इस कारण विराट के वीर गा रहे ‘इक दूसरे से करते हैं प्यार हम, इक दूसरे के लिये बेकरार हम’
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इस कारण विराट के वीर गा रहे ‘इक दूसरे से करते हैं प्यार हम, इक दूसरे के लिये बेकरार हम’

मैदान के भीतर विरोधियों के छक्के छुड़ाने वाले विराट के वीर मैदान के बाहर भी अधिकांश समय साथ बिताकर आपसी तालमेल बढ़ा रहे हैं.

इस कारण विराट के वीर गा रहे ‘इक दूसरे से करते हैं प्यार हम, इक दूसरे के लिये बेकरार हम’

साउथम्पटन: ‘इक दूसरे से करते हैं प्यार हम, इक दूसरे के लिये बेकरार हम’ यह बॉलीवुड का गीत नहीं बल्कि टीम इंडिया की सफलता का मूलमंत्र बन गया है और मैदान के भीतर विरोधियों के छक्के छुड़ाने वाले विराट के वीर मैदान के बाहर भी अधिकांश समय साथ बिताकर आपसी तालमेल बढ़ा रहे हैं.

भारतीय टीम प्रबंधन ने टीम के आपसी तालमेल को बढ़ाने के लिये कई गतिविधियां तय की है जिससे दोहरे फायदे हो रहे हैं. पहला कि खेल से थोड़ा ब्रेक मिल रहा है और दूसरा मैदानी प्रदर्शन में निखार के लिये मैदान के बाहर की दोस्ती भी जरूरी है. भारतीय टीम इन ‘बांडिंग ’ सत्रों में बढ़-चढ़कर हिस्सा भी ले रही है. इसमें कोई मजेदार खेल या साथ में भोजन करना शामिल है.

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बीसीसीआई के एक सीनियर अधिकारी ने कहा,‘‘ भारतीय टीम में पिछले कुछ साल से इस तरह के सत्र हो रहे हैं. इसमें रोचक खेल या कुछ और गतिविधि शामिल है. फिलहाल खिलाड़ी अपने परिवार के साथ ब्रेक पर है. उनके आने के बाद ऐसी गतिविधियां होंगी.’’

‘लीडरशिप ग्रुप’
विराट कोहली टीम के कप्तान है जिसमें ‘लीडरशिप ग्रुप’ में कोहली , रोहित शर्मा और महेंद्र सिंह धोनी हैं . कई बार 15 या 12 खिलाड़ियों को चार के ग्रुप में बांट दिया जाता है और तीनों सीनियर खिलाड़ी एक एक ग्रुप में होते हैं. अधिकारी ने कहा ,‘‘इस पर जोर दिया जाता है कि अलग अलग क्षेत्रों के खिलाड़ी साथ में घूमे और खाना खाये . मसलन विजय शंकर टीम का सबसे नया सदस्य है और तमिलनाडु का होने के कारण वह दिनेश कार्तिक के साथ सहज महसूस करेगा. लेकिन कई बार कार्तिक को किसी दूसरे जूनियर खिलाड़ी के साथ भी खाना पड़ सकता है. यह जबरिया नहीं है लेकिन सहज होना चाहिये.’’

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अतीत में भी भारतीय टीम में ऐसे सत्र हुआ करते थे. सत्तर के दशक में इंग्लिश काउंटी के समान संडे क्लब होते थे जिसमें खिलाड़ी खास परिधान पहनकर खास सीन की नकल किया करते थे. इसमें अंडरवियर पहनकर और कमर पर टाई बांधकर अपने कमरे से टीम के कामन रूम तक जाना शामिल था. कई बार किसी खिलाड़ी को लिपस्टिक लगाकर ‘शोले की बसंती ’ की तरह थिरकना होता था.

गैरी कर्स्टन के समय में यह और भी रोचक था. पैडी उपटन ने अपनी किताब ‘बेयरफुट कोच’ में वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर की लड़कियों के कपड़े पहने वाली तस्वीरें डाली हैं. नब्बे के दशक के बीच से 2000 की शुरूआत तक इस तरह के सत्र नहीं हुआ करते थे क्योंकि उस समय खिलाड़ियों के बीच आपस में इतना विश्वास नहीं था.

(इनपुट: एजेंसी भाषा)

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