भारतीय संविधान में महाभियोग से क्या समझते हैं, किसी जज के खिलाफ कैसे लाया जाता है, कौन सुनाता है आखिरी फैसला?
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भारतीय संविधान में महाभियोग से क्या समझते हैं, किसी जज के खिलाफ कैसे लाया जाता है, कौन सुनाता है आखिरी फैसला?

Mahabhiyog: महाभियोग न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता का प्रतीक है. यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी जज अपने पार का मिसयूज न कर सके और अगर ऐसा होता है, तो उसे जवाबदेह ठहराया जा सके. जानिए कौन लेता है आखिरी फैसला...

भारतीय संविधान में महाभियोग से क्या समझते हैं, किसी जज के खिलाफ कैसे लाया जाता है, कौन सुनाता है आखिरी फैसला?

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क्या है महाभियोग का मतलब?
महाभियोग का अर्थ है किसी व्यक्ति को उसके पद से हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया. यह तब लागू होती है जब किसी जज पर "असक्षम्य आचरण" या "अक्षमता" के गंभीर आरोप लगते हैं. भारतीय संविधान के तहत यह प्रक्रिया न्यायपालिका की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है.

किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया
भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को निष्पक्ष और स्वतंत्र बनाए रखने के लिए कई प्रावधान किए हैं. इनमें से एक है "महाभियोग प्रक्रिया", जिसके तहत किसी जज को उसके पद से हटाया जा सकता है. यह प्रक्रिया बेहद जटिल और संवेदनशील है, जिसे संविधान में अनुच्छेद 124 और अनुच्छेद 218 के तहत परिभाषित किया गया है.  

किन परिस्थितियों में लाया जा सकता है महाभियोग?
महाभियोग लाने के लिए दो प्रमुख आधार हैं:

  • जज का अनुचित आचरण (मिसकंडक्ट)
  • कार्यक्षमता में गंभीर कमी (इनकैपेसिटी)

इन आधारों को साबित करने के लिए ठोस सबूत और जांच प्रक्रिया जरूरी होती है

क्या है महाभियोग लाने की प्रक्रिया?
संविधान के अनुच्छेद 124(4), (5), 217 और 218 में जजों को हटाने की पूरी प्रक्रिया बताई गई है, जिसके तहत सबसे पहले जजों को हटाने के लिए नोटिस देना पड़ता है. महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है. अगर ये प्रक्रिया लोकसभा में हो रही है, तो इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए. वहीं, राज्यसभा में प्रक्रिया शुरू हो रही है तो 50 सांसदों के समर्थन मिलना जरूरी है. इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर उस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं (वे इसे खारिज भी कर सकते हैं), तभी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी. प्रपोजल एक्सेप्ट होने के बाद जांच समिति का गठन किया जाता है.

कैसे होता है जांच समिति का गठन?
जांच समिति में तीन सदस्य होते हैं:

  • सुप्रीम कोर्ट का एक सीनियर जज
  • हाई कोर्ट का एक मुख्य न्यायाधीश
  • एक प्रतिष्ठित लीगल एक्सपर्ट, जिसे चेयरमैन या स्पीकर की सहमति से चुना जाता है

यह समिति आरोपों की सत्यता की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है.

संसद में क्या होता है अगला कदम?
जांच समिति की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में बहस के लिए रखी जाती है. आरोप सही पाए जाने पर सदन में वोटिंग होती है. प्रस्ताव पारित होने के लिए सदन के कुल सदस्यों का बहुमत और उपस्थित सदस्यों का दो-तिहाई समर्थन मिलना जरूरी है.

राष्ट्रपति का क्या होता है रोल?
दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति ही आखिरी फैसली लेकर जज को उसके पद से हटा सकते हैं. यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि किसी जज को हटाने का फैसला पूर्ण न्यायिक और संवैधानिक प्रक्रिया के तहत हो.

भारत में अब तक के महाभियोग के उदाहरण
भारत में महाभियोग की प्रक्रिया के कई उदाहरण हैं, लेकिन यह शायद ही कभी पूरी हो पाई है.
जस्टिस वी. रामास्वामी (1993) पहले जज थे, जिन पर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया.
जस्टिस सौमित्र सेन (2011) के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पास हुआ, लेकिन लोकसभा में वोटिंग से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

क्या है महाभियोग का महत्व?
महाभियोग भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका की पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने का महत्वपूर्ण हिस्सा है. हालांकि, यह प्रक्रिया लंबी और जटिल है, लेकिन यह न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है.

क्या महाभियोग में सुधार की जरूरत है?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि महाभियोग प्रक्रिया को और ज्यादा प्रभावी और सरल बनाने की जरूरत है. इसकी जटिलता के कारण ही अब तक भारत में कोई भी जज महाभियोग प्रक्रिया के तहत नहीं हटाया जा सका है.

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