्ञात लोगों का भी किया जाना चाहिए जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.
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