चाय की दुकान से 2000 करोड़ की कंपनी तक, ऐसी थी वाघ बकरी के माल‍िक पराग देसाई की कहानी
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चाय की दुकान से 2000 करोड़ की कंपनी तक, ऐसी थी वाघ बकरी के माल‍िक पराग देसाई की कहानी

Wagh Bakri Chai Turnover: दुकान की शुरुआत उन्‍होंने गुजरात चाय ड‍िपो के नाम से की. उन्‍हें दो से तीन साल का टाइम अपनी चाय का नाम फाइलन करने में लग गए. 1980 तक उन्‍होंने खुली चाय की ब‍िक्री की.

चाय की दुकान से 2000 करोड़ की कंपनी तक, ऐसी थी वाघ बकरी के माल‍िक पराग देसाई की कहानी

Parag Desai Death: देश की तीसरी सबसे बड़ी चाय न‍िर्माता कंपनी वाघ बकरी (Wagh Bakri Chai) के एग्‍जीक्‍यूट‍िव डायरेक्‍टर पराग देसाई (Parag Desai Death) की मौत कुत्‍ते के काटने के बाद हो गई. 49 साल के देसाई को एक हफ्ते पहले मार्न‍िंग वॉक के सयम कुत्‍ते ने काट ल‍िया था. उसके बाद से ही वह अस्‍पताल में भर्ती थे. डॉक्‍टरों की टीम ने सात द‍िन तक उन्‍हें वेंट‍िलेर पर भी रखा. देवाई वाघ बकरी चाय से 1995 में जुड़े थे. उस समय कंपनी का कारोबार 100 करोड़ रुपये से भी कम था. आज वाघ बकरी कंपनी का कारोबार 2000 करोड़ के पार पहुंच गया है. आइए जानते हैं कैसे कंपनी ने यह मुकाम हास‍िल क‍िया?

1915 में भारत लौट आया पर‍िवार
पराग देसाई का पर‍िवार प‍िछली चार पीढ़ी से चाय के कारोबार से जुड़ा है. उन्‍होंने एक इंटरव्‍यू के दौरान बताया था क‍ि उनके परदादा (दादा के प‍िता) नारणदास देसाई के साउथ अफ्रीका में चार के बागान थे. यहां वह महात्‍मा गांधी के संपर्क में आए. यहां देसाई नस्लीय भेदभाव के शिकार हुए तो उन्‍हें दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भारत आना पड़ा. उनका पर‍िवार 1915 में भारत लौट आया. वह चाय से जुड़ा काम ही जानते थे तो उन्‍होंने शुरुआत में पुराने अहमदाबाद और कानपुर में चाय की दुकान खोली.

1980 में ल‍िया यह बड़ा फैसला
दुकान की शुरुआत उन्‍होंने गुजरात चाय ड‍िपो के नाम से की. उन्‍हें दो से तीन साल का टाइम अपनी चाय का नाम फाइलन करने में लग गए. 1980 तक उन्‍होंने खुली चाय की ब‍िक्री की. उस समय तक खुली चाय की थोक के रूप में ब्र‍िकी की जाती थी. लेक‍िन 1980 में चायर न‍िर्माता कंपनी ने एक बड़ा फैसला ल‍िया और देश में पहली बार पैक्‍ड टी (Packed Tea) का कारोबार शुरू क‍िया. यह फैसला काफी चुनौतीभरा साब‍ित हुआ. एक समय पैक्‍ड टी का काम बंद होने की कगार पर पहुंच गया.

पांच से सात साल काफी बुरे न‍िकले
दरअसल, 80 के दशक में लोगों में अवेयरनेस का अभाव था और पैंक‍िंग वाली चाय की ब‍िक्री आसान नहीं थी. और फ‍िर इसे तैयार करने में खर्च भी ज्‍यादा आता था. पराग देसाई ने बताया था क‍ि पैकेज्‍ड टी की शुरुआत करने के बाद कंपनी के पांच से सात साल काफी बुरे न‍िकले. लेक‍िन संघर्ष के बीच 2003 तक वाघ बकरी ब्रांड गुजरात का सबसे बड़ा चाय न‍िर्माता बन चुका था. 1980 और इसके बाद तक गुजरात टी डिपो ने थोक में और 7 र‍िटेल शॉप के जर‍िये चाय की ब‍िक्री जारी रखी थी.

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उन्‍होंने बताया धीरे-धीरे ग्राहकों में जागरूकता आई और उन्‍होंने ब्रांड पर भरोसा करना शुरू क‍िया. सबसे पहले टी-बैग की शुरुआत भी वाघ बकरी ने ही की. पराग ने न्‍यूयॉर्क से एमबीए करने के बाद उन्‍होंने कंपनी को नए मुकाम पर पहुंचाया. जब वह 1995 में जुड़े तो कंपनी का कारोबार 100 करोड़ रुपये था. आज वाघ बकरी का सालाना टर्न ओवर 2000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है. वाघ बकरी चार को दुन‍ियाभर के 60 देशों में एक्‍सपोर्ट क‍िया जा रहा है. देशभर में वाघ बकरी के टी लाउन्ज और कैफे भी हैं.

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