अमेरिका से रिजेक्टेड खराब हिप रिप्लेस्मेंट सिस्टम भारत में बेचने वाली जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक इकाई के खिलाफ गवाह इकट्ठे होने लगे हैं.
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नई दिल्ली: अमेरिका से रिजेक्टेड खराब हिप रिप्लेस्मेंट सिस्टम भारत में बेचने वाली जॉनसन एंड जॉनसन (Johnson & Johnson) की सहायक इकाई के खिलाफ गवाह इकट्ठे होने लगे हैं. कंपनी ने देश में ऐसे करीब 3600 घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे थे. मंगलवार रात फार्मा और चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के नियामक सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन (CDSCO) ने अपनी वेबसाइट पर एक रिपोर्ट अपलोड की है, जो फरवरी में दाखिल हुई थी. इन घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम से सैकड़ों मरीजों की जान पर बन आई है. इनमें 4 की मौत भी हो चुकी है. लेकिन कंपनी ने इस सच्चाई को हर किसी से छिपाया था. उसने न तो यह बताया कि कितने मरीजों में घटिया सिस्टम लगा है और न ही कोई मुआवजा बांटा. इस घपले का खुलासा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित समिति की जांच में हुआ था. जांच रिपोर्ट में समिति ने कंपनी की जमकर खिंचाई की थी. समिति ने कहा था कि जिन 3600 मरीजों के यह सिस्टम लगा है उनका कोई अता-पता नहीं है. समिति ने सिफारिश की है कि कंपनी हरेक प्रभावित मरीज को 20 लाख रुपए मुआवजा दे और अगस्त 2025 तक सभी मरीजों के खराब सिस्टम बदले.
2010 में वापस मंगा लिए गए थे सिस्टम
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 8 फरवरी 2017 को यह समिति बनाई थी. उसने 19 फरवरी 2018 को रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. हालांकि सरकार ने समिति की सिफारिशों को अब तक लागू नहीं किया लेकिन रिपोर्ट में बताया गया है कि जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक इकाई ने वे खराब सिस्टम भारत में इम्पोर्ट कर बेचे जिन्हें पूरी दुनिया से 2010 में रिजेक्ट कर दिया गया था. इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर छपने के बाद 3 मरीज और दो रोगियों के रिश्तेदार गवाही के लिए सामने आए हैं. उन्होंने कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है. 3 रोगियों में विजय वोझला, विनय अग्रवाल और शैलेश बछेते शामिल हैं. उन्होंने कार्रवाई में पारदर्शिता लाने की मांग की है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि वह कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे.
क्या है मामला
सरकारी समिति ने रिपोर्ट में बताया है कि एएसआर एक्सएल एक्टाबुलर हिप सिस्टम और एएसआर हिप रीसर्फेसिंग सिस्टम के घटिया होने की बात उसके भारत में बेचे जाने से पहले ही सामने आ चुकी थी. समिति ने बताया कि इन खराब सिस्टम के कारण मरीजों की जान पर बन आई है. ब्लड में कोबाल्ट और क्रोमियम उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं और वह जहरीला हो चुका है. मेटल ऑयन से टीशू को नुकसान हुआ और इसका असर धीरे-धीरे शरीर के अंगों पर पड़ा. इससे मरीजों को तमाम तरह की शारीरिक दिक्कतें शुरू हो गई हैं.
कंपनी ने नहीं दी थी कोई प्रतिक्रिया
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन और ईएनटी के प्रोफेसर डॉ. अरुण अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति ने कंपनी के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की सिफारिश की थी. समिति के मुताबिक जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक कंपनी डीपू ऑर्थोपेडिक्स आईएनसी ने जो इम्प्लांट डिवाइस बनाई थी उसे अमेरिका के खाद्य और औषधि विभाग ने 2005 में मंजूरी दे दी थी. लेकिन शिकायत मिलने पर कंपनी ने 24 अगस्त 2010 को सभी डिवाइस वापस मंगा लीं. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक कंपनी के प्रवक्ता का कहना है कि समिति की रिपोर्ट उसके पास नहीं भेजी गई है. इसलिए वह इस पर कमेंट नहीं कर सकती.
चलने-फिरने लायक नहीं रहे विजय
गवाहों में से मेडिकल डिवाइस कंपनी में पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर विजय अनंत वोझाला का समिति ने बयान लिया था. उन्होंने बताया कि सर्जरी के बाद मैंने 6 माह तक काम नहीं किया. इसके बाद जब नौकरी शुरू की तो चलने-फिरने में काफी परेशानी हो रही थी. मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी. सर्जरी कराने मुझे काफी महंगा पड़ा था. अब कंपनी कोई मुआवजा देने से भी इनकार कर रही है.