डियर जिंदगी : आप बहुत खास हैं, उम्‍मीद है आपको पता होगा...
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डियर जिंदगी : आप बहुत खास हैं, उम्‍मीद है आपको पता होगा...

रंगे हुए चेहरों पर अधिक देर तक रंग नहीं टिकता, देर-सबेर जिंदगी की धूप, बारिश में उनके नकली रंग उनका साथ छोड़ ही देते हैं. उस वक्‍त जिंदगी एक ऐसे चौराहे पर आकर ठहर जाती है कि किसी राह को चुनना आसान नहीं होता.

जब तक हम खुद को खास नहीं मानेंगे, दूसरों के अनुसरण में उम्र तबाह करते रहेंगे. केवल भीड़ का हिस्‍सा बनें रहेंगे.

दयाशंकर मिश्र

जितनी बार यह कहा जा चुका है. उससे अधिक बार लिखा जा चुका है. हर व्‍यक्‍ति दूसरे से अलग, खास है. उसके बाद भी हमसमानता खोजते हुए, दूसरों जैसा बनने की चाह में उम्र गुजार देते हैं. एक ही आंगन में, एक ही मिट्टी में उगे दो पौधे एक-दूसरे से प्रतिस्‍पर्धा नहीं करते. एक-दूसरे को अपने गुणों से संपन्‍न करते हैं. एक-दूसरे को मजबूती देते हैं.
 
यही तो सिनर्जी है. इसे ही मिलकर चलना कहते हैं. और हम जो आंगन में पौधे रोपते हैं, जिंदगी में उन्‍हीं बातों को एकदम भूल जाते हैं. जो सरल, सीधी और सहज हैं. हमें हमेशा से पता हैं.

हममें से हर कोई खास है. लेकिन मेरा वह 'खास' क्‍या है. मैं उससे कैसे मिलूं. मेरी ऊर्जा इसमें लगने की जगह दूसरों जैसा बनने में खप जाती है. हम कॉपी मास्‍टर होते जा रहे हैं. हर चीज दूसरों से उठाकर बिना श्रम के उस पर अपना ट्रेडमार्क ठोक देते हैं.हालांकि यह भ्रम कुछ ही दिन, महीने, बरस चलता है.

रंगे हुए चेहरों पर अधिक देर तक रंग नहीं टिकता, देर-सबेर जिंदगी की धूप, बारिश में उनके नकली रंग उनका साथ छोड़ ही देते हैं. उस वक्‍त जिंदगी एक ऐसे चौराहे पर आकर ठहर जाती है कि किसी राह को चुनना आसान नहीं होता.

हम समय के ऐसे टुकड़े से गुजर रहे हैं, जहां बाहर का शोर सारी मर्यादा तोड़कर आत्‍मा तक पहुंच गया है. सबने उसे ही अपनी आवाज मान ली है. ऐसे में खुद की पहचान रॉकेट साइंस जितनी कठिन है.

जब तक हम खुद को खास नहीं मानेंगे, दूसरों के अनुसरण में उम्र तबाह करते रहेंगे. केवल भीड़ का हिस्‍सा बनें रहेंगे. अपनी पहचान नहीं बना सकते. जब तक हम अपनी सही कीमत नहीं समझेंगे. हम निराशा, कुंठा और हीनभावना से घिरे रहेंगे. आइए,एक छोटी-सी कहानी से गुजरते हैं.

एक सेमिनार चल रहा था. एक युवा बहुत देर से निराश, अपनी यात्रा से थका हुआ नजर आ रहा था. सेमिनार के वक्‍ता ने उसेपांच सौ का एक नोट देते हुए उसे धीरे से कुछ समझाकर स्‍टेज पर भेज दिया. खुद नीचे उतर आए. उसने स्‍टेज पर जाकरपूछा, यह नोट कितने का है. जाहिर है, सबने सही जवाब दिया. फिर उसने पूछा यह किस-किसको चाहिए. अधिकांश लोगों नेहाथ उठा दिया. उस युवा ने नोट को बुरी तरह से मोड़ दिया. फिर वही सवाल-जवाब. अब उसने नोट के ऊपर जूते रख दिए. उसनोट का जितना संभव था, 'अपमान' किया. फि‍र पूछा, अब इसे कौन लेगा. अब भी लगभग उतने ही हाथ उसकी आरजू में थे, क्‍योंकि नोट का अस्तित्‍व कायम था.
 
वहां मौजूद लोग जानते थे कि नोट का मूल्‍य पांच सौ, उसके आसपास बना हुआ है. भले ही उसका मुश्किल वक्‍त चल रहा हो,जो उससे प्रेम करने वाले हैं, वह करते ही रहेंगे. उनके लिए उसका मूल्‍य कम नहीं होगा. हां, घट-बढ़ सकता है. हम भी ऐसे ही हैं. हम जो हैं, वह हमेशा रहेंगे. हां, हम क्‍या हैं, यह हमें जरूर पता होना चाहिए. इसमें ही जीवन की सार्थकता है. जो अपना मोल नहीं जानते, वह दूसरों की खासियत कैसे समझ पाएंगे. इसलिए हमेशा खुद को खास, मूल्‍यवान समझें, भले ही समय कैसा भी चल रहा हो.

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