पीठ ने कहा, ‘‘हलफनामे में उस नीति का जिक्र होना चाहिए जो प्रतिवादी ने अपनाई है और उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में (समान पाठ्यक्रम पर) जिसे अपनाने की मंशा रखता है.’’ पीठ में न्यायमूर्ति नवीन चावला भी शामिल हैं. याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि सीबीएसई, आईएससीई और राज्य बोर्ड के अलग-अलग पाठ्यक्रम संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21 ए के विपरीत हैं और शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत समान शिक्षा का अधिकार भी आता है.
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नई दिल्ली, (भाषा): दिल्ली उच्च न्यायालय ने समान शिक्षा प्रणाली लागू करने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर सोमवार को केन्द्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और ‘काउन्सिल फॉर इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशंस (सीआईएससीई)’ से भी जवाब मांगा है.
पीठ ने कहा, ‘‘हलफनामे में उस नीति का जिक्र होना चाहिए जो प्रतिवादी ने अपनाई है और उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में (समान पाठ्यक्रम पर) जिसे अपनाने की मंशा रखता है.’’ पीठ में न्यायमूर्ति नवीन चावला भी शामिल हैं. याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि सीबीएसई, आईएससीई और राज्य बोर्ड के अलग-अलग पाठ्यक्रम संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21 ए के विपरीत हैं और शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत समान शिक्षा का अधिकार भी आता है.
याचिका में कहा गया है, ‘‘ जेईई, बीआईटीएसएटी, नीट, मैट, नेट, एनडीए, सीयू-सीईटी,क्लैट, एआईएलईटी, एसईटी,केवीपीवाई,एनईएसटी, पीओ, एससीआरए, एनआईएफटी,एआईईईडी, एनएटीए और सीईपीटी आदि के जरिए होने वाली सभी प्रवेश परीक्षाओं में पाठ्यक्रम समान हैं, लेकिन सीबीएसई, आईसीएसई व राज्य बोर्ड के पाठ्यक्रम एकदम भिन्न हैं. इसलिए छात्रों को अनुच्छेद 14-16 की भावना के अनुरूप समान अवसर नहीं मिलते हैं.’’
याचिका में कहा गया है कि मातृभाषा में एक समान पाठ्यक्रम से न केवल समान संस्कृति की व्यवस्था को हासिल किया जा सकता है, बल्कि इससे असमानता और भेदभावपूर्ण मूल्यों को भी दूर किया जा सकता है. मामले में अगली सुनवायी 30 अगस्त को होगी.
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