नोटबंदी और जीएसटी से पड़ा MSME पर गहरा प्रभाव, निर्यात में गिरावट
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नोटबंदी और जीएसटी से पड़ा MSME पर गहरा प्रभाव, निर्यात में गिरावट

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अध्ययन में पता चला है कि नवंबर 2016 में की गई नोटबंदी से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को दिये जाने वाले कर्ज में गिरावट आई.

फाइल फोटो

मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अध्ययन में पता चला है कि नवंबर 2016 में की गई नोटबंदी से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को दिये जाने वाले कर्ज में गिरावट आई. हालांकि, जीएसटी का कर्ज पर ज्यादा बड़ा असर नहीं हुआ लेकिन अनुपालन की पेचीदगियों के चलते इससे निर्यात प्रभावित हुआ है. आरबीआई की मिनी स्ट्रीट मेमो रिपोर्ट में कहा गया है कि लघु उद्योगों को वितरित कर्ज 2017 के निचले स्तर से सुधर कर 2015 मध्य के बढ़े स्तर पर पहुंच गया. यद्यपि एमएसएमई क्षेत्र को बैंकों और एनबीएफसी द्वारा दिये गये कर्ज सहित सूक्ष्म ऋण में हाल की तिमाहियों में तेजी आई.

लघु उद्योग क्षेत्र को नोटबंदी और माल एवं सेवा कर से लगा झटका
एमएसएमई क्षेत्र को देश की आर्थिक वृद्धि का एक महत्वपूर्ण इंजन माना जाता है और भारत के कुल निर्यात में इसका योगदान करीब 40 प्रतिशत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लघु उद्योग क्षेत्र को नोटबंदी और माल एवं सेवा कर दोनों के कारण झटका लगा है. उदाहरण के लिए नोटबंदी के बाद वस्त्र और रत्न एवं आभूषण क्षेत्र में ठेके पर काम करने वाले श्रमिकों को भुगतान में नियोक्ताओं को दिक्कतें हुई. इसी प्रकार, जीएसटी के चलते अनुपालन लागत और अन्य परिचालन लागत में वृद्धि हुई क्योंकि 60 प्रतिशत से अधिक छोटे उद्योग कर दायरे में आए. हालांकि, इनमें से 60 प्रतिशत नई कर प्रणाली में समायोजित होने के लिये तैयार नहीं थे.

एमएसएमई में पूंजी की संभावित मांग करीब 370 अरब डॉलर
सिडबी के अध्ययन में पाया गया है कि नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद अधिकतर एमएसएमई के कर्ज में गिरावट आई लेकिन मार्च 2018 से इसमें सुधार दिखाई दे रहा है. इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन के अनुमान के मुताबिक, एमएसएमई में अधिक से अधिक पूंजी की संभावित मांग करीब 370 अरब डॉलर है जबकि वर्तमान में 139 अरब डॉलर की आपूर्ति की जा रही है. दोनों के बीच 230 अरब डॉलर का अंतर है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 11 प्रतिशत है. नवंबर 2016 से फरवरी 2017 तक ऋण वृद्धि में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गयी. माना जा रहा है कि इसकी वजह नोटबंदी रही. हालांकि, कर्ज में फरवरी 2017 के बाद सुधार देखा गया और जनवरी-मई 2018 में यह औसतन 8.5 प्रतिशत पर पहुंच गया.

(इनपुट भाषा से)

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