आमतौर पर दिवाला प्रक्रिया में ऋण देने वाले बैंकों के पास किसी समाधान योजना के पक्ष और विपक्ष में मत देने का अधिकार होता है.
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नई दिल्ली: जेपी इंफ्राटेक ऋणशोधन मामले में कंपनी को ऋण देने वाले अधिकतर बैंकों ने सरकारी कंपनी एनबीसीसी की बोली के खिलाफ मतदान दिया है. जबकि जेपी की परियोजनाओं में घर खरीदने वाले ज्यादातर खरीदारों ने एनबीसीसी के पक्ष में मतदान किया. सूत्रों ने यह जानकारी दी. यह घटनाक्रम सोमवार देर शाम का है. इससे पहले दिन में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय प्राधिकरण (एनसीएलएटी) ने साफ किया था कि उसने जेपी इंफ्राटेक के ऋणदाताओं को कंपनी की ऋणशोधन प्रक्रिया के तहत एनबीसीसी की बोली के खिलाफ मतदान करने से नहीं रोका है.
कुछ बैंकों ने NCLAT से बोली के खिलाफ मतदान की अनुमति मांगी थी
सूत्रों ने बताया कि हालांकि शोधन अक्षमता अदालत के आदेश के चलते एनबीसीसी की बोली के पक्ष और विपक्ष में पड़े सही मतों का खुलासा नहीं किया गया है. इस मतदान के परिणाम को एनसीएलएटी के समक्ष पेश किया जाएगा. आमतौर पर दिवाला प्रक्रिया में ऋण देने वाले बैंकों के पास किसी समाधान योजना के पक्ष और विपक्ष में मत देने का अधिकार होता है. रीयल्टी कंपनी के मामलों में यह अधिकार संपत्ति खरीदारों को भी मिला हुआ है. कंपनी के ऋणदाताओं में से बैंकों के एक धड़े ने एनसीएलएटी से एनबीसीसी की बोली के खिलाफ मतदान करने की अनुमति मांगी थी.
30 मई को हुआ था मतदान पर फैसला
सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए एनसीएलएटी के चेयरमैन न्यायमूर्ति एस. जे. मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने एनबीसीसी की बोली के खिलाफ मतदान करने से नहीं रोका है. साथ ही पीठ ने कंपनी के अंतरिम समाधान पेशेवर अनुज जैन से मतदान की प्रक्रिया रपट सीधे उसे देने का भी निर्देश दिया. इससे पहले कंपनी के ऋणदाताओं की समिति ने एनसीएलएटी से एनबीसीसी की बोली पर मतदान से फैसला करने की अनुमति मांगी थी. इसके बाद 30 मई को ऋणदाता समिति ने इस पर मतदान कराने का निर्णय किया.
10 जून को खत्म हुई मतदान प्रक्रिया
मतदान प्रक्रिया 31 मई से शुरू हुई और यह सोमवार 10 जून को खत्म हुई. इस मामले में 13 बैंक और 23,000 घर खरीदारों मताधिकार दिया गया है. घर खरीदारों के पास 60 प्रतिशत और बैंकों के पास 40 प्रतिशत मताधिकार है और किसी भी समाधान योजना को स्वीकार करने के लिए कम से कम 66 प्रतिशत मत होने चाहिए. सुनवाई के दौरान बैंकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने पीठ को एनबीसीसी की समाधान योजना की शर्तों के बारे में सूचित किया. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हमने इसके (प्रस्ताव) विरोध में मतदान करने से नहीं रोका है. हमने बस यह कहा है कि ऋणदाता समिति को निर्णय पर अंतिम रपट नहीं बनानी चाहिए.’’
2 जुलाई को अगली सुनवाई
अपनी याचिका में बैंकों ने कहा था कि सुरक्षित वित्तीय ऋणदाताओं को एनबीसीसी के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने की अनुमति मिलनी चाहिए. साथ ही अंतरिम समाधान पेशेवर और ऋणदाता समिति को अन्य विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए और अन्य कंपनियों से भी बोलियां मंगानी चाहिए. अडाणी समूह ने हाल ही में जेपी इंफ्राटेक के अधिग्रहण के लिए स्वयं से एक अबाध्यकारी बोली का प्रस्ताव किया था. एनसीएलएटी ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख को भी 17 जुलाई से बदलकर दो जुलाई कर दिया है.
2017 में शुरू हुई थी IBC प्रक्रिया
उल्लेखनीय है आईडीबीआई बैंक के नेतृत्व वाले ऋणदाताओं के समूह की याचिका को राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण के स्वीकार करने के बाद 2017 में जेपी इंफ्राटेक की दिवाला एवं ऋणशोधन प्रक्रिया शुरू हो गयी थी. इसके तहत ऋणशोधन की पहले दौर की प्रक्रिया पिछले साल पूरी की गई जिसमें सुरक्षा समूह का हिस्सा रही लक्षदीप की 7,350 करोड़ रुपये की बोली को खारिज कर दिया गया. बाद में अक्टूबर 2018 में अंतरिम पेशेवर समाधानकर्ता अनुज जैन ने दूसरे दौर की प्रक्रिया शुरू की जो अभी चल रही है.