कच्चे तेल की कीमत 0 डॉलर से भी कम, फिर भी हमें Free में क्यों नहीं मिलेगा पेट्रोल? यहां जानें
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कच्चे तेल की कीमत 0 डॉलर से भी कम, फिर भी हमें Free में क्यों नहीं मिलेगा पेट्रोल? यहां जानें

इससे पहले 1946 में आई थी इतनी गिरावट

फाइल फोटो

नई दिल्ली: ये मौका लगभग 74 साल बाद आया है. कच्चे तेल की कीमत आपके एक बोतल पानी से भी कम हो गई है. कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत औंधे मुंह गिर गई है. सोमवार को न्यूयॉर्क में कच्चे तेल की कीमत में इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि इससे हमें क्या फायदा? क्या भारत में पेट्रोल की कीमतों में कोई फर्क आएगा?

  1. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 0 डॉलर से भी कम
  2. 74 साल में ये सबसे बड़ी गिरावट है
  3. क्या भारत में मिलेगा इसका फायदा?

क्या आपको Free मिलेगा पेट्रोल?
भले अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत  -37.63 डॉलर के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया हो. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपको पेट्रोल और डीजल मुफ्त मिलने वाला है. सरकार आयातित कच्चे तेल के बेस प्राइस में एक्साइज ड्यूटी, वैट और कमीशन भी जोड़ती है. इसके बाद ही आपको पेट्रोल मिलता है. यही कारण है कि पिछले तीन महीने से कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद सरकार ने कीमतें कम करने की बजाए एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दिया. आपको अभी भी पेट्रोल या डीजल की कीमतों में मामूली फायदा मिल रहा है.

इसे ऐसे भी समझें, 1 अप्रैल को कच्चे तेल की कीमत गिरकर 23 डॉलर प्रति बैरल यानी प्रति लीटर 11 रुपए पर आ गई.  इसके बावजूद दिल्ली में 1 अप्रैल को पेट्रोल का बेस प्राइस 27 रुपए 96 पैसे तय किया गया. इसमंं 22 रुपए 98 पैसे की एक्साइज ड्यूटी लगाई गई. 3 रुपए 55 पैसा डीलर का कमीशन जुड़ गया और फिर 14 रुपए 79 पैसे का वैट भी जोड़ दिया गया. अब एक लीटर पेट्रोल की कीमत 69 रुपए 28 पैसे हो गई. यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल भले ही सस्ता हो जाए, लेकिन आपको पेट्रोल की कीमत ज्यादा ही चुकानी पड़ती है.

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1946 में आई थी इतनी गिरावट
जानकारों का कहना है कि डब्ल्यूटीआई में कच्चा तेल का भाव सोमवार को गिरकर 0 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे -37.63 डॉलर प्रति बैरल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. कारोबार की शुरुआत 18.27 डॉलर प्रति बैरल से हुई थी लेकिन यह ऐतिहासिक 1 डॉलर और उसके बाद जीरो और बाद में कम होकर निगेटिव में पहुंच गई. 1946 के बाद पहली बार इस तरह की गिरावट देखने को मिली है. 

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