Year Ender 2017: सरकार के सस्ते इलाज पर जोर देने से 2017 में फार्मा कंपनियां, निजी अस्पताल रहे परेशान
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Year Ender 2017: सरकार के सस्ते इलाज पर जोर देने से 2017 में फार्मा कंपनियां, निजी अस्पताल रहे परेशान

सरकार ने वर्ष के दौरान चिकित्सकों को दवाओं के केवल जेनेरिक नाम लिखने के निर्देश दिए, जिसके चलते दवा कंपनियों की चिंता गहराई. 

(प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली : देश में किफायती चिकित्सा सेवा मुहैया कराने के लिए वर्ष 2017 के दौरान सरकार द्वारा कड़े फैसले लेने से भारतीय दवा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को हुए तीखे अनुभव के साथ यह क्षेत्र नए साल में कदम रखने जा रहा है. सरकार ने वर्ष के दौरान चिकित्सकों को दवाओं के केवल जेनेरिक नाम लिखने के निर्देश दिए, जिसके चलते दवा कंपनियों की चिंता गहराई. इसके अलावा राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने ह्रदयाघात के इलाज में काम आने वाले ‘स्टेंट’ और ‘घुटना प्रत्यारोपण’ जैसे चिकित्सा उपकरणों की कीमतें निर्धारित कर दी. इससे इनके विनिर्माण करने वालों की स्थिति असहज हुई.

गुड़गाव का फोर्टिस अस्पताल और राजधानी स्थित मैक्स अस्पताल इलाज के लिये अधिक कीमत वसूलने और चिकित्सकीय लापरवाही जैसे कारणों की वजह से चर्चा में बने रहे. यह दोनों घटनाएं निजी अस्पतालों के तौर-तरीकों पर सवाल खड़ा करती हैं. हालांकि, उद्योग जगत का मानना है कि यह ‘‘एक वाक्या मात्र’’ है.

वर्ष 2017 को लेकर इंडियन फार्मास्युटिकल अलांयस (आईपीए) के महासचिव डी जी शाह ने बताया कि फार्मा उद्योग को इससे पहले कभी एक ही साल में इतनी चुनौतियों का एक साथ सामना नहीं करना पड़ा. चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाएं लिखने और दवा विक्रेताओं की ओर से लिखी गई दवा की जगह पर दूसरी दवा देना उद्योग के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा. शाह ने कहा कि नीति के स्तर पर "अस्थिरता", निर्यात कारोबार के लिए बढ़ती चिंताएं और "जल्दबाजी में किए गए दवा नियामकीय सुधार" भी 2017 में फार्मा उद्योग के लिए चिंता का विषय बने.

शाह ने बल देते हुए कहा, "ये चिंताएं पहले की तरह 2018 में भी बनी रहेंगी. बिना उचित हितधारक परामर्श के नई दवा नीति लाने और बिना प्रभाव मूल्यांकन के ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 में संसोधन का प्रस्ताव इस कठिन माहौल में घरेलू उद्योग के लिए और समस्याएं खड़ी करेगी." 

वही, दूसरी ओर सरकार आम आदमी को किफायती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करने के लिए प्रतिबद्ध है. इसी क्रम में कीमती चिकित्सकीय उपकरणों स्टेंट और घुटने के प्रत्यारोपण प्रणाली के दाम में कमी की गई. सभी तरह के स्टेंट का दाम अब 7,400 से लेकर 30,180 रुपये के दायरे में आ गया जबकि घुटना प्रत्यारोपण इलाज 54,720 रुपये से 1,13,950 रुपये के दायरे में आ गया है. सरकार के इन दोनों कदमों से जनता के 5,950 करोड़ रुपये बचने की उम्मीद है. स्टेंट के मोर्चे पर 4,450 करोड़ और घुटना प्रत्यारोपण में 1,500 करोड़ रुपये की बचत की संभावना जताई गई थी.

अन्य मोर्चे में, एनपीपीए ने जनवरी से नवंबर के दौरान कुल 255 दवाओं की अधिकतम कीमतें निर्धारित की. सरकार का अनुमान है कि इस कदम से उपभोक्ताओं के 2,643.37 करोड़ रुपये की बचत होगी.

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