Lok Sabha Chunav Result: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे पर देश और दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं. सुबह 8 बजे सबसे पहले पोस्टल बैलेट की काउंटिंग होगी. उसके बाद मतगणना शुरू होते ही रुझान भी साफ होने लगेंगे. लोकसभा चुनाव रिजल्ट से पहले ईवीएम और स्ट्रॉन्ग रूम सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं. आइए, जानते हैं कि स्ट्रॉन्ग रूम क्या होता है और आज इसकी खूब चर्चा क्यों हो रही है.


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स्ट्रांग रूम क्या होता है?


वोटिंग के बाद ईवीएम और वीवीपैट मशीनों को जहां संभालकर रखा जाता है, उस जगह को स्ट्रांग रूम कहा जाता है. किसी सरकारी इमारत में ही बनने वाले स्ट्रॉन्ग रूम को काफी सुरक्षित रखा जाता है. वोटिंग के बाद से इस रूम में रखे गए ईवीएम पूरी तरह से कैमरे की निगरानी में होते हैं. इसे स्ट्रॉन्ग रूम कहे जाने की वजह भी यहीं है कि एक बार ईवीएम अंदर रखे जाने के बाद यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता. इस स्ट्रॉन्ग रूम में तैनात सुरक्षाकर्मियों के अलावा दोबारा किसी की एंट्री तभी होती है जब वोटों की गिनती के लिए इन ईवीएम को बाहर निकाला जाता है.


स्ट्रांग रूम का ताला कौन खोलता है?


मतगणना वाले दिन सुबह सात बजे के आसपास स्ट्रांग रूम का ताला खोला जाता है. ताला खोले जाते के वक्त रिटर्निंग ऑफिसर और चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर मौके पर मौजूद रहते हैं. स्ट्रॉन्ग रूम के ताला खोले जाने की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी कराई जाती है. ताला खोलने के समय क्षेत्र के सभी चुनावी उम्मीदवार या उनके अधिकृत प्रतिनिधि मौजूद होते हैं.



काउंटिंग के बाद भी 45 दिनों तक स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है ईवीएम


स्ट्रॉन्ग रूम का ताला खोले जाने के बाद ईवीएम की कंट्रोल यूनिट काउंटिंग की टेबल पर रखी जाती है. इसके बाद हरेक कंट्रोल यूनिट की यूनिक आईडी और सील का मिलान किया जाता है. उसे सभी पोलिंग एजेंट को भी दिखाया जाता है. अगर किसी उम्मीदवार या उसके एजेंट को एतराज नहीं होता है तो फिर मतगणना की प्रक्रिया शुरू की जाती है. काउंटिंग पूरी होने के बाद भी ईवीएम को दोबारा स्ट्रांग रूम में रखा जाता है. इसके 45 दिनों के बाद ही ईवीएम को स्ट्रांग रूम से दूसरे स्टोर में शिफ्ट किया जाता है.


सरकारी बिल्डिंग में ही क्यों बनाया जाता है स्ट्रॉन्ग रूम?


नियमों के मुताबिक स्ट्रॉन्ग रूम को सिर्फ किसी सरकारी बिल्डिंग में ही बनाया जा सकता है. स्ट्रॉन्ग रूम बनाए जाने के लिए सरकारी बिल्डिंग का चयन पहले से ही कर लिया जाता है. फिर उसकी कड़ी सुरक्षा का पूरा इंतजाम कर लिया जाता है. किसी पुलिस स्टेशन में स्ट्रॉन्ग रूम  नहीं बनाया जा सकता. स्ट्रॉन्ग रूम के लिए सरकारी बिल्डिंग का चयन करने के लिए भी चुनाव आयोग के ढेर सारे नियमों का पालन किया जाता है. 


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कैसे होती है स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा?


स्ट्रॉन्ग रूम के अंदर की सुरक्षा के लिए सेंट्रल पैरा मिलिट्री फोर्स (सीआरपीएफ) को लगाया जाता है. वहीं, स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सुरक्षा बलों की होती है. ये सभी आधुनिक हथियारों से लैस कमांडो की तरह होते हैं. वहीं, स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा का तीसरा लेयर स्थानीय पुलिस बलों का होता है. पुलिस वालों को स्ट्रॉन्ग रूम के आस-पास तैनात किया जाता है. स्ट्रॉन्ग रूम की इस थ्री-लेयर सिक्योरिटी इतनी चाक-चौबंद होती है कि इसमें सेंध लगाकर अंदर घुस पाना नामुमकिन है.


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