मोदी के विजय रथ को रोक पाएगा जनता परिवार?
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मोदी के विजय रथ को रोक पाएगा जनता परिवार?

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ एनडीए की सरकार बनने के बाद क्षत्रपों और दशकों पहले अपने-अपने स्वार्थ को लेकर अलग हुए जनता परिवार के सदस्यों में खलबली मचने लगी। फूटी आंख नहीं सुहाने वाले अब एक-दूसरे को प्यार भरी नजरों के देख रहे हैं। अब सभी एक-दूसरे के बाहों में बाहें डालकर चलने की शपथ ले रहे हैं। उधर विकास पुरूष नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में डंका बजाने के बाद विधानसभा चुनावों में भी विरोधियों को चारों खाने चित करते आ रहे हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में विरोधियों को धूल चटाने के बाद लगता है झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी मोदी का विजय रूकने वाला नहीं है। इसके बाद बिहार और उत्तर प्रदेश की बारी है।

ऐसे में विरोधी पार्टियों के बीच हाहाकार मचना लाजमी है। जनता दल का बिखरा कुनबा फिर एक होने की डगर पर है। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में नीतीश कुमार का जदयू, लालू यादव का राजद, एचडी देवेगौड़ा का जदएस, ओमप्रकाश चौटाला का इनेलो और कमल मोरारका का सजपा एक बार फिर संयुक्त परिवार की तरह रहने की शपथ ले रहे हैं। यह जनता परिवार नए साल में एक नए कलेवर, नए नाम और नए झंडे के साथ मोदी को टक्कर देने के लिए सामने आ सकता है। हालांकि जनता परिवार के 3 सदस्य बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल अभी इस एकजुटता मुहिम में शामिल नहीं हुए हैं।

इन क्षत्रपों के फिर से एक जुट होने की घोषणा के साथ ही इनके लंबे समय तक एक साथ बने रहने पर सवाल उठने लगे हैं। इतिहास के पन्नों को पलटें तो 90 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर उभरने और केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद जनता दल अपने क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के चलते कई बार-बार टुकडों बंटा और इससे अलग हुए दल अपने-अपने राज्यों में सीमित होकर रह गए।

जनता परिवार की एकजुटता पर सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि खुद इसका इतिहास साक्षी है। अक्टूबर 1988 में जनता पार्टी के धड़े लोकदल, कांग्रेस एस और जनमोर्चा के आपस में विलय से जनता दल का गठन हुआ। एक साल बाद हुए आम चुनाव में जनता दल के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी जिसे वामदलों और भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया। नवंबर 1990 में भाजपा के समर्थन वापस लेने से यह सरकार गिर गई और इसके बाद जनता दल की टूट का सिलसिला शुरू हो गया।

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल का विभाजन हो गया और उससे अलग हुए करीब 60 सांसदों के साथ समाजवादी जनता पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन यह सरकार कुछ ही महीनों में ही गिर गई। इस के बाद मुलायम सिंह यादव ने इससे अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन किया। चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम आने पर जनता दल के नेतृत्व को लेकर घमासान मच गया और तब लालू ने जनता दल से अलग होकर अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बना ली।

इस बीच 1996 में जनता दल को एक बार फिर केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिला। जनता दल के नेतृत्व वाले संयुक्त मोर्चा ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई और एच डी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने लेकिन 11 महीने में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह इंद्रकुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाया गया। वे भी ज्यादा दिन इस पद पर नहीं रह सके। कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से गुजराल की सरकार गिर गई। उसके बाद देवेगौड़ा ने 1999 में जनता दल से अलग होकर जनता दल एस का गठन कर लिया। जनता दल के विभाजन से ही हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) अस्तित्व में आई।

अक्टूबर 2003 में बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आया। जनता दल और समता पार्टी का विलय हो गया। उसका नाम जनता दल यूनाइटेड (जदयू) रखा गया। जनता परिवार के सदस्यों के एकजुट होने की शुरुआत 2003 में ही हो गई थी। हालांकि जदयू भाजपा के साथ मिल कर बिहार में कई वर्षों तक सरकार चलाई। लेकिन भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने पर नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ लिया।

जनता परिवार यानी जनता दल के इस इतिहास से साफ पता चलता है कि इसके एकजुट होने के बावजूद भी इनके नेताओं के बीच तालमेल लंबे समय तक बरकरार नहीं रह सकता है। इनकी महत्वाकांक्षाएं जब टकराएगी तो ये एक बार फिर बिखर जाएंगे। इससे इतर सवाल यह उठता है कि यह परिवार जनता का भरोसा जीतने में कामयाब हो पाएगा? नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से विकास, रोजगार और लोगों की छोटी-छोटी समस्यों की ओर ध्यान दिया है उससे जनता में उनकी पैठ और मजबूत होती जा रही है। इस सूरते-हाल में यह जनता परिवार कितना टिक पाएगा इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।

 

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