भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन से संतुलित विकास : जेटली
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भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन से संतुलित विकास : जेटली

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भूमि अधिग्रहण कानूनों में बदलाव के खिलाफ आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा कि इन संशोधनों से जहां भू-स्वामियों को उनकी जमीन के लिए अधिक मुआवजा सुनिश्चित होगा, वहीं देश की विकास संबंधी जरूरतें भी पूरी होंगी।

भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन से संतुलित विकास : जेटली

नई दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भूमि अधिग्रहण कानूनों में बदलाव के खिलाफ आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा कि इन संशोधनों से जहां भू-स्वामियों को उनकी जमीन के लिए अधिक मुआवजा सुनिश्चित होगा, वहीं देश की विकास संबंधी जरूरतें भी पूरी होंगी।

जेटली ने फेसबुक पर ‘भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन : सही तस्वीर’ शीर्षक से एक टिप्पणी की है। इसमें कहा गया है, ‘यह संशोधन भारत की खासकर ग्रामीण भारत की विकास संबंधी जरूरतों को संतुलित करता है और ऐसा करते हुए भी यह भूमि स्वामियों के लिए अधिक मुआवजे की व्यवस्था सुनिश्चित करता है।’ केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कुछ पूछताछ के बाद 31 दिसंबर, 2014 को ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन में उचित क्षतिपूर्ति का अधिकार और पारदर्शिता (संशोधन) अधिनियम, 2013’ में संशोधन संबंधी अध्यादेश को मंजूरी दे दी।

इस कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश का रास्ता चुनने के सरकार के निर्णय की पूर्व मंत्री व कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने जबरदस्त आलोचना की। उन्होंने इस कदम को ‘चिंताजनक’ बताया। जेटली ने कहा कि इस कानून में संशोधन करना जरूरी हो गया था क्योंकि बार बार इस बात को दोहराया गया है कि भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 पुराना पड़ चुका है इसमें संशोधन की जरूरत है।

वित्त मंत्री ने लिखा है, ‘जो लोग इसके खिलाफ हैं वे अपनी पार्टी वाली राज्य सरकारों को अध्यादेश के प्रावधानों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दे सकते हैं। ऐसे में यह समय बाताएगा कि इस प्रतिस्पर्धी वाली संघीय व्यवस्था के दौर में ऐसा करने वाले राज्य किस तरह पिछड़ेंगे।’’

जेटली ने कहा कि 1984 के कानून में मुआवजे के प्रावधान अत्यधिक अपर्याप्त थे और ‘यह आवश्यक हो गया था कि और अधिक मुआवजे के साथ साथ पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन पैकेज के भी प्रावधान किए जाएं। 2013 के कानून में ऐसा किया गया। मैं इस आधार पर 2013 के कानून का समर्थन करता हूं।’ पर जेटली ने लिखा है कि भू-अधिग्रहण के लिए संसद द्वारा बनाए गए 13 कानूनों को इस अधिनियम की चौथी अनुसूची में रख दिया गया है। धारा 105 में प्रावधान है कि सरकार एक अधिसूचना जारी कर कानून में मुआवजा या पुनर्वास एवं पुनस्र्थापना संबंधी ‘किसी’ प्रावधान को छूट वाले कानूनों पर लागू कर सकती है।

‘प्रस्तावित’ अधिसूचना को 30 दिनों के लिए संसद के समक्ष पेश करने का प्रावधान है और संसद इसे मंजूर, खारिज या संशोधित कर सकती है। जेटली ने कहा, ‘अध्यादेश लाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि इस तरह की अधिसूचना को जुलाई-अगस्त, 2014 में बजट सत्र में ही संसद के समक्ष पेश करना था और उसके अनुसार उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति कराई जानी थी। इस तरह की अधिसूचना के लिए 31 दिसंबर, 2014 अंतिम दिन था, इसलिए सरकार ने धारा 105 में संशोधन करने और 2013 के कानून में मुआवजे और पुनर्वास व पुनर्स्थापना संबंधी सभी प्रावधानों को छूट-प्राप्त सभी 13 अधिनियमों पर लागू करने का कदम उठाया।’

वित्त मंत्री ने कहा, ‘इस प्रावधान के जरिए वर्तमान अध्यादेश यह व्यवस्था करता है कि यदि किसानों की जमीन किसी भी छूट वाले कानूनों के तहत अधिग्रहित की जाती है तो उन्हें अधिक मुआवजा मिलेगा।’ इन्हीं कारणों से साल के आखिरी दिन अध्यादेश जारी करना भी जरूरी हो गया था अन्यथा सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी करने से चूक जाती। साथ ही उन्होंने कहा कि भू-आहरण का अधिकार ऐतिहासिक रूप से सरकार का अधिकार है। आवास, नगर विकास, शहरीकरण, उपनगरीकरण, औद्योगीकरण, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विकास, सिंचाई और रक्षा कार्य के लिए जमीन का अधिग्रहण करना ही पड़ता है। ऐसे कार्य में सार्वजनिक हित को हमेशा से निजी हित के ऊपर वरीयता मिलती ही है।

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