इस दफा आम की फसल को बहुत नुकसान हुआ है. इस बार आम की पैदावार महज 15 से 20 लाख मीट्रिक टन ही होगी, जो पिछले साल 45 लाख मीट्रिक टन थी.
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लखनऊ: मौसम की मार के चलते उत्पादन में करीब 60 फीसद की गिरावट से परेशान और कथित मनमाने मंडी शुल्क से परेशान आम उत्पादकों ने इस उपज को भी फसल बीमा योजना से जोड़ने की मांग की है. ऑल इण्डिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली ने बताया ‘‘पहले से ही बौर में कमी थी और अनुकूल मौसम ना होने के कारण उसमें से भी काफी बौर झड़ गए. इस कारण इस दफा आम की फसल को बहुत नुकसान हुआ है. इस बार आम की पैदावार महज 15 से 20 लाख मीट्रिक टन ही होगी, जो पिछले साल 45 लाख मीट्रिक टन थी. इससे आम के निर्यात में भी 50 से 60 प्रतिशत की गिरावट आयेगी. हमारी मांग है कि आम को भी फसल बीमा योजना के दायरे में लाया जाए.’’
सभी आम पर एक समान शुल्क ठीक नहीं
उन्होंने बताया कि आम उत्पादन को अपेक्षित सरकारी सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से यह फसल लगभग हर साल भगवान भरोसे ही रहती है. इस दफा आम उत्पादकों को करीब 60 प्रतिशत फसल का नुकसान हुआ है, ऊपर से मंडी परिषद की अव्यावहारिक शुल्क वसूली से दुश्वारी और बढ़ गयी है. अली ने बताया कि मंडी परिषद आम की फसल पर 2500 रुपये प्रति क्विंटल शुल्क वसूल रही है. जो आम 25 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है, उस पर भी यही शुल्क लिया जा रहा है और जो 10 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, उस पर भी इतना ही शुल्क वसूला जा रहा है. सरकार को चाहिये कि दाम के हिसाब से शुल्क तय करे.
राज्य सरकार से कई बार कर चुके हैं मांग
उन्होंने आम की उपज को भी फसल बीमा योजना से जोड़ने की मांग करते हुए बताया कि उन्होंने इस सिलसिले में राज्य सरकार को कई बार लिखा. ‘‘अब हमें केन्द्र सरकार ने बुलाया है, जिसके तहत 17 जून को कृषि सचिव के साथ बैठक की होगी. इसमें फसल बीमा के अलावा ट्यूबवेल शुल्क के तर्कसंगत ना होने और आम के पेड़ों पर छिड़काव के लिये बाजार में बिक रही नकली दवाओं की रोकथाम के मुद्दे भी उठाये जाएंगे.’’
सिचांई के नाम पर मनमाना वसूली
अली ने बताया कि आम उत्पादकों से 12 महीने का ट्यूबवेल का बिल लिया जाता है जबकि सिंचाई मार्च—अप्रैल में बमुश्किल 15 दिन ही होती है. कृषि सचिव के साथ बैठक में मांग की जाएगी कि आम उत्पादकों को सिर्फ एक महीने के लिये ही कनेक्शन दिया जाए. इसके अलावा मैंगो बेल्ट में छिड़की जाने वाली दवाओं की नकल को रोकने और नकली दवाओं की रोकथाम के मकसद से उनकी जांच के लिये प्रदेश की सभी 15 मैंगो बेल्ट में लैब बनाये जाने की मांग भी की जाएगी. उन्होंने बताया कि इस बार अप्रैल में अपेक्षित गर्मी नहीं होने की वजह से डाल पर पका दशहरी आम बाजार में एक हफ्ते देर से पहुंचेगा. पहले, जून के पहले सप्ताह में बाजार में डाल की दशहरी आ जाती थी, मगर इस दफा यह दूसरे सप्ताह में आयेगा. पैदावार कम होने की वजह से लोगों को इसका ज़ायक़ा लेने के लिये ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे.
यूपी में आम की बड़े पैमाने पर खेती
उत्तर प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक जिले लखनऊ, अमरोहा, सम्भल, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर हैं. लगभग ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फलों के राजा की विभिन्न किस्में उगायी जाती हैं. इनमें दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फ़ाज़ली, मल्लिका, गुलाब खस और आम्रपाली प्रमुख हैं. देश में आम का सबसे बड़ा बाजार उत्तर प्रदेश है. इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, सऊदी अरब, क़तर, कुवैत और अमेरिका में भी भारतीय आम की विभिन्न किस्मों के दीवानों की कमी नहीं है.