नई रक्षा खरीद प्रक्रिया में कुछ और वक्त लगेगा : मनोहर पर्रिकर
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नई रक्षा खरीद प्रक्रिया में कुछ और वक्त लगेगा : मनोहर पर्रिकर

नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) में विलंब के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा की गई गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहराते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज कहा कि उनका प्रयास प्रक्रिया को सरल बनाने और ‘संदेह का वातावरण’ दूर करने का है।

नई रक्षा खरीद प्रक्रिया में कुछ और वक्त लगेगा : मनोहर पर्रिकर

नई दिल्ली : नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) में विलंब के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा की गई गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहराते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज कहा कि उनका प्रयास प्रक्रिया को सरल बनाने और ‘संदेह का वातावरण’ दूर करने का है।

पर्रिकर ने इससे पहले कहा था कि रक्षा खरीद के लिए रूपरेखा-डीपीपी मई तक सामने आ जाएगी। हालांकि, आज उन्होंने स्वीकार किया कि इसमें कुछ और समय लगेगा।

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा यहां आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैंने ढेरों प्रयास किए हैं। मेरे अधिकारियों ने काफी प्रयास किए हैं। सीआईआई, फिक्की, एसोचैम ने काफी सामग्री उपलब्ध कराई है। मैंने पूर्ववर्ती सरकार को कम आंका। उसने इतनी अधिक गड़बड़ियां फैलाई हैं कि क्या कहूं। मैंने सोचा था कि मैं तीन.चार महीने में इसे तैयार कर लूंगा। मैं अपनी हार स्वीकारता हूं। कुछ और समय की जरूरत है।’ 

पर्रिकर ने कहा कि उन्होंने ‘निर्णायक कार्रवाई’ करने का फैसला किया है और वह रक्षा खरीद की अवधारणा को ‘पूरी तरह से बदल’ देंगे। उन्होंने कहा, ‘हमें अंग्रेजों की व्यवस्था विरासत में मिली है। सरकार में हर कोई एक दूसरे को संदेह की नजर से देखता है। यहां प्रश्नचिह्न और संदेह का माहौल है। स्वाभाविक तौर पर रक्षा ऐसा सबसे बड़ा क्षेत्र है जहां बोलना भी अनुचित समझा जाता है।’ मंत्री ने कहा कि माहौल धीरे धीरे बदल रहा है।

पर्रिकर ने कहा कि वह पहला बदलाव खरीद प्रक्रिया में लाना चाहते हैं जिससे वेंडरों के साथ साझीदार की तरह व्यवहार किया जाए। ‘संदेह का वातावरण दूर करना होगा कम से कम उन वेंडरों के लिए जो पहले निष्पादन कर चुके हैं।’ आयुद्ध कारखानों एवं यहां तक कि रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कभी कभी वे ‘आपूर्तिकर्ता को तुच्छ समझते हैं।’ 

पर्रिकर ने जोर दिया कि वह रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों की आलोचना नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनका जोर केवल इस बात पर है कि कंपनियों को उन आपूर्तिकर्ताओं को साथ लेकर चलने की जरूरत है जो अपनी पहल से प्रणालियां विकसित कर रहे हैं।

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