वैश्विकता को समेटे, रोचक आर्थिक-धार्मिक कहानियों का दस्तावेज है 'लक्ष्मीनामा'
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वैश्विकता को समेटे, रोचक आर्थिक-धार्मिक कहानियों का दस्तावेज है 'लक्ष्मीनामा'

लेखकों ने 'लक्ष्मीनामा' को मोटे तौर पर पांच हिस्सों- समय, कारवां, विचार, भूगोल और स्पर्धा में विभाजित किया है, जिसमें कुल 15 अध्याय के माध्यम से विचारों, घटनाओं और कहानियों को लिखा गया है. 

वैश्विकता को समेटे, रोचक आर्थिक-धार्मिक कहानियों का दस्तावेज है 'लक्ष्मीनामा'

मुनि शंकर, नई दिल्लीः ''लक्ष्मीनामा'' एक नये तरीके से भारतीय इतिहास का विवरण है. यूं कहें कि ''लक्ष्मीनामा'' में भारत और विश्व के पारस्परिक आर्थिक और धार्मिक सम्बन्धों को नये तरीके से लिखने की कोशिश की गई है. अगर आप केवल पारम्परिक इतिहास की पुस्तक के तौर पर 'लक्ष्मीनामा' को पढ़ेगें तो आपको निराश होना पड़ेगा क्योकि इसमें तथ्य और पारम्परिक निरन्तरता का अभाव है. वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार अंशुमान तिवारी की प्रभावी लेखनी, अर्थशास्त्र को सरलता से समझाने का प्रयास 'लक्ष्मीनामा' में भी जारी है वहीं अनिन्द्य सेनगुप्ता (जिन्हें ऐतिहासिक कहानियां कहने में महारत हासिल है) ने मिलकर भारत के मठों, मन्दिरों, राजाओं और व्यापारियों के बारे में वर्णन किया है.

लेखकों ने 'लक्ष्मीनामा' को मोटे तौर पर पांच हिस्सों- समय, कारवां, विचार, भूगोल और स्पर्धा में विभाजित किया है, जिसमें कुल 15 अध्याय के माध्यम से विचारों, घटनाओं और कहानियों को लिखा गया है. 

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ब्लूम्सबेरी पब्लिकेशन से प्रकाशित 'लक्ष्मीनामा' उस समय में आयी है जब भूमण्डलीकरण और राष्ट्रवाद के बीच एक अनोखी वैश्विक बहस और जंग चल रही है. दुनिया भर में अमरिका और चीन की कंपनियां अपना जाल तो फैला रही है लेकिन अपने देश में दुसरे देश की कंपनियों से उन्हे गुरेज़ है. ऐसे दौर में लेखको ने यह कहने का साहस दिखाया है कि भारत, प्राचीनकाल से वैश्विक व्यापार का केन्द्र रहा है साथ ही यहां के समकालीन राजाओं, धार्मिक गुरुओं और व्यापारियों ने वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहित किया है. 'लक्ष्मीनामा', बहुत ही अनोखी किताब है जो अफ्रीका के गोबकेली से प्राप्त साक्ष्यों के आधार यह सिध्द करने का प्रयास करती है कि धर्म का प्रादुर्भाव सभ्यता के आरम्भ से हो गया था. कई बार उपलब्ध साक्ष्य और कहानियों से  निष्कर्ष निकालते समय लेखकों ने तर्को से ज्यादा भावनाओं और अनुमानों को महत्व दिया है.

किताब जैसे जैसे आगे बढ़ेगी आपको विश्व के कई सभ्यताओं से रुबरु कराते हुए भारत के भौगोलिक विशेषताओं से भी अवगत कराती जायेगी, जो कि 'लक्ष्मीनामा' को सामान्य श्रेणी की किताबों से अलग करती है. इस तरह का एक सभ्यता या एक देश को केन्द्रित किताब पीटर रोमन ने दी रोमन मार्केट इकोनामी लिखी थी. जिसमें पीटर रोमन ने रोम के गौरवशाली इतिहास के आर्थिक परिप्रेक्ष्य को रेखाकिंत किया लेकिन पीटर रोमन की यह किताब रोम से बाहर नहीं निकल पायी वहीं 'लक्ष्मीनामा' आपको चीन, सुमेरु, वैदिक, मिस्त्र सहित तमाम सभ्यताओं से रुबरु कराती है. 'लक्ष्मीनामा' मसालो के बढ़ते व्यापार, नाविको की आधुनिक खोजो में योगदान, स्थानीय व्यंजनो के विकास के साथ फसलों के वैश्विक प्रसार से जुड़ी अत्यधिक रोचक जानकारी पाठकों तक पहुचाने का प्रयास करती है.     

'लक्ष्मीनामा', भारत के आर्थिक समृद्धि को भी प्रमाणित करती है साथ ही दान की ऐतिहासिक परम्परा का ठोस साक्ष्य भी उपलब्ध कराती है. केरल के विष्णु मन्दिर में मिले स्वर्ण भण्डार में मिले विश्व के विभिन्न हिस्सो के सिक्के इस बात को पुख्ता करते है तो इसके साहित्यिक प्रमाण को भी लिखते हुए फ्रेंच फिजीशियन फ्रांस्वा बर्नियर ने अपने यात्रा वृतान्त में लिखा है कि सोने-चांदी पूरी दूनिया में घुमने के बाद अंत में हिन्दुस्तान में आ जाते हैं. पन्द्रह अध्यायों की यह किताब यह प्रमाणित करने का प्रयास करती है कि वर्तमान अर्थव्यवस्था की जड़ें प्राचीन व्यवस्था में उसी रुप में विद्यमान थे.

यह किताब उपनिवेशवाद से लेकर पूंजीवाद से जुडे इतिहास को बहुत सरल शब्दो में बताने में सफल रही है. यदि लेखकों ने स्वंय को किस्सागोई से बचाया होता तो निसन्देह किताब कुछ कम पन्नो में समाप्त की जा सकती है. हालाकि 'लक्ष्मीनामा' को पढ़ते हुए आप वैश्विक इतिहास की ऐसी यात्रा करेगें जो आपको अमेरिका से लेकर चीन सहित विश्व के सभी सभ्यताओं के धार्मिक-आर्थिक हिस्सो से मुखातिब करायेगीं.

(समीक्षक सेंटर फार इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च में प्रोग्राम डायरेक्टर हैं )

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