'हम तो डूबेंगे तुमको भी ले डूबेंगे', कुछ ऐसा है RCom का 'हाल', डूबे पैसे से बैंक 'बेहाल'
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'हम तो डूबेंगे तुमको भी ले डूबेंगे', कुछ ऐसा है RCom का 'हाल', डूबे पैसे से बैंक 'बेहाल'

आरकॉम के कर्जदाताओं में SBI, चाइना डिवेलपमेंट बैंक, HSBC समेत कई 10 बड़े बैंक शामिल हैं. 

'हम तो डूबेंगे तुमको भी ले डूबेंगे', कुछ ऐसा है RCom का 'हाल', डूबे पैसे से बैंक 'बेहाल'

नई दिल्ली: 'हम तो डूबेंगे तुमको भी ले डूबेंगे' कुछ ऐसा ही भारतीय बैंकों के साथ होता नजर आ रहा है. टेलीकॉम इंडस्ट्री की प्राइस वॉर की भेंट चढ़ी रिलायंस कम्युनिकेशंस 18 महीने बाद भी वहीं पर है, जहां पहले थी. कर्ज के लिए रिवाइवल प्लान धरा का धरा रह गया. कर्जदाता हाथ फैलाए खड़े जरूर थे, लेकिन हाथ फिर भी खाली हैं. अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी डूबने की कगार पर है. कर्ज और बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि पहले से नुकसान झेल रहे बैंकों का क्या होगा. क्योंकि, कंपनी के एनसीएलटी में जाने के प्लान से बैंकों की टेंशन बढ़ गई है. 

भारी घाटे ने तोड़ी कमर

अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स या आरकॉम- एक वक्त था जब ये भारत की दूसरी बड़ी टेलिकम्युनिकेशन्स कंपनी थी. मगर अब ये कंपनी दिवालिया होने की कगार पर है. उसका ये हाल उसके प्रतिद्वंद्वियों ने किया, जिनमें उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी की कंपनी जियो भी शामिल है. शेयर बाजार में भारी घाटे ने आरकॉम की कमर तोड़ दी. पिछले कई साल से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कंपनी ने अब आखिरकार कोर्ट में कर्ज की समस्या के समाधान के लिए अर्जी लगाई है.

NCLT में होगा रिजॉल्यूशन
रिलायंस कम्युनिकेशंस भी टेलीकॉम इंडस्ट्री की प्राइस वॉर में दम तोड़ चुकी है. कंपनी ने अपने कारोबार विस्तार के लिए जो कर्ज लिया था, उसे चुकाने में वो नाकाम रही. कर्ज बढ़ते-बढ़ते 45 हजार करोड़ के पार निकल गया. कंपनी के बोर्ड ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत दिवालिया होने की अपील की है. इसके लिए वह नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के जरिए फास्ट ट्रैक रिजॉल्यूशन के लिए गुहार लगाएगी. कंपनी ने अपने सभी देनदारों को कहा है कि ओवरऑल डेब्ट रिजॉल्यूशन प्रॉसेस में कोई प्रोग्रेस नहीं हुई है.

कंपनी के पास अब दो विकल्प
रिलायंस कम्युनिकेशंस के पास अब दो विकल्प हैं. पहला NCLT में सुनवाई के दौरान कंपनी एक और रिवाइवल प्लान लेकर आए. इस प्लान से कंपनी अपनी संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने की कोशिश कर सकती है. हालांकि, इस बार यह प्लान IBC के तहत होगा. वहीं, दूसरा ऑप्शन कंपनी दिवालिया घोषित हो जाए और एनसीएलटी कंपनी को नीलाम करने का आदेश दे. मार्केट एक्सपर्ट आसिफ इकबाल का कहना है कि नीलामी के मामले में जो भी इसे खरीदने के लिए बोली लगाएगा. उसे सबसे पहले कंपनी का कर्ज चुकाना होगा. ऐसी स्थिति में कंपनी को खरीदने वाले खरीदार भी कम नजर आते हैं.

कर्जदाताओं को होगा नुकसान
अनिल अंबानी की स्वामित्व वाली कंपनी आरकॉम को कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति में कंपनी के कर्जदाताओं को बड़ा नुकसान होता दिख रहा है. दरअसल, सबसे ज्यादा नुकसान बैंकों का है. क्योंकि, बैंकों का कर्ज लगातार बढ़ रहा है. पिछले दो साल में बैंकों के हाथ कुछ नहीं लगा. अब अगर कंपनी दिवालिया होती है तो भी बैंकों को उसकी पूरी रकम नहीं मिलेगी. क्योंकि, कंपनी के बिकने से जो भी राशि मिलेगा. उसे सभी कर्जदाताओं में बांटा जाएगा. 

कौन से कर्जदाताओं को लगेगा झटका?
आरकॉम के कर्जदाताओं में SBI, चाइना डिवेलपमेंट बैंक, HSBC समेत कई 10 बड़े बैंक शामिल हैं. इसके अलावा कंपनी के कुल 40 विदेशी और भारतीय कर्जदाताओं हैं. पिछले 18 महीने में कंपनी ने एसेट सेल के लिए 40 बैठकें कीं, लेकिन बात नहीं बनी और भारतीय अदालती व्यवस्था में कानूनी उलझनें बढ़ती गईं. 'बोर्ड को लगता है कि एनसीएलटी में जाने का कदम सभी स्टेकहोल्डर्स के हित में है. इससे 270 दिनों के भीतर पारदर्शी तरीके से निश्चित समय में डेट रेजॉलूशन की प्रक्रिया पूरी होगी.'

क्यों हुआ कंपनी का यह हाल?
अनिल अंबानी के भाई मुकेश अंबानी के टेलीकॉम सेक्टर में उतरने के कारण ही आरकॉम की स्थिति बुरी हुई है. मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली जियो इंफोकॉम ने टेलीकॉम सेक्टर में उतरते ही तहलका मचा दिया और अन्य टेलीकॉम कंपनियों के लिए अब बाजार पर कब्जा बनाए रखना मुश्किल हो गया. कुछ कंपनियों ने मर्जर के जरिए खुद को बाजार में बचाए रखा, वहां आरकॉम पर लगातार वित्तीय संकट बढ़ता रहा. प्राइस वॉर के कारण आरकॉम को अपनी कंपनी के कई ऑपरेशंस रोकने पड़े.

क्यों अटकी डील?
आरकॉम ने अपने एसेट बेचकर 25 हजार करोड़ रुपए जुटाने की उम्मीद जताई थी. इसके अलावा आरकॉम और जियो की डील से भी आरकॉम को करीब 975 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद थी, लेकिन इसे दूरसंचार विभाग से इसे मंजूरी ही नहीं मिली. 975 करोड़ रुपए जुटाने पर उसने 550 करोड़ रुपए एरिक्सन और 230 करोड़ रुपए रिलायंस इंफ्राटेल को चुकाने का वादा किया था. दूरसंचार विभाग की शर्त थी कि डील के बाद आरकॉम का कर्ज जियो चुकाएगी, लेकिन जियो ने अपने हाथ खींच लिए. बता दें कि कंपनी के NCLT में जाने के प्लान की खबर के बाद 4 फरवरी को शेयर की कीमत 54 फीसदी तक गिर गई थी. आज (5 फरवरी) भी शेयर की कीमत में 28 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है.

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