गर्भपात (Abortion) की अनुमति देते हुए उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा कि प्रक्रिया के दौरान अगर लड़की के जीवन को कोई खतरा महसूस होता है तो डॉक्टर के पास गर्भपात को रद्द करने का अधिकार होगा.
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नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने बलात्कार पीड़िता 16 वर्षीय एक लड़की को सोमवार को 26 हफ्ते के अपने गर्भ को समाप्त करने (Abortion) की अनुमति दे दी. अदालत ने पीड़िता और उसके परिवार के साथ इस चरण में प्रक्रिया से जुड़े खतरों पर चर्चा करने के बाद यह अनुमति दी. हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि नाबालिग की जान संकट में हो तो वे इसे रद्द कर दें.
गर्भपात की अनुमति देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रक्रिया के दौरान अगर लड़की के जीवन को कोई खतरा महसूस होता है तो डॉक्टर के पास गर्भपात को रद्द करने का अधिकार होगा. न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा ने यहां के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) को डीएनए जांच की खातिर भ्रूण को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया ताकि बलात्कार मामले में सुनवाई के दौरान इसे संज्ञान में लिया जा सके. अदालत ने पीड़िता और उसकी मां के साथ निजी डिजिटल सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के बावजूद दोनों गर्भपात (Abortion) करवाने के लिए जोर दे रहे थे.
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बोर्ड ने रिपोर्ट में कहा कि इससे खतरा होने की संभावना है और गर्भपात के बावजूद भ्रूण जिंदा रह सकता है. अदालत ने 14 जनवरी को लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को पीड़िता की जांच करने और उसका गर्भपात करवाने की संभावना का पता लगाने के लिए कहा था. पीड़िता की मां की तरफ से दायर याचिका के मुताबिक, जब उसने पाया कि उसकी बेटी गर्भवती है तो उसने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई.
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पुलिस ने भादंसं की धारा 376 (बलात्कार) और पोकसो कानून की धारा छह के तहत ‘जीरो प्राथमिकी’ दर्ज की थी. याचिका में कहा गया कि जीरो प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस ने लड़की को चिकित्सकीय जांच के लिए भेजा. जांच के बाद मां को बताया गया कि उनकी बेटी करीब 24 हफ्ते की गर्भवती है.