गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी 'रत्नावली' के जीवन पर आधारित पुस्तक 'तपस्वनी' का विमोचन
चरितात्मक उपन्यास 'तपस्वनी' का उल्लेखन करते हुए लेखक डॉ. सत्यप्रकाश शर्मा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर आधारित उपन्यासों में उनकी पत्नी रत्नावली को एक सामान्य नारी मात्र दर्शाया गया है.
- गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी पर आधारित है उपन्यास
- लखनऊ के एक समारोह में हुआ पुस्तक का विमोचन
- विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने किया विमोचन
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नई दिल्ली: गोस्वामी तुलतीदास की पत्नी 'रत्नावली' के जीवन पर आधारित चरितात्मक उपन्यास 'तपस्वनी' का विमोचन लखनऊ में आयोजित एक समारोह के दौरान किया गया. इस उपन्यास का विमोचन उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने सिद्धार्थ कपिलवस्तु विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे की मौजूदगी में किया है. गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी के जीवन पर आधारित इस चरितात्मक उपन्यास 'तपस्वनी' के लेखक झांसी सदर से भाजपा के विधायक रवि शर्मा के पिता डॉ. सत्यप्रकाश शर्मा हैं.
चरितात्मक उपन्यास 'तपस्वनी' का उल्लेखन करते हुए लेखक डॉ. सत्यप्रकाश शर्मा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर आधारित उपन्यासों में उनकी पत्नी रत्नावली को एक सामान्य नारी मात्र दर्शाया गया है. उन्होंने अपने उपन्यास तपस्वनी में रत्नावली के हृदय की पीडा को समझा है. तद्नुकूल उन्होंने अपनी लेखनी से उस महान नारी के चरित्र को महानता प्रदान की है. डॉ. सत्यप्रकाश शर्मा ने कहा कि इस उपन्यास में रत्नावली को तपस्विनी के रूप में आकार प्रदान किया है.
उन्होंने बताया कि तुलसीदास से वियुक्त होने पर उत्कट वैराग्य और भक्तिमय अंत:करण की धनी रत्नावली का संपूर्ण संघर्षमय जीवन को वर्णनात्मक शैली में इस उपन्यास में चित्रित किया गया है. उन्होंने कहा कि वस्तुत: मनुष्य या नारी का जीवन समाज सापेक्ष है और समाज का विश्व परमात्मा का अविभाज्य अंश है. अत: समाज की सेवा में तत्पर हो जाना ही परमात्मा की सेवा या भक्ति है. इसी चेतना से संचालित इस उपन्यास में वस्तु-विधान, चरित्र-चित्रण, भाव-वर्णन, प्रकृति-चित्रण आदि के साथ दार्शनिकता के सूत्र को पिरोया गया है.
डॉ. शर्मा के अनुसार, इस उपन्यास में दर्शाया गया है कि पति-वियुक्ता या पति-परित्यक्ता नारी की ऊर्घ्वमुखी चेतना की इतिश्री करणा, हताशा या निराशा में न होकर लोक-सेवा में परिणामित होती है. सामान्य नारी के जीवन में भी एकादृशी, उदारता, उद्दामता, निर्मलता, निरंतरता अथवा गतिशीलता की अपेक्षा है, इसीलिए तो रतना नायक है, नायिका नहीं. मात्र नायिका होना उसके लिए और तुलसीदास के लिए भी उपादेय न हो पाता.
इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के हिनदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह, प्रो. राजकुमार सिंह, भाजपा प्रदेश सह प्रभारी रामेश्वर चौरसिया, राज्यमंत्री हरगोविंद कुशवाहा, ब्रजमोहन मिश्र, प्रो शंकर शरण तिवारी आदि ने भी पुस्तक की पाठ्य सामग्री पर अपने विचार प्रस्तुत किए. राजकुमार अंजुम ने संचालन व विधायक रवि शर्मा एवं सानिध्य बुक्स दिल्ली के संचालक ललित मिर ने संयुक्त रूप से आभार व्यक्त किया.