Walchand Hirachand Doshi: लगाई देश की पहली कार फैक्टरी, भारत को दी `उड़ान`, कहानी ट्रांसपोर्टमैन ऑफ इंडिया की
Founder of Hindustan Aeronautics Limited: महाराष्ट्र के शोलापुर में वालचंद हीराचंद दोषी का जन्म एक नामी परिवार में 1882 में हुआ था. शुरुआत में वह रुई बेचने और पैसा ब्याज पर देने का काम करते थे.
Walchand Hirachand Doshi Profile: अकसर दुनिया में ऐसे लोग होते हैं, जिनके परिवार का जमा-जमाया बिजनेस होता है लेकिन बावजूद इसके उनमें कुछ अलग करने का जुनून होता है. चुनौतियों से वह घबराते नहीं हैं. ऐसे ही एक जीनियस बिजनेसमैन थे वालचंद हीराचंद दोषी, जिन्होंने भारत की पहली कार फैक्टरी लगाई थी. इनको 'फादर ऑफ ट्रांसपोर्टेशन इन इंडिया' भी कहा जाता है. वह न सिर्फ वालचंद ग्रुप के फाउंडर थे बल्कि उन्होंने मॉडर्न शिपयार्ड और देश की पहली एयरक्राफ्ट फैक्टरी की भी स्थापना की थी.
नामी परिवार में हुआ था जन्म
महाराष्ट्र के शोलापुर में वालचंद हीराचंद दोषी का जन्म एक नामी परिवार में 1882 में हुआ था. शुरुआत में वह रुई बेचने और पैसा ब्याज पर देने का काम करते थे.
उन्होंने 1899 में शोलापुर सरकारी हाईस्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई की. इसके बाद मुंबई यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल की. ग्रेजुएशन के बाद वह अपने परिवार के बिजनेस से जुड़ गए.
कुछ साल तक उन्होंने परिवार का बिजनेस संभाला. लेकिन फिर उनको अहसास हुआ कि उनकी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. लिहाजा परिवार का बिजनेस छोड़कर वह रेलवे कॉन्ट्रैक्टर बन गए और एक पूर्व रेलवे क्लर्क के साथ पार्टनरशिप कर कंस्ट्रक्शन के फील्ड में आ गए. भले ही बहुत से हिंदुस्तानी उनके नाम से वाकिफ ना हों लेकिन उन्होंने कई बड़ी इंडस्ट्री की स्थापना की थी.
कई बड़े उद्योगों की स्थापना की
वालचंद हीराचंद दोषी को उनकी दूर की सोच और महत्वाकांक्षा के लिए जाना जाता है. अपने वक्त के वह प्रभावशाली और कामयाब बिजनेसमैन थे. कई अन्य उद्योग जैसे शुगर और टैक्सटाइल, पावर और कैमिकल की स्थापना करने का श्रेय उनको जाता है. उन्होंने भारत की पहली एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड (HAL) की स्थापना की थी. आज इसी कंपनी को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता है.
आज इस कंपनी का मार्केट कैप करीब 3 लाख करोड़ रुपये है. इसे शेयरों में पैसा लगाकर कई लोगों ने मोटा पैसा कमाया है. बाद में सरकार ने इस कंपनी में ज्यादा हिस्सेदारी खरीद ली और अब यह एक सरकारी कंपनी है. वालचंद बहुत आगे की सोचते थे. उनका मानना था कि भारत अपना विमान बनाए और इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने काफी मेहनत भी की.
1953 में हुई थी मृत्यु
शुरुआत में एचएएल ने विदेश में बने विमानों की रिपेयरिंग की. लेकिन जल्द ही ट्रांसपोर्ट, ट्रेनी और लड़ाकू विमानों का निर्माण भी शुरू कर दिया.
1947 तक वालचंद ग्रुप की कंपनियां देश के 10 सबसे बड़े कारोबारी घरानों में से एक थीं. 1949 में उन्हें स्ट्रोक हुआ और 1950 में उन्होंने बिजनेस से रिटायरमेंट ले ली. जिंदगी के आखिरी वर्षों में उनकी देखभाल उनकी पत्नी कस्तूरबाई ने की. 8 अप्रैल 1953 को गुजरात के सिद्धपुर में उनकी मृत्यु हो गई.