दूसरों को होम लोन देने वाले बैंक खुद किराए की बिल्डिंग में क्यों चलते हैं? जानिए वजह
जो बैंक दूसरों को घर बनाने के लिए होम लोन देते हैं, वो खुद किराए की बिल्डिंग में क्यों चलते हैं? ये सवाल ज्यादातर लोगों के मन में आता है आइए इसका जवाब बताते हैं.
नई दिल्ली: अपना खुद का घर बनाना हर किसी को सपना होता है. इसके लिए कई लोग बैंकों से होम लोन लेते हैं. लेकिन आपने देखा होगा होगा कि ज्यादातर शहरों और कस्बों में बैंक किराए की बिल्डिंग में चलता है. बहुत कम ही और कुछ बड़े और रीजनल ऑफिस वाले ब्रांच ही ऐसे हैं जो बैंक की खुद की प्रॉपर्टी होते हैं. तो आपके मन में भी यह सवाल आता होगा कि दूसरों को घर बनाने के लिए होम लोन बांटने वाला बैंक खुद किराए के घर में क्यों चलता है? आइए बताते हैं.
बैंक प्रॉपर्टी के आधार पर देते हैं लोन
ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या अपना मकान बनाने की तुलना में किराए के मकान में रहना फायदेमंद है? भारत में अपनी प्रॉपर्टी होना सम्मान की बात मानी जाती है. इससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ती है. लोग ऐसे लोगों पर विश्वास करते हैं. साथ ही बैंक भी प्रॉपर्टी के आधार पर ही लोन देता है.
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किराए की बिल्डिंग में क्यों होते हैं बैंक?
बता दें कि बैंक की पॉलिसी में ऐसा कोई नियम नहीं है ना ही ये कोई लॉजिक है कि बैंक को हमेशा किराए के मकान में ही संचालित किया जाए. दरअसल ये पुरानी परंपरा है जो हमेशा से चलती है आई है और बैंक लगातार ही उसका पालन करते हैं. शुरुआत में जब बैंक खोले गए तो सबकी अपनी बिल्डिंग ना होने के कारण ये किराए के मकान में खोले गए. बाद में बैंकों ने इसे परंपरा की तरह अपना लिया.
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साथ ही ये भी कारण है कि बैंक का मुख्य कार्य कम ब्याज दर पर पैसे लेना व ऊंची ब्याज दर पर उधार देना है, न कि जमाकर्ताओं के पैसे से स्थायी संपत्ति में निवेश करना. इसलिए बैंक हमेशा कोशिश करता है कि किराये की बिल्डिंग में ही अपना कार्यालय खोले.
पॉलिसी में बदलाव की जरूरत
वहीं दूसरी तरफ कई जानकारों का ये मानना है कि बैंकों को इस दिशा में पॉलिसी बनाने की जरूरत है. बैंकों को किराए के मकान में चलाने का कोई लॉजिक नहीं है. भारत के ग्रामीण इलाकों में भी ग्राम पंचायत और आंगनवाड़ी का भी अपना भवन है तो फिर बैंक किराए के मकानों में क्यों चल रहे हैं.