नई दिल्ली : रिजर्व बैंक ने एनपीए (गैर निष्पादक आस्तियों) से निपटने के लिए बेहतर रणनीति बनाने पर जोर दिया है क्योंकि इन्हें छिपाने से बैंक और कर्जदार दोनों के लिए स्थिति गंभीर हो जाएगी।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एस.एस. मुंदड़ा ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘किसी खाते का एनपीए हो जाना गुनाह नहीं है। वक्त आ गया है कि यदि इस ऋण खाते में कोई समस्या आती है तो बेहतर रणनीति यह होगी कि बैंक या कर्जदार इसे टालने अथवा छिपाने के बजाय एनपीए को पहचाने और कर्जदारों को सहयोग करे।’ उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई ऐसा नियम नहीं है जो एनपीए के ‘पुनर्गठन’ को रोकता हो।
उन्होंने कहा, ‘यदि ऋण बहुत बड़ा है तो बैंक की स्थिति कमजोर होगी। यदि ऋण बहुत कम है जो कर्जदार कमजोर स्थिति में होगा। दोनों ही स्थितियों में एक पक्ष की स्थिति कमजोर होगी।’ उन्होंने कहा, ‘यदि आप एनपीए की घोषणा करते हैं तो वास्तविकताओं का पता चलता है और दोनों पक्ष आमने-सामने बैठकर ऐसी सहायता योजना तैयार कर सकते हैं जो ज्यादा वास्तविक हो और जिसके सफल होने की गुंजाइश अधिक हो।’
दिसंबर, 2014 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए कुल रिण का 5.6 प्रतिशत बढ़कर 2,60,531 करोड़ रुपये हो गया। शीर्ष 30 चूककर्ताओं पर 95,122 करोड़ रुपये बकाया है जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कुल एनपीए का एक तिहाई है। यह कुल 36.50 प्रतिशत है।