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Srinivasa Ramanujan: श्रीनिवास अयंगर रामानुजन दुनिया भर के मैथमेटिशियन के लिए एक प्रेरणा हैं. उन्होंने बहुत कम उम्र का ही जीवन जिया, लेकिन काफी सर्वक्षेष्ठ जीवन जिया. आज के समय में उन्हें व्यापक रूप से भारत का सबसे बड़ा मैथमेटिशियन माना जाता है. रामानुजन का टीबी की बिमारी से पीड़ित होने के कारण महज 32 साल की आयु में 26 अप्रैल, 1920 को निधन हो गया था. हालांकि, आज वह अपने किए हुए काम के माध्यम से लोगों के बीच जीवित है.
रामानुजन की जयंती 22 दिसंबर को उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए भारत में नेशनल मैथमेटिशियन डे के रूप में मनाया जाता है. 13 साल की छोटी उम्र में, रामानुजन ने बिना किसी सहायता के लोनी के त्रिकोणमिति (Loney’s Trigonometry) अभ्यासों पर काम किया था.
रामानुजन ने 15 साल की उम्र में Pure and Applied Mathematics में प्राथमिक परिणामों के सारांश की एक कॉपी प्राप्त की और एक कठिन चुनौती ली. पुस्तक में करीब 5,000 से अधिक थ्योरम (Theorem) थी, लेकिन इसमें या तो कुछ पूरी तरह प्रूफ थे या कोई भी प्रूभ नहीं थे. इस प्रकार, उन्होंने सभी थ्योरम्स को हल करने और उनका प्रमाण प्राप्त करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया और वे अंततः सफल हुए.
गणित में बहुत कम या कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होने के बावजूद, रामानुजन 1911 में जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी में अपना पहला पेपर प्रकाशित करने में सफल रहे.
1913 में, रामानुजन का सामना ब्रिटिश मैथमेटिशियन गॉडफ्रे एच. हार्डी से हुआ, जो संख्या सिद्धांत (Number Theory) पर अपने काम के लिए जाने जाते हैं.
इससे उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति प्राप्त करने में मदद मिली और उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से भी अनुदान (Grant) प्राप्त हुआ. इसके बाद वे इंग्लैंड चले गए और हार्डी के साथ काम करने लगे.
अंग्रेजी मौसम उनके अनुकूल नहीं था और उन्होंने अपने प्रति नस्लवाद के कुछ उदाहरणों का भी उल्लेख किया. वे 1918 में रॉयल सोसाइटी के दूसरे भारतीय फेलो और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के पहले भारतीय फेलो बने.
उनका जन्म एक गरीब तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था और घर पर उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे नोट्स और पढ़ाई के लिए कागज खरीद सकें. इसलिए उन्होंने अपनी गणना (Calculation) के लिए केवल स्लेट और चॉक का ही इस्तेमाल किया.
प्रोफेसर हार्डी ने एक ऐसा पैमाना बनाया था, जो किसी व्यक्ति की गणितीय क्षमता का मूल्यांकन करता था. जिसमें 0 से 100 की एक लिमिट सैट थी और इस पैमाने पर हार्डी ने खुद को 25 का दर्जा दिया था, जबकि उन्होंने रामानुजन को पूरे 100 का दर्जा दिया.
1919 में रामानुजन भारत लौट आए, लेकिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और एक साल बाद 32 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई.
उन्होंने अपना काम तीन नोटबुक और पेपरों के एक विशाल ढेर में छोड़ दिया था, जिसमें अप्रकाशित परिणाम थे. उनकी मृत्यु के बाद कई वर्षों तक इन्हें दुनिया भर के मैथमेटिशियनों द्वारा वेरिफाई किया गया था.