जब पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की जानकारी मिलती है, उसके बाद पुलिस की तरफ से जो सबसे पहला लिखित डॉक्यूमेंट्स तैयार किया जाता है, उसे फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR) कहते हैं.
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नई दिल्ली. किसी भी आपराधिक घटना के बाद जांच के लिए FIR दर्ज करानी बहुत जरूरी है. क्योंकि इससे अपराधियों को जांच के बाद सजा भी मिलती है. साथ ही साथ अन्य अपराधियों में भय व्याप्त होता है, जिससे अपराध की घटनाओं में कमी आती है. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जब हम किसी घटना की FIR दर्ज कराने जाते हैं तो पुलिस FIR दर्ज करने के बजाय इधर-उधर दौड़ाती है और FIR दर्ज नहीं करती है. ऐसे में हमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 को जान लेना चाहिए. क्योंकि 1973 के सेक्शन 154 में FIR का जिक्र है. इससे आपको पता चल जाएगा कि आपका अधिकार क्या है और पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो क्या-क्या कदम उठा सकते हैं?
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सबसे पहले जानिए क्या है FIR?
जब पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की जानकारी मिलती है, उसके बाद पुलिस की तरफ से जो सबसे पहला लिखित डॉक्यूमेंट्स तैयार किया जाता है, उसे फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR) कहते हैं. इस रिपोर्ट में पीड़ित द्वारा शिकायत के बाद लिखी गई डिटेल्स होती हैं. कोई भी व्यक्ति पुलिस से अपने साथ या करीबियों के साथ हुए अपराध की शिकायत मौखिक या लिखित में कर सकता है. पुलिस से कॉल के जरिए भी शिकायत की जा सकती है.
संज्ञेय अपराध में पुलिस को है गिरफ्तारी का अधिकार
किसी भी संज्ञेय अपराध में पुलिस के पास किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है. हालांकि इसके लिए उन्हें कोर्ट की अनुमति लेनी होती है. वहीं, असंज्ञेय अपराध में पुलिस के पास न तो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता और न वे मामले की जांच कर सकते हैं.
FIR का क्या महत्व है?
किसी भी अपराध या वारदात की जांच में FIR सबसे जरूरी दस्तावेज होता है. क्योंकि इसी आधार पर पुलिस मामले में की जांच करती है. अगर पुलिस मामले की जांच नहीं करती है और व्यक्ति के साथ फिर अपराध होता है तो पुलिस इसके लिए जिम्मेदार होती है. ऐसे में आपकी शिकायत पर उच्च अधिकारियों द्वारा संबंधित थाने के एसओ या फिर दरोगा को निलंबित करने के साथ-साथ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है.
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क्या है FIR का प्रोसेस
कोई व्यक्ति किसी भी आपराधिक घटना की जानकारी मौखिक रूप से देता है तो पुलिस उसे लिखती है. एक शिकायतकर्ता और नागरिक होने के नाते आपके पास यह भी अधिकार है कि पुलिस उसे पढ़कर सुनाए. वहीं, FIR दर्ज कराने के बाद आपकी साइन भी जरूरी है. साथ ही एक कॉपी भी लेना जरूरी है, ताकि आपका कानूनी पक्ष मजबूत रहे.
FIR में इन बातों का जरूर करें जिक्र
FIR में आपका नाम, पता, तारीख, समय, रिपोर्टिंग की जगह आदि के बारे में जानकरी होनी चाहिए. अपराध की सच्ची जानकारी व तथ्य, शामिल व्यक्तियों के नाम व अन्य जानकारी और अगर कोई चश्मदीद है तो उनकी जानकारी भी FIR में देनी चाहिए. वहीं, FIR में गलत जानकारी भी नहीं देनी चाहिए. ऐसे में आपके खिलाफ भी भारतीय दंड संहिता, 1860 के सेक्शन 203 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.
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FIR दर्ज नहीं होने पर करें यह काम
किसी पुलिस थाने में अगर आपका FIR दर्ज नहीं किया जा रहा तो आपको पुलिस सुपरिटेंडेंट (SP) या इससे ऊपर डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DIG) और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (IG) से शिकायत करनी चाहिए. इन अधिकारियों को अपनी शिकायत लिखित रूप में पोस्ट के जरिए भी भेज सकते हैं. वे अपने स्तर से मामले की जांच करेंगे. इसके अलावा अलावा आप संबंधित क्षेत्र की कोर्ट में भी शिकायत कर सकते हैं.
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