राजन के RBI गवर्नर बने रहने से भारत को फायदा होता: सुब्बाराव
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राजन के RBI गवर्नर बने रहने से भारत को फायदा होता: सुब्बाराव

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के केन्द्रीय बैंक के गवर्नर का पद छोड़ने और अपने कार्यकाल के विस्तार से इनकार करने के फैसले पर केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने आश्चर्य जताया है। सुब्बाराव ने आज कहा कि राजन के रिजर्व बैंक गवर्नर के पद पर बने रहने का देश को वृहदआर्थिक प्रबंधन के क्षेत्र में काफी फायदा मिलता।

राजन के RBI गवर्नर बने रहने से भारत को फायदा होता: सुब्बाराव

नयी दिल्ली: रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के केन्द्रीय बैंक के गवर्नर का पद छोड़ने और अपने कार्यकाल के विस्तार से इनकार करने के फैसले पर केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने आश्चर्य जताया है। सुब्बाराव ने आज कहा कि राजन के रिजर्व बैंक गवर्नर के पद पर बने रहने का देश को वृहदआर्थिक प्रबंधन के क्षेत्र में काफी फायदा मिलता।

सुब्बाराव ने कहा, ‘मैं यह कह सकता हूं कि गवर्नर राजन के इस फैसले से कि वह इस पद पर आगे बने नहीं रहना चाहते हैं मैं आश्चर्यचकित रह गया। मेरा मानना है कि उन्होंने इस पद पर रहते अच्छा काम किया और यदि वह गवर्नर के पद पर बने रहते तो देश को वृहदआर्थिक प्रबंधन में उनके अनुभव का काफी लाभ मिलता।’ रिजर्व बैंक के गवर्नर पद के लिये आप किसे ठीक समझते हैं? इस सवाल के जवाब में सुब्बाराव ने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति चाहे वह आर्थिक पृष्ठभूमि वाला नहीं हो लेकिन उसमें पर्याप्त नेतृत्व क्षमता और प्रतिभा हो, वह भी रिजर्व बैंक का नेतृत्व कर सकता है। इसलिये ऐसा मानना कि रिजर्व बैंक का गवर्नर कोई अर्थशास्त्री ही होना चाहिये, हमें इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिये।’

सुब्बाराव ने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लेगार्ड का उदाहरण देते हुये कहा कि वह अर्थशास्त्री नहीं हैं लेकिन ‘काफी अच्छा काम कर रही हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिये यह मानना कि कोई भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी अच्छा गवर्नर होगा या फिर कोई अर्थशास्त्री ही अच्छा गवर्नर हो सकता है, मेरा मानना है कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।’ देश में वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के बाद राजन रिजर्व बैंक के पहले गवर्नर होंगे जिनका सबसे कम कार्यकाल होगा। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से उन पर राजनीतिक हमले किये जाने के बाद उन्होंने गवर्नर के पद पर दूसरा कार्यकाल लेने से इनकार कर दिया। सुब्बाराव ने रिजर्व बैंक गवर्नर के तौर पर अपने कार्यकाल को याद करते हुये कहा कि उस समय लेमन ब्रदर्स के संकट से ज्यादा उनके लिये रुपये का संभाले रखना बड़ी चुनौती थी। सुब्बाराव सितंबर 2008 से लेकर सितंबर 2013 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे।

उन्होंने कहा, ‘विनिमय दर को लेकर धारणाओं को व्यवस्थित करना काफी चुनौतीपूर्ण है।’ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ उनके संबंधों के बारे में पूछे जाने पर सुब्बाराव ने कहा, ‘जहां तक मेरी बात है, उस समय के प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक में मेरे नेतृत्व को लेकर काफी सकारात्मक थे।’ ‘और तत्कालीन वित्त मंत्री के साथ मेरा जो भी मनमुटाव या टकराव होता था उस मामले में वह (मनमोहन सिंह) एक बेहतर मध्यस्थ रहे हैं।’ प्रस्तावित नई मौद्रिक नीति समिति के बारे में पूछे जाने पर सुब्बाराव ने कहा, ‘यही रास्ता है जिसपर हमें चलना है।’ यह समिति ब्याज दर तय करने के अधिकार को रिजर्व बैंक गवर्नर से हटाकर एक व्यापक दायरे वाली समिति के हाथों में पहुंचा देगी। सुब्बाराव ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की पेशेवराना क्षमता दुनिया में सबसे बेहतर है।

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