'ग्‍लोबल टीचर' बने रणजीत सिंह डिसले ने इस डर से अधूरी छोड़ दी थी इंजीनियरिंग की पढ़ाई
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'ग्‍लोबल टीचर' बने रणजीत सिंह डिसले ने इस डर से अधूरी छोड़ दी थी इंजीनियरिंग की पढ़ाई

यूनेस्को और लंदन के वार्की फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार में उन्हें 7 करोड़ रुपये दिए जाएंगे. लेकिन डिसले पुरस्कार का बड़ा हिस्सा बाकी दावेदारों के साथ बांटने की घोषणा की और यह भी कहा कि यह फैसला भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि सोच समझकर काफी पहले ही ले लिया था.

'ग्‍लोबल टीचर' का खिताब जीतने वाले रणजीत सिंह डिसले

नई दिल्ली: इन दिनों 'ग्‍लोबल टीचर' (Global Teacher) का खिताब जीतने वाले रणजीत सिंह डिसले (Ranjitsinh Disale) खासे चर्चा में हैं. पढ़ाने की उनके तरीकों ने उन्‍हें जिस मुकाम पर पहुंचाया है, वो कहीं न कहीं 'थ्री इडियट्स' या 'तारे जमीं पर' के आमिर खान की याद दिलाता है. शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के इसी जज्‍बे ने ही रणजीत सिंह डिसले को 12 हजार उम्‍मीदवारों के बीच इस पुरस्कार का हकदार बनाया है. विजेता के तौर पर उन्‍हें 7 करोड़ रुपये की पुरस्‍कार राशि (Prize money) मिलेगी. उनकी इस उपलब्धि ने भारत ही नहीं, बल्कि अभावों के बीच दुनिया में तालीम के बीज बो रहे असंख्य शिक्षकों को गौरवान्वित किया है.

  1. 2 हजार की आबादी वाले गांव में सरकारी शिक्षक हैं डिसले 
  2. पहले भी ढेरों पुरस्‍कार जीत चुके हैं
  3. पुरस्‍कार के 7 करोड़ रुपये बांटेंगे अन्‍य दावेदारों से 

इनकी झोली में हैं ढेरों पुरस्‍कार 
माइक्रोसॉफ्ट के 'इनोवेटिव एजुकेटर एक्सपर्ट' पुरस्कार और राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के 'वर्ष 2018 के सर्वश्रेष्ठ नवप्रवर्तक' पुरस्कार से लेकर 'ग्लोबल टीचर' पुरस्कार तक, ये सब डिसले की प्रतिभा और समर्पण की कहानी बयां करते हैं. महाराष्ट्र के सोलापुर जिले की माढा तालुका के जिस परीतेवाडी गांव के सरकारी स्‍कूल में डिसले पढ़ाते हैं, वहां की आबादी बमुश्किल 2 हजार है. 

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डिसले को 'ग्लोबल टीचर' पुरस्कार के लिए चुने जाने की घोषणा लंदन में एक ऑनलाइन समारोह में अभिनेता स्टीफन फ्राई ने की थी. पहली बार भारत के किसी शिक्षक को यह पुरस्कार मिला है. बड़ी बात यह है कि डिसले को विश्व के 140 देशों से 12 हजार से अधिक शिक्षकों में से चुना गया है.

बाकी दावेदारों के साथ बांटेंगे पुरस्‍कार राशि 
यूनेस्को और लंदन के वार्की फाउंडेशन द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार में उन्हें 7 करोड़ रुपये दिए जाएंगे. लेकिन डिसले पुरस्कार का बड़ा हिस्सा बाकी दावेदारों के साथ बांटने की घोषणा की और यह भी कहा कि यह फैसला भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि सोच समझकर काफी पहले ही ले लिया था.

उन्होंने कहा, 'अगर मैं अकेले यह पुरस्कार ले लूं तो सही नहीं होगा क्योंकि सभी ने शानदार काम किया है. शिक्षक 'इनकम' के लिए नहीं 'आउटकम' के लिए काम करते हैं. हम सभी मिलकर समाज की दशा और दिशा बदल सकते हैं.' 

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रैगिंग के कारण छोड़ी थी इंजीनियरिंग 
रैगिंग से परेशान होकर इंजीनियरिंग बीच में ही छोड़ने वाले डिसले को उनके पिता ने शिक्षक बनने की प्रेरणा दी. प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद वह 11 साल पहले सूखाग्रस्त परीतेवाड़ी में जिला परिषद प्राथमिक शाला में शिक्षक नियुक्त हुए. स्कूल के नाम पर टूटी-फूटी इमारत, 110 छात्र और पांच शिक्षक लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

शिक्षा में नए प्रयोगों के हिमायती डिसले ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया और 'क्विक रिस्पांस' (क्यू आर) कोड पाठ्यपुस्तक लेकर आए जो जिले से राज्य और फिर पूरे देश में लागू हो गई. इसमें छात्र क्यू आर कोड स्कैन कर ऑडियो, वीडियो व्याख्यान, कहानी और प्रोजेक्ट देख सकते थे.

शिक्षा को रोचक और मनोरंजक बनाने वाले डिसले के इन प्रयासों से स्कूल में छात्रों की उपस्थिति 100 फीसदी रही और स्‍कूल को जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार मिला. लेकिन यह पुरस्कारों की एक कड़ी की शुरुआत भर थी जिसकी परिणिति दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के पुरस्कार के साथ हुई. उन्हें माइक्रोसॉफ्ट ने 'इनोवेटिव एजुकेटर एक्सपर्ट' पुरस्‍कार दिया और इसके अलावा भी ढेरों पुरस्‍कार उन्‍हें मिले. 

साल भरी चली 'ग्‍लोबल टीचर' बनने की प्रक्रिया  
'ग्लोबल टीचर' पुरस्कार के लिए प्रक्रिया करीब साल भर चली और कोरोना महामारी के कारण इसमें और देरी होती गई. पहले प्रयास में नाकाम रहे डिसले इस बार सारी प्रक्रियाओं में खरे उतरते रहे और लड़कियों की शिक्षा तथा क्यूआर कोड ने उन्हें दूसरों से बेहतर बनाया.

डिसले का मानना है कि शिक्षकों को नई पहल कर शिक्षा को रोचक बनाना चाहिए और सरकार से उनकी इतनी सी मांग है कि वह एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने वाले शिक्षकों की आवाज सुने.

उन्होंने कहा, 'शिक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं, मसलन लड़कियों की शिक्षा के आंकड़े अभी भी अच्छे नहीं हैं. बच्चों के बीच में ही स्कूल छोड़ देने की समस्या है जो कोरोना महामारी के बीच और बढ़ गई. सरकार और शिक्षकों को मिलकर इन चुनौतियों से निपटना होगा. इसके लिए जरूरी है कि शिक्षकों की आवाज सुनी जाए.' 

 

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