उद्योगों द्वारा जल के वाणिज्यिक दोहन का सामाजिक आर्थिक प्रभाव’ विषय पर जल संसाधन संबंधी स्थाई समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पैकेज्ड पेयजल इकाइयां लगाना सरकार द्वारा पेयजल उपलब्ध कराने का ही एक प्रयास है.
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नई दिल्लीः संसद की एक समिति ने भविष्य में पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के संदर्भ में भूजल को ‘फिक्सड डिपोजिट’ बताया है, साथ ही यह सुझाव दिया है कि भूजल का सीमित उपयोग होना चाहिए और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही इसके उपयोग की अनुमति देनी चाहिए. समिति ने इसके साथ ही कहा कि सरकारी निजी भागीदारी PPP के आधार पर पैकेज्ड जल उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाए. संसद में हाल ही में पेश ‘उद्योगों द्वारा जल के वाणिज्यिक दोहन का सामाजिक आर्थिक प्रभाव’ विषय पर जल संसाधन संबंधी स्थाई समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पैकेज्ड पेयजल इकाइयां लगाना सरकार द्वारा पेयजल उपलब्ध कराने का ही एक प्रयास है.
व्यापारिक लाभ के लिए क्षेत्र का दोहन गलत
समिति का विचार है कि "उपभोग हेतु पानी की मांग तथा आपूर्ति के बीच अंतर को समाप्त करना तथा निजी उद्योगों को केवल व्यापारिक लाभ के लिये इस क्षेत्र का दोहन न करने देना सरकार की सबसे बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है" रिपोर्ट में कहा गया है कि, "समिति यह सिफारिश करती है कि स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलबध कराने में सरकार को अहम भूमिका निभानी होगी. भूजल हमारे लिये एक फिक्सड डिपोजिट की तरह है तथा भविष्य में पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने में अति महत्वपूर्ण है.’’
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पानी की विवेकपूर्ण ढंग से उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी
समिति ने कहा है कि भूजल के सतत प्रबंधन की आवश्यकता के महत्व को समझते हुए कच्चे माल की तरह भूजल के अनियंत्रित उपयोग की अनुमति दिये बिना स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के लक्ष्यों की प्राप्ति सरकारी निजी भागीदारी :पीपीपी: के आधार पर पैकेज्ड जल उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा देकर की जा सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पानी की विवेकपूर्ण ढंग से उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी.
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भूजल का सीमित उपयोग होना चाहिए
समिति अनुभव करती है कि भूजल वास्तव में कच्चे माल के रूप में दुर्लभ स्रोत है और इसका उपयोग नियंत्रित ढंग से किया जाना चाहिए. उद्योगों को भी इसे लाभ के एक स्रोत के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. पैकेज्ड पेयजल निर्माता इकाइयों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया पर कड़ा नियंत्रण होना चाहिए. समिति पुरजोर सिफारिश करती है कि भूजल का सीमित उपयोग होना चाहिए और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही इसके उपयोग की अनुमति देनी चाहिए.