पीएनबी-नीरव मोदी फ्रॉड ऑडिट तंत्र और ऑपरेशनल रिस्क मैनेजमेंट पर की विफलता को दर्शाता है. आखिर इतना बड़ा फ्रॉड होने के बावजूद बैंक मैनेजमेंट और बोर्ड की जवाबदेही क्या है?
Trending Photos
11,400 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक-नीरव मोदी घोटाले ने एक बार फिर पब्लिक सेक्टर बैंकिंग पर सवालिया निशान खड़ा कर दिए हैं. दरअसल इन बैंकों के सार्वजनिक उपक्रम होने के चलते रिजर्व बैंक के पास भी इतनी प्रभावी शक्तियां नहीं हैं कि ऐसे बैंकों के मैनेजमेंट और बोर्ड को दंडित कर सकें. नौकरी के लिए नियम और वेतन, राजनीतिक दबाव, गैर-जवाबदेही और पब्लिक बैंकों को संप्रभुता की गारंटी जैसे कारणों की वजह से भारत में पब्लिक सेक्टर बैंकिंग पर सवाल उठते हैं.
पीएनबी-नीरव मोदी फ्रॉड ऑडिट तंत्र और ऑपरेशनल रिस्क मैनेजमेंट पर की विफलता को दर्शाता है. आखिर इतना बड़ा फ्रॉड होने के बावजूद बैंक मैनेजमेंट और बोर्ड की जवाबदेही क्या है? यदि पीएनबी प्राइवेट बैंक होता तो क्या इतने बड़े घोटाले के लिए केवल दो कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराना संभव हो पाता? दरअसल इस घोटाले में नीरव मोदी के साथ बैंक के दो कर्मचारियों की मिलीभगत मानी जा रही है. इस कड़ी में आरोपी पूर्व डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी को गिरफ्तार कर लिया गया है.
PNB स्कैम: ऐसे हुआ 11 हजार करोड़ का घोटाला कि बैंक को भनक तक नहीं लगी?
इन सब सवालों के बीच यह मुद्दा उठता है कि आखिर इसका समाधान क्या है? पब्लिक सेक्टर बैंकों का प्राइवेटीकरण करना आंशिक समाधान हो सकता है लेकिन इसके साथ ही कई अन्य सुधारों को करना होगा. इस सिलसिले में नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस और पॉलिसी में प्रोफेसर इला पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस में अपने लेख में इसके समाधान के लिए कुछ बिंदु सुझाए हैं:
1. निवेशकों की बढ़ती संख्या के बीच उनकी जरूरतों को समझने का प्रयास किया जाए. उनके लिए ऐसा मैकेनिज्म बनाया जाए ताकि वह सरकार को अधिक कर्ज दे सकें. बदले में उसको अच्छा रिटर्न मिलना चाहिए. इस बात को ध्यान देने की जरूरत है कि इस वक्त 10 साल के सरकारी बांड यील्ड पर सात प्रतिशत से भी अधिक ब्याज मिलता है. यह अधिकांश बैंकों के फिक्स डिपॉजिट पर दी जाने वाली ब्याज दर से अधिक है. ऐसे में कुछ लोग स्टॉक बाजार के माध्यम से सीधे बांड में निवेश के इच्छुक हो सकते हैं. यानी बांड मार्केट में सुधार की दरकार है.
VIDEO: नीरव मोदी के दादा का नाम है मुफत लाल मोदी, पढ़ें फैमिली की पूरी हिस्ट्री
2. लघु बचत योजनाओं में सुधार करना चाहिए. ऐसी स्कीमों में प्रत्यक्ष कर्ज की दर बढ़ाई जानी चाहिए. इसकी ब्याज दर को सरकारी बांड यील्ड से जोड़ना चाहिए.
3. निजी बैंकों की चुनौतियों को देखते हुए इनकी जमाओं पर इंश्योरेंस कैप को बढ़ाना चाहिए. यदि इसको बढ़ाकर 5 लाख कर दिया जाए तो 98 प्रतिशत जमाएं इसके दायरे में आ जाएंगी.
'पकोड़ा', 'पीएनबी'... ये हैं चार 'P' जिन्होंने मचाया देश में बवाल!
4. यदि सरकार यह चाहती है कि पब्लिक सेक्टर बैंक डिपॉजिट इंश्योरेंस के कैप से ऊपर रिस्क-फ्री डिपॉजिट ऑफर करें तो उनको केवल सरकारी बांड में निवेश की अनुमति दी जानी चाहिए.
5. लोन देना, नियम बनाना, रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम बनाना, सक्षम स्टाफ की भर्ती, सिस्टम में गलती होने पर मैनेजमेंट की जवाबदेही सुनिश्चित करना और दंडित करना जैसे काम प्राइवेट बैंकों के जिम्मे छोड़ देना चाहिए.