छोटे शहरों में तय समय पर दिए जाएंगे सस्ते मकानः एके मित्तल
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छोटे शहरों में तय समय पर दिए जाएंगे सस्ते मकानः एके मित्तल

 अब छोटे शहरों में सस्ते मकान बनाने पर पूरा जोरः एके मित्तल

नई दिल्लीः एक तरफ देश में प्रॉपर्टी की कीमतें लगातार घट रही हैं. बड़ी-बड़ी कंपनियों के प्रोजेक्ट रुके हुए हैं. ऐसे में सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनी का रियल इस्टेट में नए प्रोजेक्ट को लेकर आना बेहद चुनौतीपूर्ण है. नवरत्न कंपनी एनबीसीसी (नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लि.)  के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक से हमारे संवाददाता नवीन कुमार ने निर्माण क्षेत्र से जुड़े विभिन्न विषयों पर विस्तार से बात की. पढ़िए, इस साक्षात्कार के प्रमुख अंश. 

नवरत्न कंपनी एनबीसीसी रियल इस्टेट में भी है, कंपनी की ये स्कीम मोदी सरकार की सस्ता घर देने की परियोजना से कैसे मेल खाती है? 

इस प्रोजेक्ट के तहत हमारी कंपनी दो तरह के से काम कर रही है. एक एनबीसीसी के अपने प्रोजेक्ट्स और दूसरा कई राज्य सरकारों के लिए हम विभिन्न योजनाओं के तहत मकान बना रहे हैं. हमारे अपने जो प्रोजेक्ट्स हैं उनके तहत हम कई जगहों पर सस्ते घर उपलब्ध कराते हैं. हम बागपत जिले के लोनी में सस्ते मकान बना रहे हैं, जिनको हमने 1200 रुपए स्क्वायर फीट पर बेचना करना शुरू किया था. यहां 10-15 लाख रुपए में आप टू बीएचके या थ्री बीएचके मकान ले सकते हैं. इसी तरह का एक प्रोजेक्ट हमने अलवर में भी शुरू किया है. मेरठ और सहारनपुर में भी एनबीसीसी ने जमीन ली है. ऐसा नहीं है कि हम केवल दिल्ली, मुंबई कोलकाता में ऐसे घर बनाने जा रहे हैं, हम छोटे शहरों में भी लोगों को मकान बनाकर दे रहे हैं. जहां-जहां हमें जमीन की कीमत कम पड़ती है, वहां हम सस्ते मकान बना रहे हैं.  

दूसरा हम बहुत सारे सस्ते मकान राज्य सरकारों के लिए बना रहे हैं, जिसे राज्य सरकार आगे लोगों को देती है. इसके तहत स्लम रिहेबिलिटेशन के लिए और जिनके मकान नहीं हैं, उनको मकान दिए जा रहे हैं. जैसे राजीव आवास योजना के तहत मकान दिए जाते हैं. 

रियल इस्टेट सेक्टर प्रोजेक्ट्स में सबसे ज्यादा शिकायतें जमीन अधिग्रहण को लेकर होती हैं, एक सरकारी कंपनी का जमीन अधिग्रहण का क्या तरीका होगा? 

हम कोई भी जमीन किसानों से या किसी अन्य व्यक्ति से नहीं लेते हैं. हम जमीन राज्य सरकार, हाउसिंग बोर्ड या विकास प्राधिकरण से खरीदते हैं. प्राइवेट बिल्डर किसानों से जमीन लेते हैं, लेकिन हम केवल सरकारी संस्थाओं से जमीन खरीदते हैं. 

रियल इस्टेट सेक्टर की कंपनियों से लोगों की बड़ी शिकायतें मकान पर कब्जा लेने यानि पॉजेशन लेने को लेकर रहती है, कंपनी इस बारे में क्या सोचती है?

अक्सर बिल्डर मकान बनाने का जो समय लोगों को देते हैं, उसे वो तय समय में नहीं बना पाते हैं. उसके कई कारण होते हैं. बिल्डर अपने पैसे दूसरे प्रोजेक्ट्स में लगा देता है, बिल्डर को राज्य सरकारों से एनओसी नहीं मिल पाती है,  बिल्डर को कम्पलिशन सर्टिफिकेट नहीं मिलता है, क्वालिटी के इश्यू आते है. कई चीजों में बिल्डर की गलती भी नहीं होती है, क्योंकि बिल्डरों की मांग है कि उन्हें सिंगल विंडो क्लीयरेंस मिलनी चाहिए.  फिर चाहे वो नक्शे पास करना हो या फिर अन्य क्लीयरेंस. कुछ राज्य सरकारों ने सिंगल विंडो क्लियंस सिस्टम को लागू कर दिया है, लेकिन सभी जगहों पर ये सिस्टम नहीं है. इस समस्या के अलावा जो भी देरी होती है वो बिल्डर की खुद की वजह से होती है. 

क्या एनबीसीसी के प्रोजेक्ट्स में इनवेंस्ट करने वालों को ऐसी परेशानियां नहीं आएंगी? 

जी बिलकुल नहीं आएंगी. बिल्डर और एनबीसीसी में यही फर्क है कि जब हम कोई प्रोजेक्ट शुरू करते हैं तो उसे अपनी ही लागत से पूरा करते हैं. बिल्डर जब तक मकान में खरीदने वाले का पैसा नहीं आता है तब तक वो उसे पूरा नहीं करते, कभी-कभी तो वे उस पैसे को दूसरे प्रोजेक्ट्स में लगा देता है. लेकिन हमारे केस में ऐसा नहीं है. हमारा मकान यदि नहीं भी बिका तो भी हम पहले प्रोजक्ट को पूरा करेंगे, बाद में मकान बिकता रहेगा. 

भवन निर्माण मानकों पर वर्तमान रियल इस्टेट प्राइवेट कंपनियां कितनी खरी उतरी है? सामान्य लोगों को कहां निवेश करने से सावधान रहना चाहिए?   

सबसे पहले तो ये देखना चाहिए कि उसका नक्शा पास हुआ है या नहीं? दूसरा टाइमलाइन के मुताबिक काम चल रहा है या नहीं. वैसे ये आसान नहीं है, लेकिन एक इनवेस्टर बिल्डर की सभी चीजों पर ध्यान नहीं दे सकता है. वैसे रियल इस्टेट रेगुलेटिंग अथॉरिटी बनने के बाद कुछ चीजे बदल जाएंगी. 

मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स में एनबीसीसी का क्या योगदान रहेगा? 

स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट्स में हमारा रोल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने में आता है. दूसरा आईटी से संबंधित कार्य भी हम लोग करते हैं. हमने आईबीएम के साथ एक ज्वाइंट वेंचर किया है, लेकिन इन सबके बावजूद भी सबसे बड़ी समस्या है स्मार्ट सिटी को बनाने के लिए पैसा कहां से आएगा? क्योंकि देश के सभी नगर निकायों के पास पैसा नहीं है, वहां हमारा रोल है कि हम उनकी प्रॉपर्टी से रेवेन्यू जनरेट करें और जरुरत पड़े कुछ प्रॉपर्टीज का रिडेवलपमेंट करें, जिससे स्मार्ट सिटी के लिए रेवेन्यू आ जाए. यही ऑफर हमने विभिन्न राज्यों और नगर पालिकाओं को दिया है.    

विदेशों में एनबीसीसी के कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स चल रहे है, उनकी क्या स्थिति है?

विदेशों में अभी हम मालद्वीप में तीन प्रोजेक्ट कर रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है- मालद्वीप में पुलिस अकादमी बनाने का है. इसके बाद हमने मॉरिशस में दो प्रोजेक्ट लिए हैं. एक हम वहां सुप्रीम कोर्ट की बिल्डिंग बना रहे हैं और एक हाउसिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण कर रहे हैं. इसके अलावा हमने विदेशों में काम करने के लिए एक सब्सिड्री कंपनी खोली है, जिसका नाम है एबीसीसी ओवरसीज. ये कंपनी विदेशों से काम लाने और उसे पूरा करने का काम करेगी. अगले पांच सालों का हम रोड मैप बना रहे हैं कि हम विदेशों में कितना काम करेंगे. 

एनबीसीसी का प्राइम फोकस प्रोजेक्ट मैनेजमेंट की तरफ है क्या ये सच है? इसके तहत कंपनी किस प्रकार के कार्य कर रही है?

जी बिलकुल ये सच है. 90 प्रतिशत हमारा बिजनेस प्रोजेक्ट मैनेजमैंट के जरिए आता है, क्योंकि ये रिस्क फ्री बिजनेस है. हम जो सर्विस देते हैं उस पर हमें तय फीस मिलती है वही हमारा प्रोफिट होता है. आने वाले दिनों में हम इसे और बढ़ाएंगे. इसके तहत हम कई जगह रि-डेवलपमेंट के कार्य कर रहे हैं, जैसे दिल्ली के किदवई नगर में हमारा काम चल रहा है.  इसके तहत हम अस्पताल, सड़क, आईआईटी, बॉर्डर फैंसिंग जैसे काम करते है.

देश के सूखाग्रस्त क्षेत्र में के लिए एक सिंचाई योजना पर भी एनबीसीसी काम कर रही है, क्या है ये प्रोजेक्ट?

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हमें नागपुर में उनके एक सिंचाई प्रोजेक्ट का काम दिया है. ये प्रोजेक्ट पिछले 26 साल से चल रहा था और ये काम 18 हजार करोड़ रुपए का था. इसमें से अभी 8 हजार करोड़ का काम बचा है. महाराष्ट्र सरकार ने ये फैसला किया ये काम अब राज्य सिंचाई विभाग की जगह केंद्र सरकार के उपक्रम द्वारा कराया जाए. हम अगले दो महीने में काम शुरू कर देंगे. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से पूरे विदर्भ में लोगों को सूखे से राहत मिलेगी. 

एनबीसीसी देश की सांस्कृतिक धरोहरों को संजोने और उनके पुनरोद्धार में भी योगदान देने जा रही है, कुछ इसके बारे में बताएं? 

इस क्षेत्र में हम कुछ परियोजना सरकार के लिए करते हैं. जैसे हमने कोलकाता में विक्टोरिया मैमोरियल को रेनोवेट किया है, इंडियन म्यूजियम को हमने रेनोवेट किया है. हमने ताज महल को रेनोवेट करने की बात भी कही थी लेकिन वो कॉन्ट्रेक्ट हमें नहीं मिल सका. हमने पुराने किले को रेनोवेट करने की मांग की. दो साल की मेहनत करने के बाद ये प्रोजेक्ट हमें मिला. हम इसे रेनोवेट करने में 15 से 20 करोड़ रुपए खर्च करेंगे.  

वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए कंपनी को किन-किन बड़ी परियोजनाओं में अपना योगदान देने का अवसर मिला है?  

सिंचाई परियोजना, रि-डेवलपमेंट, एम्स, आईआईटी, असम और ओडिशा सरकार हमें काम दे रही है. 6 महीने के बाद आप देखेंगे कि अगले पांच साल के लिए एनबीसीसी का स्वर्णिम युग शुरू हो जाएगा.

वित्तीय वर्ष 2016-17 के आंकड़ों के मुताबिक एनबीसीसी का टर्नओवर कितना रहा? 

अभी बैलेंसशीट बन रही है. मैं विश्वास से कह सकता हूं कि इसमें जो भी आंकड़ें होंगे वो पिछले साल से बेहतर होंगे. 

एनबीसीसी अगले पांच सालों के लिए कोई विजन डॉक्यूमेंट तैयार कर रही है, क्या है ये विजन डॉक्यूमेंट?

आप इसे विजन डॉक्यूमेंट भी कह सकते हैं या कॉर्पोरेट प्लान भी. इसमें हम ये तय करेंगे कि हम अगले पांच साल में क्या करेंगे. किस तरह के प्रोजेक्ट करेंगे, किस तकनीक पर आधारित प्रोजेक्ट करेंगे. इसमें हम ये भी तय करेंगे कि केवल रेवेन्यू या लाभ-हानि पर बात नहीं होनी चाहिए, हम देश को क्या देंगे? क्वालिटी को किस तरह बेहतर करेंगे, क्या कॉस्ट कटिंग करेंगे? ये सब इस विजन डॉक्यूमेंट के अंदर आएगा. इसके अलावा भारत सरकार की कुछ कंस्ट्रक्शन पीएसयू का एकत्रीकरण करें. इस विजन डॉक्यूमेंट में ये तय होगा कि किन-किन कंपनियों को हम इसके तहत लेंगे. जैसे अभी हमने हिंदुस्तान स्टील कंस्ट्रक्शन कंपनी को लिया है. अगले एक साल के अंदर और भी कई पीएसयू आएंगी. 

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