क्रेडिट कार्ड के डिफाल्टर्स के लिए जरूरी खबर, अदालत ने दिया यह आदेश
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क्रेडिट कार्ड के डिफाल्टर्स के लिए जरूरी खबर, अदालत ने दिया यह आदेश

अगर आपकी तरफ भी किसी बैंक के क्रेडिट कार्ड का बकाया है तो यह खबर आपको जरूर पढ़नी चाहिए. जी हां आप भले ही व्हाट्सएप मैसेज को गंभीरता से न लेते हो लेकिन एक अदालत ने व्हाट्सएप के जरिए भेजे गए नोटिस को वैध बताया है.

क्रेडिट कार्ड के डिफाल्टर्स के लिए जरूरी खबर, अदालत ने दिया यह आदेश

नई दिल्ली : अगर आपकी तरफ भी किसी बैंक के क्रेडिट कार्ड का बकाया है तो यह खबर आपको जरूर पढ़नी चाहिए. जी हां आप भले ही व्हाट्सएप मैसेज को गंभीरता से न लेते हो लेकिन एक अदालत ने व्हाट्सएप के जरिए भेजे गए नोटिस को वैध बताया है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बैंक से बच रहे एक क्रेडिट कार्ड डिफाल्टर ने पीडीएफ फाइल में नोटिस देखकर पढ़ने के साथ ही खोलकर पढ़ा भी.

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार नालासोपारा निवासी रोहिदास जाधव पर साल 2010 में क्रेडिट कार्ड का 85 हजार रुपये बकाया था. सुनवाई के दौरान 2011 में हाईकोर्ट ने रोहिदास को 8 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने का आदेश दिया. हालांकि जाधव ने बैंक को बकाया का भुगतान नहीं किया. इसके बाद हाईकोर्ट एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेस की तरफ से 2015 में 1.17 लाख रुपये के बकाए के लिए केस किया.

इस बीच जाधव ने अपना घर शिफ्ट कर दिया और एसबीआई कार्डस उसे लीगल नोटिस सर्व नहीं कर पाया. हालांकि एसबीआई कार्ड्स के पास जाधव का मोबाइल नंबर था. ऐसे में बैंक के री-प्रजेंटेटिव ने व्हाट्सएप पर जाधन को इस बारे में अगली सुनवाई के बारे में इंफारमेशन दी. साथ ही वकील ने जाधव के मोबाइल नंबर पर नोटिस की पीडीएफ भी भेजी.

वकील मुरलीधर काले ने अदालत को बताया कि जाधव ने नोटिस रिसीव करने के साथ ही इसे पढ़ा भी है. ब्लू टिक से यह साफ हो रहा है. वकील मुरलीधर काले ने कहा कि जाधव ने घर बदल लिया था ऐसे में उन्हें नोटिस भेजा नहीं जा सका. उनके पास जाधव का फोन नंबर उपलब्ध था, उस पर नोटिस भेज दिया गया जो कि हाईकोर्ट ने अपने रिकॉर्ड में लिया.

कंपनी ने क्रियान्वयन याचिका के साथ हाईकोर्ट की शरण ली क्योंकि जाधव ने उसके कॉल उठाने बंद कर दिए. साथ ही उसके अधिकारियों से मिलने से इनकार कर दिया. अदालत ने कंपनी से कहा कि वह सुनवाई की अगली तारीख तक प्रतिवादी का आवासीय पता पेश करे ताकि यदि आवश्यकता पड़े तो उसके खिलाफ वारंट जारी किया जा सके.

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