वर्ष 2014 में भारतीय ऋण पत्रों से 19 अरब डॉलर जुटाये गये
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वर्ष 2014 में भारतीय ऋण पत्रों से 19 अरब डॉलर जुटाये गये

समाप्त हो रहे वर्ष 2014 में भारतीय ऋण पत्रों की विदेशी निवेशकों में अच्छी मांग रही। इस दौरान रिकार्ड 19 अरब डालर की भारतीय ऋण प्रतिभूतियों की खरीदारी हुई जो पिछले साल के मुकाबले 20 प्रतिशत अधिक है और कमजोर कापरेरेट तथा सावरेन रेटिंग के बावजूद तथाकथित ‘बेकार’ (जंक) बांड की खरीद में भी तेजी देखी गई।

वर्ष 2014 में भारतीय ऋण पत्रों से 19 अरब डॉलर जुटाये गये

मुंबई: समाप्त हो रहे वर्ष 2014 में भारतीय ऋण पत्रों की विदेशी निवेशकों में अच्छी मांग रही। इस दौरान रिकार्ड 19 अरब डालर की भारतीय ऋण प्रतिभूतियों की खरीदारी हुई जो पिछले साल के मुकाबले 20 प्रतिशत अधिक है और कमजोर कापरेरेट तथा सावरेन रेटिंग के बावजूद तथाकथित ‘बेकार’ (जंक) बांड की खरीद में भी तेजी देखी गई।

कबाड़ अथवा जंक बॉंड को बोल चाल की भाषा में अधिक मुनाफा कमाने या फिर गैर-निवेश श्रेणी के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता है। ये बांड आम तौर पर सुनिश्चित आय वाले ऋणपत्र होते हैं जिनकी रेटिंग कम होती है और निवेश श्रेणी के बॉंड के मुकाबले इनमें जोखिम भी ज्यादा होता है। समाप्त होते इस वर्ष में अंतरराष्ट्रीय निवेशकों ने भारतीय कंपनियों द्वारा जारी पांच अरब डालर के ऐसे कबाड़ श्रेणी के बांड खरीदे। कंपनियों को अपनी कार्यशील पूंजी के लिए सस्ती पूंजी जुटाने के लिये विदेशी बाजारों का रख करना पड़ा। उनके समक्ष महंगे घरेलू कर्ज को चुकाने के लिये विदेशी बाजारों से सस्ता धन जुटाने का यह बेहतर विकल्प मौजूद था।

 

सभी निवेश श्रेणियों में भारतीय कंपनियों और बैंकों ने 2014 में रिकार्ड 19 अरब डालर जुटाए जिनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज का स्थान प्रमुख रहा जिसका विदेशी मुद्रा में ऋण बढ़कर 3.3 अरब डालर हो गया। यह लगातार तीसरे साल रहा जब रुपये में कर्ज महंगा बना रहा और यही वजह रही कि विदेशी बाजारों से पूंजी जुटाने की तरफ झुकाव बढ़ा है।

दूसरी ओर ज्यादा से ज्यादा कंपनियों द्वारा विदेशी बाजारों से पूंजी जुटाने के कारण देश का कुल विदेशी ऋण सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले एक चौथाई से थोड़ा अधिक या 500 अरब डालर से कुछ अधिक हो गया।

अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा अप्रैल में ब्याज दर बढ़ाने के संकेत के बीच निवेश बैंकरों को 2015 की पहली तिमाही के दौरान ऋण बाजार में गतिविधियां तेज होने की उम्मीद है। विदेशी मुद्रा कोष जुटाने की प्रक्रिया में 2013 के दौरान 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और इस दौरान यह राशि 15 अरब डालर रही।

बाजार के आंकड़े के मुताबिक विदेशी मुद्रा बांड पर कूपन दर 3.25 प्रतिशत (एसबीआई के लिए) की निम्न दर से लेकर कबाड़ श्रेणी में आने वाले बॉंड के लिये 8.75 प्रतिशत रही। ऐसे बॉंड मदरसन सुमी और रोल्टा जैसी कंपनियों ने 2014 के दौरान जारी किये। भारतीय उद्योगों के लिये कार्यशील पूंजी में डालर ऋण जुटाने की जरूरत इसलिए भी थी कि रपए में जुटाए गए मंहगे ऋण का भुगतान किया जा सके। अन्य कंपनियों के अलावा विविधीकृत क्षेत्रों की कंपनियों, एस्सार समूह और दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कंपनी भारती एयरटेल ने रुपए में लिए मंहगे रिण के भुगतान के लिए विदेशी बाजारों से पांच अरब डालर जुटाए।

कंपनियों को वित्तीय लागत के लिहाज से औसतन छह प्रतिशत की बचत हुई। निवेश बैंकरों ने विदेशी मुद्रा में जुटाए ऋण में वृद्धि की वजह देश में उंची ब्याज दरों को बताया, इसके अलावा अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा 2015 की शुरूआत में ब्याज दर बढ़ाए जाने के संकेत को भी इसकी वजह बताया गया। उन्होंने इस साल शुरूआत में आम चुनाव में निर्णायक जीत के बाद सत्ता में आई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नयी सरकार बनने के बाद निवेशकों के रुझान में सुधार को भी इसका श्रेय दिया।

ड्यूश बैंक इंडिया के कापरेरेट वित्त प्रमुख अमित बोर्डिया ने कहा कि 2014 विदेशी ऋण के लिहाज से रिकार्ड वर्ष रहा। इस दौरान अब तक 18.6 अरब डालर जुटाए जा चुके हैं। ड्यूश बैंक ऋण बिक्री के लिहाज से शीर्ष पर रहा जिसे शुल्क के तौर पर 1.03 करोड़ यूरो की आय हुई और उसकी बाजार हिस्सेदारी 15.9 प्रतिशत रही।

बाक्र्लेज इंडिया के प्रबंध निदेशक और वैश्विक वित्त प्रमुख राकेश गर्ग ने भी कहा कि 2015 महत्वपूर्ण नजर आ रहा है। इस दौरान भारतीय कंपनियों और बैंकों से आपूर्ति बढ़ने की उम्मीद है। बाक्र्लेज 13 सौदों में शामिल रही और उसकी बाजार हिस्सेदारी 7.75 प्रतिशत रही। उसने शुल्क से होने वाली आय के तौर पर 2014 में 60 लाख यूरो से कुछ अधिक की कमाई की। गर्ग ने कहा कि उसके जरिये विदेशी बाजारों से जुटाई गई राशि में 80 प्रतिशत राशि वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों ने जुटाई जबकि शेष कंपनियों ने जुटाई।

विदेशी बाजारों में बॉंड जारी करने वाली कंपनियों में 3.3 अरब डालर की बॉंड बिक्री के साथ रिलायंस इंडस्ट्रीज सबसे उपर रही। इसके बाद तीन अरब डालर ओएनजीसी और आवीएल ने जुटाये। भारतीय स्टेट बैंक ने 1.25 अरब डालर और टाटा स्टील ने 1.5 अरब डालर की पूंजी विदेशी बाजारों से जुटाई। रिलायंस इंडस्ट्रीज अपने अगले तीन साल के 1,800 अरब रुपये की पूंजी निवेश योजना के लिये विदेशी बाजारों से सस्ता कर्ज जुटा रही है। वर्ष 2012 से 2014 के बीच रिलायंस ने विदेशी मुद्रा बॉंड अथवा कर्ज के जरिये कुल 10 अरब डालर जुटाये हैं।

 

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